निठारी हत्याकांड मामले में दोषी सुरेंद्र कोली को गुरुवार देर शाम गाजियाबाद जेल से मेरठ जेल शिफ्ट किया गया है. मेरठ जेल अधीक्षक एसएचएम रिजवी ने बताया कि कोली को 12 सितंबर को फांसी दी जाएगी और इस ओर सभी नियम-कानून का पालन किया जा रहा है. कोली को मेरठ जेल में हाई सिक्योरिटी जोन में रखा गया है.
बुधवार को गाजियाबाद सेशन कोर्ट की ओर से कोली का डेथ वारंट जारी कर दिया गया था. गाजियाबद के डासना जेल में फांसी दिए जाने की सुविधा नहीं होने के कारण सुरेन्द्र कोली को मेरठ जेल शिफ्ट किया गया है. जेल में कोली को आम कैदियों को दिए जाने वाला खाना ही दिया जा रहा है. गुरुवार को जेल से रिहा हुए एक कैदी ने बताया कि उसने जेल में कोली को देखा और वो एक कोने में बैठा हुआ था.
गाजियाबाद सेशन कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अतुल कुमार गुप्ता ने डेथ वारंट जारी करते हुए कहा था कि मामले में दोषी द्वारा सारे कानूनी तरीकों का इस्तेमाल कर चुका है और अब उसे प्राण निकलने तक फांसी पर लटकाया जाना चाहिए.
गौरतलब है कि राष्ट्रपति ने 27 जुलाई को कोली की दया याचिका खारिज कर दी थी. इसी के साथ कोली को फांसी देने की कानूनी प्रक्रिया शुरू करने का रास्ता खुल गया था. कोली के खिलाफ अभी भी हत्या के 11 मामले लंबित हैं. सीबीआई उसके खिलाफ 16 मामलों में आरोपपत्र दाखिल कर चुकी है, जिसमें उसने बच्चों का कथित यौन शोषण किया और फिर हत्या कर दी थी. यह मामला दिसंबर 2006 में उस समय प्रकाश में आया जब एक लापता लड़की के बारे में पता चला कि उसकी हत्या कोली ने की थी.
मामले की तफ्तीश के दौरान जांच दल को बच्चों की नृशंस हत्याओं के बारे में पता चला. कोली जिस मकान में घरेलू नौकर की तरह काम करता था, उसके निकट एक नाले से बच्चों के कंकाल बरामद हुए थे. कोली को रिम्पा हलदर की 2005 में हत्या के जुर्म में निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी. बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी सजा की पुष्टि की थी. इसके बाद साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को फैसले पर अपनी मुहर लगाई. कोली को सिलसिलेवार हत्यारा करार देते हुए अदालत ने कहा था कि उसके प्रति कोई दया नहीं दिखाई जानी चाहिए.
कोली के खिलाफ 16 मामले दर्ज किए गए. उसके नियोक्ता मोनिंदर सिंह पंढेर को भी रिम्पा हलदर मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसे बरी कर दिया. कोली के खिलाफ दर्ज 16 मामलों में से पांच में उसे फांसी की सजा सुनाई गई है, जबकि शेष अभी विचाराधीन हैं.