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मुजफ्फरनगर: टिकैत के महापंचायत के जवाब में फिर पंचायत, किसानों की जुदा है राय

पंचायत में मुजफ्फरनगर, शामली, कैराना, बागपत और आसपास के कई जिलों से किसानों के जत्थे शामिल हुए, लेकिन इस महापंचायत का मकसद कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन नहीं बल्कि किसानों की अपनी खुद की कई समस्याएं थीं.

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मुजफ्फरनगर में 21 दिन बाद फिर बैठी किसानों की पंचायत (फोटो-आजतक)
मुजफ्फरनगर में 21 दिन बाद फिर बैठी किसानों की पंचायत (फोटो-आजतक)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 21 दिन पहले 5 सितंबर को टिकैत ने बुलाई थी किसानों की महापंचायत
  • मुजफ्फरनगर के इंटर कॉलेज मैदान में फिर बैठी किसानों की पंचायत
  • तब किसानों के मुद्दे पर बात नहीं हुई, अबकी बार मुद्दों पर बात हुईः किसान

उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में घटनाक्रम काफी तेजी से बदल रहे हैं. किसानों का गढ़ और ऊपर से गन्ना किसानों का गढ़ समझे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महापंचायतों का दौर जारी है. ज्यादा समय नहीं हुआ है, लगभग 21 दिन पहले 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर के इंटर कॉलेज मैदान में राकेश टिकैत ने महापंचायत बुलाई थी. बड़ी संख्या में किसानों ने कृषि कानूनों के खिलाफ इस महापंचायत में हिस्सा लेकर शक्ति प्रदर्शन किया था और सीधे-सीधे बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.

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21 दिनों के भीतर मुजफ्फरनगर के उसी मैदान में एक बार फिर किसान संगठनों ने शक्ति प्रदर्शन किया है. बस इस बार झंडा भारतीय किसान यूनियन का नहीं बल्कि राष्ट्र प्रेमी मजदूर किसान सभा और हिंद मजदूर किसान समिति का था. आध्यात्मिक किसान नेता चंद्रमोहन के नेतृत्व में कई किसान संगठनों, मलिक खाप जैसी कई खाप संगठनों और किसानों ने ट्रैक्टर लेकर मुजफ्फरनगर के उसी मैदान में अपनी ताकत दिखाई जहां राकेश टिकैत ने 5 सितंबर को मोर्चा खोला था.

टिकैत की महापंचायत से अलग पंचायत  

मुजफ्फरनगर, शामली, कैराना, बागपत और आसपास के कई जिलों से किसानों के जत्थे इस मैदान में पहुंचे, लेकिन इस महापंचायत का मकसद कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन नहीं बल्कि किसानों की समस्याएं थीं. युवा किसान अमित कुमार का कहना है कि यह महापंचायत टिकैत की महापंचायत से इसलिए अलग है क्योंकि यहां वह उन किसानों के मसलों पर बात करेंगे जिसकी बात 5 सितंबर को हुई महापंचायत में नहीं हुई थी.

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अमित कहते हैं कि इस महापंचायत में हम सरकार से गन्ने की कीमतों में बढ़ोतरी, समय से कीमतों का भुगतान, बिजली बिलों में राहत और पुराने ट्रैक्टरों की बहाली का मुद्दा उठा रहे हैं. उनका कहना है कि गन्ने की कीमतें 4 साल से नहीं बढ़ी हैं इसलिए वह कीमतें बढ़नी चाहिए और कम से कम ₹400 प्रति क्विंटल की कीमत होनी चाहिए साथ ही बिजली की कीमत बढ़ गई है उसमें भी कमी होनी चाहिए. 

'सरकार से हमारी नाराजगी नहीं' 

जब किसानों के बीच हों और चौपाल ना हो ऐसा कैसे हो सकता है. इसी मैदान में ट्रैक्टर पर सवार किसानों से उनके मुद्दों से लेकर राजनीतिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई.   उस महापंचायत के जवाब में बुलाई गई इस महापंचायत में आए किसानों ने दो टूक कहा कि उनमें गन्ने की कीमतों को लेकर यूपी सरकार के खिलाफ नाराजगी तो है लेकिन वह सरकार का विरोध नहीं करते बल्कि सरकार से अपनी मांगें मनवाना चाहते हैं.

मुजफ्फरनगर जिले से आए परविंदर मलिक कहते हैं कि हम अपनी मांगों को लेकर आए हैं जिसमें बिजली का बिल और गन्ने का भुगतान सबसे प्रमुख मुद्दा है. परविंद्र कहते हैं कि सभी खापों के चौधरी पंचायत में शामिल हैं और किसानों में कोई बंटवारा नहीं है. परविंद्र मलिक कहते हैं कि सरकार के खिलाफ नाराजगी तो नहीं है लेकिन अगर थोड़ी सुविधा किसानों को हो जाए हम बस इतना ही चाहते हैं. आखिर 1 महीने में एक छोटे किसान को एक पर्ची मिलती है तो घर पर क्या लाएगा? 

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'गन्ने का भाव किसानों के लिए बड़ा मुद्दा'

कोहिला गांव से आए बुजुर्ग सोमपाल कहते हैं कि गन्ने का भाव यहां के किसानों के लिए बड़ा मुद्दा है. 5 साल से यूपी सरकार ने गन्ने की कीमत नहीं बढ़ाई. ऊपर से 4 साल में बिजली का बिल दोगुना हो गया है क्योंकि पहले हम साल में 8 से ₹9000 देते थे और अब हमें ₹10000 जमा करने पड़ रहे हैं इतना ही नहीं कांग्रेस की सरकार में डीजल ₹60 लीटर था और अब ₹100 पहुंच गया. ऊपर से खाद की कीमत भी बढ़ गई है.

सोमपाल कहते हैं कि अगर सरकार कह रही है कि फसल की कीमत दोगुनी है तो सरकार झूठ बोल रही है. उनका यह भी कहना है कि किसानों में कोई बंटवारा नहीं है क्योंकि चुनाव के समय वे लोग अन्य दल को भी वोट कर सकते हैं और बीजेपी को भी लेकिन हम अपनी मांगों को लेकर के आए हैं क्योंकि 5 साल में हर चीज के रेट बढ़ गए और गन्ने का पैसा बढ़ा नहीं तो कम से कम किसानों को कुछ रियायत मिले. 

शिशपाल मलिक कहते हैं कि 5 सितंबर को जो महापंचायत हुई वह टिकैत यूनियन द्वारा बुलाई गई थी जबकि उन्होंने किसानों के लिए कुछ नहीं कहा. लेकिन हम हिंद किसान सभा से हैं और हमारे मुद्दे किसानों वाले हैं. यशपाल मलिक कहते हैं कि कानून की वापसी क्यों हो, कानून में संशोधन हो जाए और जो गलतियां हैं उसे ठीक करवा लिया जाए. 

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मुजफ्फरनगर के शिशपाल मलिक कहते हैं कि सरकार से किसानों की नाराजगी नहीं है लेकिन महंगाई को देखते हुए किसानों को लाभ होना चाहिए. अगर सरकार ने हमारी मांगें मान लीं तो हम फिर सरकार के साथ हो जाएंगे. वह कहते हैं कि ना तो किसानों की कमाई बढ़ी है और दोगुनी तो छोड़िए जो लागत है वह भी नहीं मिल रही है. हर चीजों की कीमत बढ़ गई है.

तेल की कीमत घट जाए तो किसान को फायदा होगा. लेकिन हालात ऐसे रहे तो महंगाई का असर चुनाव में पड़ेगा और यह सरकार के लिए चेतावनी है इसलिए हमारी कोशिश है कि सरकार तक हम अपनी बात पहुंचा सकें और अगर सरकार हमारी मांग मान लेती है तो हम फिर बीजेपी के साथ झुक जाएंगे.

मोरना गांव से आए युवा किसान संदीप 5 तारीख की हुई महापंचायत से खफा हैं और कहते हैं कि उस महापंचायत में किसानों की बात नहीं रखी गई बल्कि एक एजेंडा चलाया गया कि मोदी को हटा दो योगी को हटा दो जबकि किसानों की मांग है आवारा पशु और गन्ने का भुगतान जिसको लेकर के हम यहां आए हैं. संदीप कह रहे हैं कि हमारी मांगों में ट्रैक्टर का मसला भी है जिसे बंद ना किया जाए और हम सभ्य तरीके से सरकार से यह मांग कर रहे हैं जिसे सरकार पूरा करें और पूरा नहीं होती तो हम धरना देंगे.

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संदीप कहते हैं कि हमारा कोई एजेंडा नहीं है और ना ही हम किसी सरकार का विरोध कर रहे हैं बल्कि हम अपनी मांग सरकार से उठा रहे हैं. युवा किसान कहते हैं कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसान तो एकजुट है और वह एकजुट होकर ही वोट करेगा ना किसी खास जाति या ख्वाब में बंटेगा क्योंकि पहले भी किसानों ने सरकार बनाई है और आगे भी किसान ही सरकार बनाएगा अगर समय रहते किसान के मसले हल हो गए तो किसान भी सरकार के साथ हो जाएगा.

'हमारे पास बॉर्डर पर बैठने का समय नहीं'

इस महापंचायत में ज्यादातर की राय यह थी कि टिकैत द्वारा बुलाई गई महापंचायत एक राजनीति का अखाड़ा बन गया था और इसी वजह से यह आभास भी होता है कि किसानों के बीच एकजुटता धीरे-धीरे टूटने लगेगी. राष्ट्र मजदूर किसान समिति के जिला अध्यक्ष राजेश कुमार कहते हैं कि 5 सितंबर को हुई महापंचायत को एक राजनीतिक मंच बना दिया गया जबकि किसानों और मजदूरों के लिए मुद्दा नहीं उठाया गया हम तो यही चाहते हैं कि किसानों को गन्ने का समय से भुगतान हो जाए तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी. 

मुजफ्फरनगर के किसान राम सिंह कहते हैं कि किसानों में एकजुटता तो है अब दिल्ली की सीमा पर कोई भी बैठे हो, उससे क्या मिलेगा लेकिन कृषि कानूनों से इतर हटकर हमारा मसला गन्ने की कीमत है अगर वह बढ़ जाए तो हमारी आय दोगुनी हो जाएगी. हमारे दूध की अच्छी कीमत मिलने लगे तो किसानों को फायदा होगा. 

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सहदेव मलिक कहते हैं कि किसान के पास इतना समय कहां है कि वह 6 महीने तक बैठा रहे क्योंकि मैं अपने गांव में ट्यूबवेल बंद करके आया हूं वरना पड़ोसी की खेत में पानी चला जाएगा. किसान के पास समय कहां है कि वह बॉर्डर पर धरना दे. सहदेव कहते हैं कि किसानों के बीच जो सरकार से मतभेद हैं ऐसे में दोनों हिंदुस्तानी हैं और आपस में बैठकर उसे सुलझा लेना चाहिए ताकि देश को आगे बढ़ाया जा सके. 

टिकैत की महापंचायत के जवाब में एक दूसरी महापंचायत भी बुलाई गई जिसने अपना शक्ति प्रदर्शन किया और किसानों के मुद्दे पर खुलकर बातचीत भी की लेकिन एक तस्वीर सामने जो साफ होकर आती है वह यह कि किसानों के बीच सरकार के खिलाफ छेड़े इस द्वंद में एकजुटता की कमी है. किसान धड़ों में बंटे हुए हैं. और मुद्दों को लेकर कि यह लड़ाई आगे और भी रुख बदल सकती है.

 

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