उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने लोक सभा चुनाव पास आते ही वोट बैंक के लिए जुगत लगानी शुरू कर दी है. मुजफ्फरनगर में दंगों से पहले भड़काऊ भाषण देने के आरोपी बीएसपी और कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं से सरकार केस वापस लेने की तैयारी कर रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, सरकार ने इस बाबत जिला प्रशासन से राय मांगी है.
बताया जाता है कि यूपी सरकार ने मुजफ्फरनगर और शामली जिला प्रशासन से पूछा है कि जनहित में इन नेताओं पर केस वापस लिया जा सकता है या नहीं? जिन नेताओं पर उकसाने वाला भाषण देने का आरोप है उनमें बीएसपी सांसद कादिर राना, उनके भाई और बीएसपी विधायक नूर सलीम राना, विधायक मौलाना जमील, पूर्व गृह राज्यमंत्री सईदुज्जमा समेत कई नेता शामिल हैं.
इन सभी नेताओं पर पुलिस ने धारा 144 तोड़ने और भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया था. इन्हीं मुकदमों को वापस लेने की तैयारी में अखिलेश सरकार जुट गई है. उधर, यूपी सरकार के इस फैसले को लेकर बीजेपी और कांग्रेस ने हल्ला बोल दिया है. दोनों पार्टियों ने इस कदम को महज सरकार की वोट बैंक नीति करार दिया है.
अब तक 294 आरोपी शिकंजे में
गौरतलब है कि अखिलेश सरकार की वोट बैंक को लेकर किए गए मुआवजे के ऐलान पर काफी किरकिरी हो चुकी थी. उनके पांच लाख लो और राहत शिविर छोड़ो पॉलिसी आलोचनाओं के घेरे में आ गई थी. इस घोषणा के बावजूद भी कई लोग राहत शिविर में अभी भी जिंदगी काट रहे हैं. मुजफ्फरनगर दंगों के करीब चार महीने बाद पुलिस के शिकंजे में करीब 294 लोग आए जबकि 6000 लोग इस मामले में एक्यूज्ड थे. दो गुटों के बीच हुई इस हिंसा में करीब 60 लोगों की मौत हो गई थी जबकि करीब 40,000 लोग बेघर हो गए थे.