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महाराष्ट्र में शुरू हुआ लाउडस्पीकर विवाद उत्तर प्रदेश भी पहुंच चुका है. यहां पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद से कई जगहों से लाउडस्पीकर हटाना शुरू कर दिया गया है. लेकिन इस कार्रवाई के बीच आजतक ने एक ऐसा स्टिंग ऑपरेशन किया जिससे पता चलता है कि यूपी पुलिस लाउडस्पीकर विवाद पर कार्रवाई तो करना चाहती है लेकिन उसके पास ऐसा करने के लिए जरूरी संसाधन ही उपलब्ध नहीं हैं.
असल में कितनी आवाज में मस्जिद में अजान या कह लीजिए मंदिर में भजन चलने हैं, इसको लेकर नियम होते हैं. एक तय सीमा से ऊपर आवाज होने पर कार्रवाई की जा सकती है. लेकिन जिस यंत्र से इसे चेक किया जाता है, यूपी में कई पुलिस थानों में वही उपलब्ध नहीं है. जब आजतक की टीम सबसे पहले गाजियाबाद के मुरादनगर स्टेशन पहुंची तो वहां पर मुलाकात सीनियर सब इंस्पेक्टर सोमपाल से हुई. उनके साथ हेड कॉन्स्टेबल कमल हसन भी मौजूद थे. उनसे सवाल पूछा गया उनके थाने में डेसिबल मीटर रखा है या नहीं. अब सोमपाल ने तो सवाल के जवाब में बोला कि चेक करना पड़ेगा, लेकिन थोड़ी देर में उनके साथी ने स्वीकार कर लिया कि थाने में ऐसा कोई डिवाइस मौजूद ही नहीं है.
(इंस्पेक्टर सोमपाल)
अब हैरानी की बात ये थी कि इन दोनों पुलिस अधिकारियों को इस बात तक की जानकारी नहीं थी कि इन डिवाइस का इस्तेमाल कैसे किया जाता है. ऐसे में उन्होंने ये बोलकर बात टाल दी कि कौन इन्हें देने वाला है, कहां से ये मिलने वाले हैं.
(कांस्टेबल कमल)
गाजियाबाद से आगे जब मेरठ के परतापुर पुलिस स्टेशन पहुंचे तो वहां भी स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं थी. उनके पास भी ना डेसिबल डिवाइस था ना कोई दूसरी टेक्नोलॉजी. वहां पर मौजूद पुलिस इंस्पेक्टर सिर्फ कहते रहे कि आवाज को बाहर नहीं आने देंगे. उन्होंने ये भी बताया कि प्रशासन की तरफ से उन्हें कोई साउंड मीटर नहीं दिए गए हैं. वही बात जब मेरठ के ही सदर स्टेशन में मौजूद SHO देव सिंह रावत से की गई तो उन्होंने एक्शन लेने पर तो जोर दिया. ये भी बताया कि पीस कमेटी का गठन हुआ है. लेकिन वहां भी टेक्नोलॉजी नदारद रही और पुराने तौर-तरीकों से आवाज को कंट्रोल में रखने पर जोर दिया गया.
(SSI शर्मा)
अब यहां तक तो सिर्फ पुलिस वाले इतना स्वीकार कर रहे थे कि उनके पास डिवाइस नहीं हैं, लेकिन जब मुजफ्फरनगर के SHO से बात की गई तो उन्होंने सारी जिम्मेदारी उन ग्राहकों पर डाल दी जो इन माइक्रोफोन का इस्तेमाल करते थे. उन्होंने कहा कि ये तो उनकी जिम्मेदारी है जो इनका इस्तेमाल करते हैं. इस बारे में लोगों को दुकानदार से पूछना चाहिए. लोगों को पहले से पता है कि कितनी आवाज रखी जा सकती है, ऐसे में अब जो प्रोडोक्ट खरीदा जा रहा है, उसकी सारी जानकारी दुकानदार से ले लेनी चाहिए.
यहां पर ये जानना जरूरी हो जाता है कि उत्तर प्रदेश में हर कार्यक्रम के लिहाज से डेसिबल लिमिट पहले से तय रखी गई है. इंडस्ट्रियल इलाकों में 75 dB, कॉमर्शियल इलाकों में 65 dB और रेसिडेंशियन इलाकों में 55 dB रखी गई है.