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नोटबंदी की मार: यूपी में खेती, बुनकरी तार-तार

एक तरफ नगदी का संकट दूसरी ओर छोटे कस्बों में सहकारी बैंकों से नोट बदलने और जमा करने पर लगी रोक से किसानों की परेशानी बढ़ गई है. न तो पैसे मिल रहे हैं न ही सहकारी बैंकों में पैसे जमा हो रहे हैं ऐसे में किसान अपना काम छोड़ बैंकों की कतार में खड़ा है.

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नोटबंदी से परेशान बुनकर
नोटबंदी से परेशान बुनकर

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नोटबंदी का असर अब गांव की अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा है. नगदी के दम पर चलने वाली कृषि की अर्थव्यवस्था नगदी नहीं होने से चरमरा रही है. एक तरफ किसान परेशान है दूसरी ओर बुनकर. जिनके पास अपना खाता नहीं है और जो सिर्फ नगदी लेकर जीविका चला रहे थे उनके लिए हालात और भी खराब हैं. उन किसानों को जिन्हें इस वक्त अपने खेतों में बुवाई के लिए होना चाहिए था वो इस वक्त बैंकों के चक्कर लगा रहे हैं. इस वक्त रबी की बुआई का समय है, किसान के लिए गेंहू, आलू और गन्ना रोपने का समय है ऐसे में नगदी का संकट दोहरे मार के तौर पर उनके सामने आकर खड़ा है.

एक तरफ नगदी का संकट दूसरी ओर छोटे कस्बों में सहकारी बैंकों से नोट बदलने और जमा करने पर लगी रोक से किसानों की परेशानी बढ़ गई है. न तो पैसे मिल रहे हैं न ही सहकारी बैंकों में पैसे जमा हो रहे हैं ऐसे में किसान अपना काम छोड़ बैंकों की कतार में खड़ा है.

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नगदी की मार सिर्फ किसानों पर ही नहीं है बल्कि छोटे बुनकर भी खासे परेशान है, एक तो काम छोड़कर उन्हें बैंकों में कतार में खड़ा होना पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर उनकी बुनकरी के कच्चे माल के लिये उनके पास पैसे नहीं है. सहकारी बैंकों में बड़े नोटों की नगदी जमा नहीं होने से किसान के सामने कई संकट के साथ सामने आ गए है.

बुंदेलखंड के किसानों की बढ़ रही मुश्किलें
इस कोहराम और हाय तौबा से बुंदेलखंड का किसान भी अछूता नहीं है. किसानों की बात करें तो इस नोट बंदी के बाद उस पर जो सकंट आन पड़ा है उसका सामना करना उसके लिए आसान समझ नहीं आ रहा है. नोटबंदी के बाद उसके सामने सबसे बड़ी मुसीबत आई है तो वह है बुवाई की. सरकार के इस आदेश ने सरकारों के लिए मुश्किलें पैदा कर दी है क्योंकि यह समय बुवाई का है लेकिन किसान बैंक में खड़ा है.

झांसी के रक्सा गांव के भारतीय स्टैट बैंक की लाइन में लगे किसान सीताराम का कहना है वह पूरी तरह खेती पर निर्भर है. पिछले कई वर्षों से कुदरत की मार ने उसे तोड़ दिया है इस वर्ष सूखे के बाद रबी की फसल से वह काफी उम्मीद लगाये हुए था, पलेवा करने के बाद अब बुबाई होनी है. जिसके लिये वह बीज और खाद लेने के लिये जिला सहकारी समिति के सेंटर गया तो 500 और 1000 के नोट उससे यह कहते हुए नहीं लिये गये कि यह नोट कल से मोदी सरकार ने ग्रामीण बैंक मे बंद कर दिया है. जिससे बीज और खाद अब नहीं दिया जा सकता है. अगर बीज और खाद लेना है तो पहले नोट बदल के लाओ, दो दिन से नोट बदलने के लिये लाइन मे लगा हूं. लेकिन जब तक नंबर आता है तब तक बैंक मे पैसे खत्म हो जाते है. दो दिन खराब कर बैंक में लाइन लगाकर नोट बदलने के बाद उसे केवल 4000 रुपये ही मिलने हैं, इन नोटों में वह अपने घर का खर्च चलाये या फिर खेती की बुवाई करें.

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बुवाई पर पड़ेगा सीधा असर
खेत में बुवाई कर रहे किसान जगदीश सिंह यादव का कहना है कि बीज बड़े किसान अपनी फसल से ही निकाल लेते हैं, खाद सहकारी समिति के सेंटर से हम दो दिन पहले ही लाये थे. इसलिए हम अपने खेत की बुवाई समय पर कर रहे हैं, लेकिन यदि अभी किसान बुवाई से वंछित रह जायेगा. तो उसे आगे बुवाई करने में काफी परेशनी होगी और उसकी फसल खराब हो जायेगी. मोदी जी को किसानों के लिये इस ओर भी सोचना चाहिए. जब किसान जगदीश सिंह से मोदी के नोट बंदी के फैसले पर सवाल किया गया तो उसने मोदी के इस फैसले को देशहित में बताया.

वाराणसी के बुनकर भी हैं परेशान
नोटबंदी का सीधा असर वाराणसी के बुनकरों पर भी देखने को मिल रहा है, रोजाना काम कर जीवन यापन करने वाले बुनकर आजकल बैंक की कतार में खड़े है, पहले जहां वह दिन में 12 से 18 घंटे काम करते थे अब बस 2 से 30 घंटे ही काम कर पा रहे है.

नोटबंदी से परेशान इकलाख ने कहा कि पहले ही दिन बदहाल थे और घर का खर्च मुश्किल से चलता था. लेकिन बैंक की लाइन में लगना पड़ता है जिससे मुश्किलें बढ़ रही है. दिन भर लाइन में लगते है और जब नंबर आता है तब पता चलता है कि पैसे ही नहीं हैं लिहाजा बचे हुए समय में ये जैसे तैसे अपना काम कर रहे है और अब इन्हें ये चिंता सताने लगी है कि आगे क्या होगा.

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क्योंकि बचे पैसे बदले नहीं जा रहे और उन पैसों को बदलने में जो समय खराब हो रहा है उससे बुनकरी का समय चला जा रहा. इकलाख ने कहा कि लाइन है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही और बुनकर घर को चलाने के लिए चिंतित है. ऐसा सिर्फ इनके साथ ही नहीं है बल्कि पूरा बुनकर समुदाय जिसमें किसी ने बेटी की शादी के लिए पैसे बचाकर रखे थे वह भी नोटों के बंद होने से प्रभावित दिखाई दे रहे हैं.

गौरतलब है कि हथकरघा साड़ी के बुनकर रोजाना 12 से 18 घंटे काम करके 150-200 रुपये कमाते है. कम पैसों की कमाई से पहले ही बुनकर बेहाल था अब उस पर से उन्ही पैसों से कटौती करके जो बचाया था अब उसे बचाने की जद्दोजहद एक बार फिर से बुनकरी पर प्रभाव डाल रही है. साड़ी व्यवसाय से जुड़े लोगों की मानें तो इस स्थिति में बाजार में भी डिमांड कम हो गई है और बुनकर लाइन में है तो लिहाजा प्रभाव पूरे व्यवसाय पर है.

चित्रकूट और बांदा में हड़ताल
जिला सहकारी बैंकों में रिजर्व बैंक द्वारा लगाई गयी 500 और 1000 नोटों की रोक का विरोध शुरू हो गया है. यूपी के बांदा जिला सहकारी बैंक से सम्बद्ध 86 सघन सहकारी सोसाइटी और 26 उपकेंद्र गुरुवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए. बांदा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव से सम्बद्ध हैं इन समितियों में किसानों को लोन, खाद और बीज देने का काम होता है, हड़ताल पर जाने से यह काम तुरंत ठप हो गया.

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बुंदेलखंड के बांदा और चित्रकूट दोनों जिलों में खेती किसानी का ये सीजन है. वित्तमंत्री को प्रेषित ज्ञापन के बाद बांदा जिला सहकारी समिति के चेयरमैन गौरव यादव ने गुरुवार शाम 4 बजे 112 केंद्रों में हड़ताल की घोषणा की. हालांकि इस दौरान दोनों जिलों की 28 डिस्ट्रिक्ट कॉपरेटिव शाखाऐं हड़ताल पर नही जाएगीं लेकिन विरोधस्वरुप कर्मचारी काली पट्टी बांध कार्य करते रहेंगे.

बहरहाल ग्रामीण अर्थव्यवस्था इस वक्त गहरे संकट से जूझ रही है और अगर जल्द ही उनके लिए नगदी का इलाज नहीं ढूंढ़ा गया गया तो हालात और खराब हो सकते है.

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