नेता जी के चुनावी वादे से बार-बार ठगी गई बुंदेलखण्ड की जनता इस बार नेताओं को सबक सिखाने के लिए तैयार दिख रही है. लोग अपने जनप्रतिनिधियों से खुलकर नाराजगी जता रहे हैं. यदि यह स्थिति कायम रही तो लोकसभा चुनाव में जीत-हार का समीकरण बदल सकता है.
जनता की नाराजगी के एक नहीं हजार कारण हैं. बुंदेलखण्ड की बदहाली से यह साफ जाहिर है. उत्तर प्रदेश के एक छोर में बसे बुंदेलखण्ड के सबसे पिछड़े जनपदों में शुमार होने वाला ललितपुर यूं तो 1974 में जिले की शक्ल में आया, लेकिन यहां की 12 लाख से अधिक की आबादी आज भी विकास की बाट जोह रही है.
पिछड़ा जनपद होने के बावजूद ललितपुर ऐतिहासिक रूप से बुंदेलखण्ड के सबसे समृद्ध जनपदों में से एक है. यहां चंदेलकालीन और गुप्तकालीन कई मंदिर हैं. ये मंदिर ललितपुर के समृद्धशाली इतिहास की गवाही देते हैं. बेतवा नदी के किनारे स्थित देवगढ़ में गुप्तकाल का एकमात्र विश्व प्रसिद्ध दशावतार मंदिर है. इसके अलावा देवगढ़ भी विश्व प्रसिद्ध है.
भौगोलिक रूप से पथरीला इलाका होने के कारण ललितपुर में खनिज सम्पदाओं का बेशकीमती भंडार है. यहां ग्रेनाईट, पैरोलाइड, डायस्पौर, रॉकफास्फेट और इमारती पत्थरों की कई खदानें हैं. इसके अलावा ललितपुर की धरती में सोना, तांबा, प्लेटिनम, आदि के भी होने की पुष्टि हो चुकी है.
इसे बुंदेलखण्ड की बदनसीबी ही कहा जाएगा कि नेताओं ने यहां के नाम पर राजनीति तो खूब की, लेकिन विकास के नाम पर कुछ भी नहीं किया. कुदरत हमेशा से ही किसानों को छलती आई है. रोजगार की बात करें तो कोई बड़ा कारखाना नहीं है. जनता के हिस्से में हमेशा धोखा ही आया है. यदि सियासतदान अपने वायदे का एक फीसदी भी निभाते तो बुंदेलखण्ड की तस्वीर दूसरी होती.