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देश की सबसे पुरानी रामलीला में शिरकत करेंगे पीएम मोदी, 500 साल पहले तुलसीदास ने की थी शुरू

इस रामलीला के बारे में माना जाता है कि करीब पांच सौ साल पहले सबसे पहले रामलीला की शुरुआत यहीं से हुई थी जब गोस्वामी तुलसीदास ने एक साथ चित्रकूट, वाराणसी और लखनऊ में इसकी नींव रखी. कहते हैं पहले ये रामलीला नहीं बल्कि राम कथा का मंचन होता था.

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हर साल दिल्ली में दशहरा मनाते हैं पीएम मोदी
हर साल दिल्ली में दशहरा मनाते हैं पीएम मोदी

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यूं तो प्रधानमंत्री हर साल दिल्ली की रामलीला में दशहरे के दिन शिरकत करते हैं लेकिन ये पहला मौका जब प्रधानमंत्री, देश की सबसे पुरातन रामलीलाओं में एक लखनऊ की ऐशबाग रामलीला में रावण बध देखेंगे. भले ही इसपर सियासत हो कि चुनावी साल में पीएम मोदी लखनऊ की रामलीला में शिरकत कर रहे हैं लेकिन दूसरा सच ये भी है कि पिछले 70 सालों से लखनऊ की ऐशबाग रामलीला समिति हरबार प्रधानमंत्री को न्योता भेजती है, लेकिन पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने उस रामलीला का आमंत्रण स्वीकार किया है जिसे खुद गोस्वामी तुलसीदास ने अपने जीवनकाल मे शुरू किया था और ये तब से आजतक ये रामलीला अनवरत जारी है.

ऐशबाग के बारे में कहा जाता है कि पहली रामलीला खुद गोस्वामी तुलसीदास ने यहां देखी थी. गंगा-जमुनी तहजीब की प्रतीक, ऐशबाग की रामलीला के बारे में कहा जाता है कि खुद तुलसीदास ने इसकी शुरुआत की थी लकिन ऐशबाग की रामलीला को असल पहचान दी अवध के नबाब असफउद्दौला ने जिसने लखनऊ के ऐशबाग इलाके में रामलीला के लिए साढे छह एकड़ जमीन दी थी. इस नबाव असफउद्दौला को इस गंगा-जमुनी तहजीब का जनक माना जाता है क्योंकि कहा जाता कि नवाब ने न सिर्फ रामलीला के लिए जमीन दी बल्कि खुद भी इस रामलीला मे बतौर पात्र शिरकत करते रहे. यही असफउद्दौला हैं जिन्होंने लखनऊ में एक साथ बराबर-बराबर ईदगाह और रामलीला को 6.5 एक़ड जमीन एक साथ दी थी जो गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतीक के तौर पर खड़ा है.

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500 साल पहले शुरू हुई थी रामलीला
इस रामलीला के बारे में माना जाता है कि करीब पांच सौ साल पहले सबसे पहले रामलीला की शुरुआत यहीं से हुई थी जब गोस्वामी तुलसीदास ने एक साथ चित्रकूट, वाराणसी और लखनऊ में इसकी नींव रखी. कहते हैं पहले ये रामलीला नहीं बल्कि राम कथा का मंचन होता था जिसमें इस जगह पर अयोध्या के आए साधु-संत रामकथा का नाटक खेलते थे. माना जाता है कि चौमासा में जब अयोध्या से साधु-संत निकलते थे तो चार महीनों के लिए इसी ऐशबाग में उनका डेरा डलता था और दशहरे के वक्त इस मैदान में वो लोग रामकथा और रामकथा का पात्र अभिनय भी करते थे. अवध के नवाबों के वक्त यहां मैदानी रामलीला होती थी, जहां मैदान में पात्र अभिनय करते थे और लोग ऊंचे पर बैठकर देखते थे. तुलसीदास से लेकर गदर के वक्त यानि 1857 तक यहां दशहरे में साधुओं का डेरा लगता था और मैदानी रामलीला का मंचन होता था जहां सिर्फ रामनाम की गाथा और रामचरित मानस का अभिनय हुआ करता था.

कुछ सालों तक बंद रही रामलीला
गदर के वक्त यानी 1857 से 1859 तक ये रामलीला बंद रही लेकिन 1860 में पहली बार ऐशबाग रामलीला कमिटी का गठन हुआ तब से लेकर आजतक यानी करीब डेढ़ सौ सालों के बाद भी यहां रामलीला का मंचन मुसलसल चला आ रहा है. पहले इस रामलीला मैदान के बीचोंबीच बने तालाबनुमा मैदान में रामलीला होती थी और चारों ओर ऊंचाई पर बैठे लोग इसे देखते थे. रामलीला बीचोंबीच होती थी और लोग चारोंतरफ होते थे लेकिन पिछले कुछ दशकों से मंचपर रामलीला होने लगी तो तब से इसका स्वरूप बदलता गया. पहले लोग मैदानी रामलीला देखते थे लेकिन वक्त के साथ यहां की रामलीला भी बदलती गई, अब इस रामलीला में तकनीक का पूरा प्रयोग होता है, बड़े एलईडी स्क्रीन,लेजर लाइट्स और बड़े कलाकार इस रामलीला के मंच की शोभा बढ़ाते हैं.

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जमीन को रामलीला के नाम किया
इतिहासकार बताते हैं असफउद्दौला को रामलीला देखने और खेलने का बड़ा शौक था. वो हर साल दस दिनों तक इसके मंचन का आनंद लेता था और इसका पात्र भी बनता था, चूंकि साधुओं का जमावड़ा हर वक्त होता था. इसलिए उसने यहां की जमीन को ही रामलीला के नाम कर दिया. बताते हैं जब इस नवाब में इसकी वसीयत लिखी तो ईदगाह और रामलीला मैदान को एकसाथ वसीयत किया. कहते हैं गोस्वामी तुलसीदास ने खुद चार रामलीलाओं का जिक्र किया है जिसमें लखनऊ के इस रामलीला का भी जिक्र है. पूरे उत्तर भारत में जितनी भी रामलीला होती है उसमें सबसे बड़ी भव्य और बड़ी रामलीला इसी ऐशबाग में होती है. यहां की रामलीला कमिटी हर साल प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पिछले 70 सालों से इसमें आने का निमंत्रण भेजती रही है लेकिन पहली बार कोई प्रधानमंत्री यहां रहा है. 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री एक घंटे के लिए इस रामलीला मे आएंगे, वो दिल्ली से सीधे सिर्फ इस कार्यक्रम के लिए आ रहे हैं और रामलीला में रावण वध का मंचन देखकर वापस दिल्ली चले जाएंगे.

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