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Noida Supertech Twin Towers demolition: समय 2 बजे, सेक्टर-93 के आसपास की कॉलोनियों के लोग अपने छतों और बालकनियों में पहुंचना शुरू हो गए थे. कई सोसायटियों में जद्दोजहद चल रही थी कि टेरेस की चाबी मिलेगी या नहीं. जिस सोसायटी में चाबी नहीं मिली वहां के कई लोग गाड़ियां लेकर निकल गए. बाकी बालकनियों में मोबाइल लेकर जम गए. पहले लोग ट्रायल ले लेना चाहते थे कि उनके मोबाइल में तस्वीर या वीडियो साफ आएगा या नहीं, जूम होने से पिक्सल फट जा रहे थे और बिना जूम दूर वालों को दिक्कत हो रही थी.
बच्चे ज्यादा उत्साहित थे, उन्हें लग रहा था कि उनसे बेहतर वीडियो कोई बना ही नहीं सकता. वहीं पैरेंट्स को यह पल फिसल जाने का डर सता रहा था, अगर बेटा नहीं ले पाया तो फिर किसी से मांगना पड़ेगा. और सोशल मीडिया पर दूसरे से लेकर वीडियो फोटो डालें फिर वो मजा नहीं आता. 2.20 तक यह चकल्लस चलती रही. जैसे-जैसे समय नजदीक आ रहा था धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. 2.22 तक आखिरकार फिक्स हो गया कि मोबाइल किसके हाथ में रहेगा.
आखिरकार वह घड़ी आ गई, एक दो लोगों की घड़ियां तेज थीं, 2.30 बज गए लेकिन गुबार नहीं उठा, मोबाइल को टावर पर टिकाए हुए ही सवाल उठने लगे कि 'लग रहा है आगे बढ़ा दिया' अरे कोई चैनल खोलो देखो तो मामला क्या है. कोई कह रहा है अरे भारत में इतनी बड़ी बिल्डिंग गिराई है, लेकिन कोई मोबाइल हटाने को तैयार नहीं. इतने में धुएं का गुबार उठा विस्फोट की आवाजें लोगों के कानों तक पहुंचीं और गुबार के साथ ही लोग चिल्ला पड़े गिरा दिया. अरे वो देखो धूल, धीरे-धीरे धूल का दायरा बढ़ने लगा.
15 मिनट बाद 5 किमी तक धूल की गंध महसूस की जाने लगी. लोग छतों से बालकनियों से नीचे उतरने लगे. चिंता सताने लगी कि बालकनी में जो कपड़े हैं उस पर धूल न जम जाए. बच्चों को सफोकेशन न हो जाए. 'माता जी तो अस्थमेटिक हैं उन्हें मास्क पहनने को बोलो'. आधे घंटे बाद पुलिस सायरन की आवाज आने लगी. जैसे-जैसे धुएं का गुबार फैल रहा था वैसे वैसे ही सायरन की आवाज बढ़ने लगी, प्रशासन ने पहले ही मना कर रखा था कि बालकनी या टेरेस पर नहीं जाना है इसलिए बहुत से लोगों ने कमरे में आना ही उचित समझा. नीचे आकर लोग टीवी से चिपक गए. 'अरे यार ये तो टीवी पर ज्यादा अच्छे से दिख रहा है'. दूसरा कुछ और कह रहा है अरे टीवी पर तो पहले भी देखा है विदेश की बिल्डिगों को गिरते हुए देखा है, 'आंखों से देखना था भाई फिर ऐसा नजारा देखने को कहां मिलेगा'.
शनिवार की रात का नजारा समय रात 11.30 बजे
पुलिस ने एक तरफ से जाने का रास्ता बंद कर दिया था लेकिन लोग, उधर से पहुंचने की कोशिश कर रहे थे. मेरा बेटा भी उस्ताहित था, हमें एकदम पास से पहुंचना था सेल्फी लेनी थी. रास्ता मिल गया, पुलिस बस अराजकता से बचाना चाहती थी लेकिन उसकी कोई ऐसाी मंशा नहीं थी कि कोई वहां पहुंच ही न पाए. हम लोग भी पहुंच गए. गाड़ियां आ रही थीं. लोग उतरते, सेल्फी लेते साथ में आए मम्मी, ताऊ, बेटे-बेटी को बताते कि यही वो बिल्डिंग है जो कल गिरा दी जाएगी. हर कोई खड़ी बिल्डिंग को कैमरे में कैद कर लेना चाहता. चैनल और यूट्यूबर भी अपने काम में लगे हुए थे. हर एक से यही सवाल क्यों आए हैं. क्या देखना चाहते हैं, अच्छा तो आप इतनी दूर से आए हैं. फोटो खींचते समय भी कुछ लोग आह भरते कि 'इसे गिराना नहीं चाहिए था'. दूसरा उसे झिड़क रहा होता कि देख रहे हो जो वाली बिल्डिंग है उसमें कुछ हवा-पानी जा पा रहा है. एमराल्ड कोर्ट के अंदर उन्हीं लोगों की गाड़ियां जा पा रही थीं जो वहां रह रहे थे. जानने वाले बाहर थे. बताया जा रहा है कि इतने बड़े धमाके के चलते आसपास की कुछ इमारतों में भी नुकसान हुआ है. एमराल्ड कोर्ट और एटीएस के कुछ फ्लैटों के शीशे टूटे हैं, एटीएस की 10 मीटर की चारदीवारी के भी गिरने की बात कही जा रही है.
आसपास की बिल्डिंगें तो कमजोर हो जाएंगी
सबसे काम की चर्चा दो लोगों में सुनने को मिली एक अंदर से आए थे और दूसरे उनसे मिलने आए थे, दोनों की उम्र 55-57 के आसपास रही होगी. जो अंदर से आए थे उनका कहना था कि टावर तो गिर जाएगा लेकिन दाग थोड़े मिट जाएगा, अब तो किराएदार भी आने से हिचकते हैं. हर किसी को डर है कि विस्फोट से बिल्डिंग को गिराने के बाद आसपास की बिल्डिंगों पर कुछ न कुछ तो असर पड़ेगा ही. धूल का गुबार इतना भर जाएगा कि साफ करने में महीनों लग जाएंगे. टावर जब खड़ा था तो अलग मुसीबत थी अब गिर जाएगा तो अलग मुसीबत होगी. किसको किसको जवाब देते फिरेंगे. जैसे-जैसे गिरने के दिन नजदीक आ रहे थे, वैसे-वैसे रिश्तेदारों दोस्तों के फोन भी बढ़ते जा रहे थे. पहला सवाल यही है कि तो अब 28 अगस्त को गिराया जाएगा न. वो तो यहां के निवासियों को कहीं और शरण लेनी पड़ी नहीं तो घर रिश्तेदारों से भर जाता. किसको मना कर पाते.
आपके बगल में ही था न ट्विन टावर...
चर्चा आम है कि ट्विन टावर के बगल में खड़े दूसरे टावरों को संदेह से देखा जाएगा. कल को अगर कोई बेचना चाहे तो उसे समझौता करना पड़ेगा. किराएदार आएगा तो 20 बार पूछेगा कि आपके बगल में ही थे न ट्विन टावर जो गिरा दिए गए. इस फ्लैट पर कोई असर तो नहीं है न, और मकान मालिक को इसका जवाब देना पड़ेगा. प्रॉपर्टी डीलर सस्ते में सौदा कराने का वादा करेंगे, अरे ट्विन टावर के बगल का है मकान, सस्ते में दिला देंगे. टेक्नॉलजी से दोनों टावर गिराए गए हैं कहीं कोई असर नहीं पड़ा है जी. दूसरी ओर फ्लैट मालिक को समझाएगा कि देखिए जी, बगल के ट्विट टावर गिराए गए हैं. कुछ न कुछ तो असर पड़ा ही होगा जी. कहां कोई स्टडी हुई है. बेचकर निकल लेने में ही फायदा है. आपको कहीं और दिला देंगे.
बहुत दिनों तक यह चर्चा चलती रहेगी, रिश्तेदारियों में ऑफिस में, स्कूल में यह बताया जाएगा कि इन्हीं के घर के पास थे वो ट्विन टावर जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गिरा दिया गया. बड़ा सवाल यह है कि वह जमीन पार्क के लिए आवंटित थी तो क्या वहां पर पार्क बनाया जाएगा. फिलहाल ऐसा आश्वासन कहीं से नहीं मिला है. बस कयास ही लगाए जा रहे हैं.
सवाल और भी बहुत से हैं जो लोग एक-दूसरे से पूछ रहे हैं क्योंकि और कोई चारा नहीं. सरकारें और अफसर जवाब देना मुनासिब नहीं समझते. वो तो ट्विन टावर के नक्शे तक रेजिडेंट को देने को तैयार नहीं थे, अफसर कहते थे कि बिल्डर से पूछकर बताएंगे कि आपको नक्शे देने हैं कि नहीं. लिफाफे मैनेज हुए लेकिन लोग मैनेज नहीं हो पाए और मामला यहां तक आ गया. फिर उनसे क्या ही उम्मीद. अब तो इस दर्द के साथ ही जीना होगा. सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आसपास की बिल्डिंगों पर कोई असर पड़ा है या नहीं? अगर सरकार या प्रशासन ने कोई स्टडी करा दी तब तो ठीक नहीं तो झूलते रहिए इसी तरह. सुनते रहिए लोगों की. देते रहिए जवाब, गुजरते रहिए मानसिक यंत्रणा से, सुप्रीम कोर्ट ने टावर तो गिरवा दिए, एक तरह से न्याय दिलवा दिया लेकिन जिम्मेदारों पर तो सरकार को एक्शन लेना था उसका क्या हुआ, जांच कहां तक पहुंची. कैसे हुआ खेल क्या यह भी कभी बाहर आ पाएगा. क्या इस घटना के लिए केवल बिल्डर जिम्मेदार है. उसने जो किया उसका परिणाम भुगत लिया लेकिन अफसरों को दंड क्यों नहीं मिला.