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क्‍या अब 'कठोर' हो गए मुलायम सिंह यादव?

अजीब इत्तेफाक है कि समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने पहले सौ दिन के कार्यकाल की समीक्षा में अपने बेटे और राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौ में से सौ नम्बर दिए, फिर अचानक 'कठोर' होकर सरकार की कार्यशैली पर नाराजगी जाहिर की

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मुलायम सिंह यादव
मुलायम सिंह यादव

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अजीब इत्तेफाक है कि समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने पहले सौ दिन के कार्यकाल की समीक्षा में अपने बेटे और राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौ में से सौ नम्बर दिए, फिर अचानक 'कठोर' होकर सरकार की कार्यशैली पर नाराजगी जाहिर की और कार्यकारिणी की बैठक में कठोरतम रुख अपनाते हुए मंत्री, विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को अनुशासन में रहकर आचरण सुधारने की नसीहत दी है.

वैसे भी प्रदेश की जनता ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की 'बहन जी' से सत्ता छीनकर सपा के 'टीपू भइया' को सौंपते समय उनकी 'उम्मीद की साइकिल' पर हद से ज्यादा 'उम्मीद' की थी. लेकिन, साढ़े चार माह के कामकाज के मूल्यांकन से पूर्ववर्ती मायावती सरकार और इस सरकार में कोई खास फर्क नहीं रहा, अच्छा हुआ कि सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव समय रहते चेत गए और पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में मंत्री, विधायकों एवं कार्यकर्ताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ा दिया. वरना, आगामी लोकसभा चुनाव की वैतरणी पार करने में भारी मशक्कत करनी पड़ सकती थी. 

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इन सब के बावजूद एक बात समझ में नहीं आ रही है कि एक माह पूर्व सपा प्रमुख ने सरकार के सौ दिन पूरे होने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौ में से सौ नम्बर दे दिए थे, कुछ दिन पहले ही वह सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न् लगाते हुए 'नाराजगी' जाहिर की. मुलायम अब अचानक 'कठोर' हो गए और सभी को अनुशासन के दायरे में रहकर अपने 'आचरण' में सुधार करने पर बल दिया.

शनिवार को लखनऊ में हुई प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में मुलायम सिंह यादव के रुख से साफ जाहिर है कि सरकार व पार्टी से जुड़े तीनों वर्गो (मंत्री, विधायक व कार्यकर्ता) की सोच में भारी बदलाव हो गया है, जो समाजवादी विचारधारा से मेल नहीं खाता. रही बात अनुशासनहीनता की तो यह प्रमाण अखिलेश के शपथ लेते ही मिल गया था, जब अति उत्साहित कार्यकर्ता मंच पर चढ़ गए थे.

उत्तर प्रदेश विधानसभा में बसपा विधायक दल के उपनेता और बांदा जनपद की नरैनी सीट से विधायक गयाचरण दिनकर कहते हैं, "अपनी सरकार के मंत्री, विधायकों और कार्यकर्ताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाकर मुलायम ने बसपा की उस आशंका को बल प्रदान किया है, जो चुनाव के दौरान बसपा ने सपा के सत्ता में आने पर 'गुंडाराज' कायम होने की आशंका जाहिर की थी."

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वह कहते हैं कि अखिलेश सरकार के साढ़े चार माह 'बहन जी' द्वारा संचालित जन कल्याणकारी योजनाओं के नाम बदलने में ही बीता है.

बुजुर्ग राजनीतिक विश्लेषक रणवीर सिंह चौहान का मानना है कि मुलायम ने कार्यकारिणी की बैठक में ऐसी नसीहत देकर विपक्ष को घर बैठे मुद्दा पकड़ा दिया है. वह कहते हैं, "बसपा, भाजपा और कांग्रेस शुरू से ही सपा कार्यकर्ताओं पर अनुशासनहीनता और उद्दंडता करने के आरोप लगाती रही हैं, जिसे एक तरह से मुलायम ने स्वीकारा है."

कुल मिलाकर यह कहना गलत न होगा कि बेटे की सरकार से नाखुश मुलायम सिंह अब 'मुलायम' नहीं 'कठोर' हो चुके हैं, अगर समय रहते सरकार से जुड़े लोग अपने 'आचरण' में सुधार कर 'समाजवादी' होने का परिचय नहीं दिया तो उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

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