बिहार में सियासत के शीर्ष पर बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब उत्तर प्रदेश में शराबबंदी के मुद्दे को लेकर पैठ बनाना चाहते हैं. लखनऊ में 15 मई को होने वाले जनता दल यूनाईटेड के कायर्यक्रम में शराबबंदी मुख्य मुद्दा रहने वाला है. बीते दिनों वाराणसी में अपने भाषण के दौरान उन्होंने इस बाबत शुरुआती संकेत भी दे दिए थे, वहीं अब शराबबंदी के जरिए वह सपा सरकार पर हमला बोलने की तैयारी में हैं.
बनारस में 12 मई को हुए राज्यस्तरीय राजनैतिक कार्यकर्त्ताओं के पहले सम्मलेन में उन्होंने शराबबंदी को लेकर नया नारा दिया 'संघ मुक्त भारत और शराब मुक्त समाज'. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से उन्होंने पूरे देश में शराबबंदी लागू करने की मांग की.
नीतीश बिहार में शराबबंदी को मिल रहे समर्थन से खासे उत्साहित हैं. खासकर महिलाओं के समर्थन में कोई शक नहीं है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते उन्हें लगता है कि शराब को लेकर देशभर में उन्हें ऐसा ही समर्थन मिलेगा, लिहाजा वो इस मुद्दे के जरिए पहले उत्तर प्रदेश को साधना चाहते हैं फिर देश को.
एकला चलो की नीति, जरूरत या मजबूरी
उत्तर प्रदेश में वो शराबबंदी, महिला और अति पिछड़ा के भरोसे मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. हालांकि इसी फॉर्मूले पर उन्होंने बिहार का चुनाव जीत था, लेकिन बिहार की बात और थी. बिहार में महागठबंधन बना. जेडीयू के अलावे आरजेडी और कांग्रेस का साथ मिला, जिसकी वजह से अल्पसंख्यक वोटों का बिखराव रुका. लेकिन उत्तर प्रदेश में ये स्थिति नहीं दिखती. यहां जेडीयू का किसी से गठबंधन की कोई सूरत दिखाई नहीं देती है. शायद यही कारण है कि पार्टी महासचिव केसी त्यागी पहले ही कह चुके हैं कि जेडीयू यूपी में अकेले चुनावी मैदान में होगी.
अजित सिंह की बढ़ी पूछ
पिछले दिनों जेडीयू और अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के विलय की खबर आई थी, लेकिन अब इसकी कोई संभावना नहीं दिखती. हालांकि मर्जर का प्रस्ताव अजित सिंह की पार्टी की तरफ से ही था, लेकिन खत्म भी वही से हुआ. इस हवा से जेडीयू को तो को फायदा नहीं मिला, लेकिन राजनीति के हाशिए पर खड़े अजित सिंह को जरूर संजीवनी मिल गई. बीजेपी में उनकी पूछ बढ़ गई.
जेडीयू संगठन को देनी होगी मजबूती
उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी एक मजबूत धूरी के रूप में पहले से ही मौजूद हैं. तीनों की संगठन की जड़े भी काफी गहरी हैं, इसलिए जेडीयू के नेता भी मानते हैं कि लड़ाई आसान नहीं है. लेकिन जो मुद्दे उठाये जा रहे हैं उसमें कुछ न कुछ सफलता जरूर मिलेगी. पार्टी उतर प्रदेश में इस बार अतिपिछड़ा कार्ड खेलने को तैयार है.
वोट बैंक का गणित
इसके साथ ही नीतीश की कोशिश बिहार की तर्ज पर यूपी में भी महिला वोटरों में बैठ बनाने की होगी. इसके लिए वह बिहार की तरह पंचायतों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण, पुलिस में 35 फीसदी आरक्षण और शराबबंदी के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ सकते हैं. उन्हें उम्मीद है कि पार्टी को कुछ न कुछ जरूर सफलता मिलेगी. सवाल आधी आबादी का है. दूसरी तरफ यूपी में अति पिछड़ा भी अच्छी खासी संख्या में हैं. जबकि नीतीश कुमार की अपनी जाति कुर्मी की वोट भी 8 फीसद हैं और मौर्य 6 फीसद. ऐसे में यदि सब साथ खड़े हुए तो सफलता मिलनी तय मानी जा रही है.
यूपी में कौन होगा जेडीयू को चेहरा?
इन सबसे आगे एक बड़ा सच यह है कि यूपी में जेडीयू पर कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. खासकर संगठन के मामले में. दूसरी बात यह कि उतर प्रदेश में पार्टी के पास कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है. लेकिन पार्टी उम्मीद में है कि जेडीयू को आगामी विधानसभा चुनाव में बहुत ज्यादा भले ही न मिले, लेकिन वह अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करवाएगी.
...लेकिन पहले बिहार की लेनी होगी सुध
एक और जो नीतीश कुमार को ध्यान में रखनी होगी वह यह कि यूपी में उनका रास्ता बिहार को होकर जाता है. यानी चुनाव से पहले उन्हें बिहार में भी बहुत अच्छा काम करना होगा. खासकर अपराध नियंत्रण के क्षेत्र में. सीवान में पत्रकार की हत्या, गया में रोडरेज, दरभंगा में इंजीनियर की हत्या जैसी घटनाओं ने विपक्ष को मौका दे दिया है. ऐसे में सुशासन के दावे को धरातल पर साबित करना होगा, तभी उतरप्रदेश या देश में उनकी स्थिति मजबूत होगी.