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गंगा के समानांतर एक और गंगा का प्रवाह होने की बात कही जाए तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा. क्योंकि वाराणसी के ऐतिहासिक अर्धचंद्राकार घाटों को बचाने के लिए योगी सरकार की एक बड़ी योजना का काम मूर्त रूप लेने लगा है. सरकार की इस योजना से गंगा के किनारे घाटों को नया जीवन मिलेगा, साथ ही घाटों के सामने उस पार रेत पर पर्यटन और आस्था का नया केंद्र भी उभर कर सामने आएगा.
दरअसल, गंगा उस पार रेत में ड्रेजिंग कर 5 किलोमीटर लंबा व 45 मीटर लंबा चैनल बन रहा है. गंगा के पार इकट्ठी हुई रेत को हटाने का प्रयास पहले नहीं किया गया था. जिसके चलते गंगा की धारा से काशी के घाटों के किनारे खड़ी सदियों की विरासत, ऐतिहासिक धरोहरों पर खतरा मंडराने लगा था. फिर कछुआ सेंचुरी को शिफ़्ट करवाया देने के बाद रेत पर ड्रेजिंग का काम तेजी से चल रहा है और लंबा चौड़ा कैनाल भी बनाया जा रहा है.
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काशी में कछुआ सेंचुरी के बहाने मां गंगा के किनारे दरकते घाट की दिक्कत गहराती चली जा रही थी. जिससे घाटों के किनारे खड़े ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाले घाटों पर ख़तरा बढ़ गया था. दरअसल, रामनगर इलाके में रेती जमा होने से गंगा का प्रवाह बदल गया है और काशी के पक्के घाटों पर पानी का दबाव बढ़ गया है. जिसके चलते घाट के सीढ़ियों के नीचे खोखला हो गया है. और घाटों के किनारे सदियों से खड़ी की इमारतों पर खतरा मंडराने लगा था.
सरकार ने सबसे पहले इस इलाके से कछुआ सेंचुरी को शिफ्ट करवाया. जिसके चलते गंगा पार जमी रेती पर से खनन का प्रतिबन्ध हटा गया. प्रोजेक्ट मैनेजर, उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कॉर्पोरेशन, लखनऊ पंकज वर्मा ने बताया कि सामने घाट से लेकर राजघाट तक गंगा पार रेती पर 11.95 करोड़ की लगत से ड्रेजिंग करके 5.3 किलोमीटर लम्बी और करीब 45 मीटर चौड़ी कैनाल को विकसित किया जा रहा है.
रेत के टीले के बीच से चैनल बनने से अर्धचन्द्राकार घाटों की ओर गंगा का प्रवाह कम होगा. जिससे घाटों की ओर कटान भी कम होगा और सैकड़ों साल पुरानी काशी की धरोहर सदियों तक के लिए सुरक्षित हो जाएगी. इस पूरे प्रोजेक्ट में खर्च होने वाले रकम का करीब 40 से 50 प्रतिशत पैसा रेत या बालू के नीलामी से अर्जित करने की योजना है.
ड्रेजिंग का काम तेज़ी से चल रहा है. जिससे मॉनसून आने के पहले ख़त्म हो जाए. उन्होंने बताया कि इस योजना से घाटों की सीढ़ियों के नीचे की ख़ाली जग़ह और घाटों के किनारे का गहरापन कम हो जाएगा. इस जगह को करीब एक साल में गंगा के प्रवाह के साथ आने वाली सिल्ट खुद भर देगी. पर्यावरण और गंगा पर काम करने वाले वैज्ञानिक लम्बे समय से कछुआ सेंचुरी हटाने की सलाह दे रहे थे.
वाराणसी मंडल के कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने बताया कि इस प्रोजेक्ट से घाटों को कटान से बचाया जा सकेगा. साथ ही गंगा के उस पार रेत में बीच, आइलैंड जैसा विकसित किया जा रहा है. जिससे पर्यटक कुछ दिन और काशी में रुक सके. अस्सी घाट के दूसरी तरफ रामनगर में रेती पर बीच जैसा माहौल बनाया जाएगा और टापू को विकसित कर सैलानियों के लिए तैयार किया जाएगा. पर्यटन विभाग आइलैंड से पैराग्लाइडिंग, स्कूबा डाइव सहित अन्य एक्टिविटी से संबंधित सुविधाएं देगा.
सी-बीच की तरह विकसित हो रहे गंगा के छोर पर ऊंट, हाथी और घोड़े की सवारी भी पर्यटक कर सकेगा. साथ ही महत्वपूर्ण त्योहारों पर श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगा सकेंगे. अर्धचन्द्राकार घाटों पर देवदीपावली पर जलने वाले दीपों की ख़ूबसूरती भी इस आइलैंड से निहारा जा सकता है. खुद इस टापू पर जलने वाले दीप भी इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाएंगे. इस कार्ययोजना को प्रभावी बनाने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का सहारा भी लिया जा सकता है. गंगा पार पर्यटन का नया ठिकाना बनने से नाविकों समेत पर्यटन उद्योग से जुड़े सभी की आय बढ़ने की भी उम्मीद है.