उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने शुक्रवार, 15 मार्च को अपना एक साल पूरा कर लिया. एक वर्ष के शासनकाल में सरकार के नाम कुछ उपलब्धियां रहीं तो कई मौकों पर नाकामी का सामना करना पड़ा.
अखिलेश सरकार ने बेरोजगारी भत्ता, कन्या विद्या धन, किसानों की ऋण माफी, मुफ्त लैपटॉप वितरण जैसे बड़े चुनावी वादों को पूरा किया. हालांकि समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं और कार्यकर्ताओं की बेलगाम गुंडागर्दी और लगातार बिगड़ती कानून-व्यवस्था ने अखिलेश सरकार पर प्रश्नचिह्न भी लगाए हैं.
समाजवादी पार्टी धर्मनिरपेक्षता के नारे पर उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई थी. उसी के शासनकाल में सूबे में एक साल में सांप्रदायिक हिंसा की 25 घटनाएं हुईं.
15 मार्च 2012 को बदलाव के वाहक के तौर पर उत्तर प्रदेश की कमान संभाली. विलायत से पढ़े-लिखे नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जनता को ढेरों उम्मीदें थीं, लेकिन विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने वाली सपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं का हुड़दंग अखिलेश के शपथ ग्रहण के दिन ही नजर आ गया.
पहले दिन ही साफ हो गया था कि अखिलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुंडाराज को बढ़ावा देने वाली पार्टी की अपनी छवि को बदलने की होगी. परंतु, बीते एक साल के दौरान हुए घटनाक्रम तो यही कहते हैं कि प्रदेश में गुंडाराज की वापसी अधिक पुख्ता हुई है. इस गुंडाराज ने अखिलेश के बहुप्रतीक्षित सुशासन के सारे चुनावी वादों को भी धता बता दिया.
पिछले एक वर्ष में उत्तर प्रदेश दो दर्जन से ज्यादा सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं का गवाह बना. इन घटनाओं में करीब 15 लोगों की मौत हुई और करीब सौ लोग घायल हुए. बाजार बंद रहे और आम लोगों को जबर्दस्त नुकसान हुआ.
उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे अखिलेश: भाजपा
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि विधानसभा चुनाव के समय बाहुबली डीपी यादव और मुख्तार अंसारी को अखिलेश ने समाजवादी पार्टी में शामिल नहीं करके अच्छा काम किया था.
जनता को लगा कि अखिलेश समाजवादी पार्टी की परंपरागत 'गुंडा छवि' को बदलना चाहते हैं. लोगों ने समझा कि उनके मुख्यमंत्री बनने से प्रदेश में बदलाव की बयार बहेगी, लेकिन सारी उम्मीदें एक साल के अंदर ही टूट गईं. पाठक ने कहा कि कानून व्यवस्था और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी पर लगाम लगाने में अखिलेश पूरी तरह से नाकाम साबित रहे हैं.
अखिलेश ने मढ़ा मीडिया पर दोष
उधर, अखिलेश सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के पीछे विपक्षी दलों का हाथ बताते हुए कहते हैं कि जो लोग इन हिंसा की घटनाओं में गिरतार किए गए हैं. उनके बारे में पता किया जाए कि वो किस राजनीतिक दल के लोग हैं.
कानून-व्यवस्था को खराब मानने से इंकार करते हुए अखिलेश ने बुधवार को मीडिया पर ही दोष मढ़ दिया. अखिलेश ने कहा कि कानून-व्यवस्था के मुद्दे को मीडिया ने ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है.
अखिलेश ने एक साल के अंदर हालांकि बेराजगारी भत्ता, कन्या विद्या धन, मुत सिंचाई, समाजवादी स्वास्थ्य सेवा के तहत 108 एबुलेंस सेवा, किसानों का पचास हजार रुपये तक का कर्ज माफ करना, वूमेन पावर लाइन सेवा, छात्र संघ बहाल करना, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे निर्माण को मंजूरी, लखनऊ में मेट्रो रेल शुरू करना का निर्णय जैसे कई सराहनीय काम भी किए.
मुलायम खुद भी खुश नहीं
सौ दिन पूरे होने के मौके पर अखिलेश सरकार को सौ में से सौ नम्बर देने वाले समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी सरकार के प्रदर्शन पर सवाल उठाकर पिछले दिनों ये कह चुके हैं कि सरकार के कामकाज से लोगों के अंदर जो फील गुड होना चाहिए, वो नहीं हो रहा है.
पिछले कुछ मौकों पर सार्वजनिक रूप से मंत्रियों, विधायकों और नेताओं को आचरण पर नाराजगी जताकर उन्हें तत्काल चेतने और आचरण सुधारने की धमकी दे चुके हैं, लेकिन इसका असर होता नजर नहीं आया.
...तो सुधर सकते हैं हालात: पूर्व पुलिस महानिरीक्षक
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एस आर दारापुरी के अनुसार, नेताओं की गुंदागर्दी की कई घटनाओं में अखिलेश सरकार ने अपने नेताओं पर कारवाई के बजाय उल्टे अफसरों पर ही गाज गिरा दी, जिस कारण उनका मनोबल और बढ़ गया. जरूरत है कि अफसरों को प्रोत्साहित करके गुंदागर्दी करने वाले नेताओं पर कड़ी कारवाई करके एक कड़ा संदेश देने की, तभी हालात सुधरेंगे.
साख पर बट्टा लगा
बिजली बचाने के लिए वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को शाम सात बजे के बाद बिजली आपूर्ति बंद करने के आदेश और विधायकों को विकास फंड से अपने निजी इस्तेमाल के लिए बीस लाख रुपये तक का वाहन खरीदने की स्वीकृति जैसे कुछ फैसलों को 12 घंटे के अंदर वापस लेने से अखिलेश यादव की छवि पर बट्टा लगा.
राजनीतिक और नौकरशाही दोनों ही स्तर पर बहुत से शक्ति केंद्र होने के आरोपों से लोगों में यह संकेत गया है कि मुख्यमंत्री का सरकार पर पूर्ण नियंत्रण नहीं है.
बसपा ने अखिलेश को बताया बेबस, लाचार, कमजोर
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के वरिष्ठ नेता एवं उत्तर प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं कि अखिलेश यादव बेबस, लाचार और कमजोर मुख्यमंत्री के तौर पर नजर आते हैं. उनके राज में लगता ही नहीं है कि उत्तर प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज है.
उन्होंने कहा कि अखिलेश सरकार पिछले बजट का आधा हिस्सा खर्च नहीं कर पाई. ये सरकार की एक बड़ी नाकामी को दर्शाता है. कहा जा सकता है कि ये सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है.
तारीफ लायक कोई काम नहीं किया: कांग्रेस
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं कि मुख्यमंत्री अखिलेश ने एक साल में कोई ऐसा काम नहीं किया, जिससे उनकी तारीफ की जाए. लैपटॉप और बेरोजगारी भत्ता जैसे कुछ 'लॉलीपॉप' को छोड़ दिया जाए तो विकास के लिए राज्य सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
'अपनों' ने थपथपाई पीठ
उधर, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोपाल यादव विपक्षी दलों के आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं कि मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में जिस तरह विकास को गति दी है, वह सराहनीय है.