गंगा सफाई को लेकर सरकार तमाम दावे कर रही है. लेकिन पतित पावनी और मोक्षदायिनी के रूप में कही जाने वाली नदी आज अपने अस्तित्व के लिए ही जूझ रही है. इसकी सच्चाई जानकर आप खुद चौक जाएंगे. दरअसल, गंगा-यमुना में सीधे नालों का गंदा बदबूदार पानी गिर रहा है. लोग भी गंगा सफाई के किए जा रहे झूठे दावों से हैरान हैं.
सबसे पहले बात करें दारागंज इलाके की तो यहां के एक नाले का गंदा बदबूदार पानी सीधे गंगा में समाहित हो रहा है. वहीं, सलोरी इलाके के नाले का पानी भी सीधे गंगा से मिल रहा है. यमुना के बलुआघाट की बारादरी में भी गंदा पानी सीधे यमुना में जा रहा है.
गंगा में स्नान करने आए श्रद्धालु भी गंगा में सीधे मिल रहे नालों को देख कर नाराजगी जाहिर करते हैं. उनका कहना है कि गंगा हमारी आस्था का विषय है. लेकिन ये नाले उसे गंदा कर रहे हैं. गंगा सफाई की बात कागजों तक सीमित है. सच्चाई तो सामने दिख रही है. इसी गंगाजल से हम पूजा करेंगे.
स्थानीय बीजेपी विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी भी इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ पाए और अपनी विफलता बता रहे हैं, लेकिन उन्होंने सपा सरकार और बीजेपी सरकार के कार्यकाल के दौरान गंगा सफाई में आए फर्क की बात कही.
उधर, नमामि गंगे परियोजना को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल निगम की धीमी कार्यशैली पर शख्त नाराजगी जाहिर की. अदालत ने टिप्पणी की है कि जब गंगा में पूरे प्रदूषण की जांच और कार्रवाई नहीं हो रही, तो यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गठित क्यों किया गया है? कोर्ट ने यह भी कहा है कि क्यों न इसे खत्म ही कर दिया जाए. अदालत में अब इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 31 अगस्त को रखी गई है, जिसमें परियोजना के महानिदेशक को खर्च हुए बजट का ब्यौरा प्रस्तुत करने का निर्देश कोर्ट ने दिया है.
साथ ही यह भी कहा है कि गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने में खर्च किए गए अरबों रुपए के बजट का विवरण भी कोर्ट में प्रस्तुत करें. कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से निगरानी करने को लेकर सवाल पूछा? इस मामले में बोर्ड के अधिवक्ता उचित जवाब नहीं दे पाए, तो कोर्ट ने कहा है कि आप निगरानी ठीक से नहीं कर पा रहे हैं और कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, तो क्यों न बोर्ड को बंद कर दिया जाए.
आपको बता दें कि प्रयागराज में 7 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (STP) काम कर रही है, जिसका संचालन अडानी ग्रुप कर रहा है. नैनी में दो एसटीपी, जो कि एक 80 MLD और दूसरी 20 MLD की है. सलोरी में दो 29 और 14 MLD, राजापुर में एक 60 MLD, कोडरा में एक 50 MLD, नोमाया में एक 50 MLD और पोंघट पुल में एक 10 MLD की एसटीपी काम कर रही है.
जल निगम के एसई एके सिंह के मुताबिक, 76 नाले शहर और ग्रामीण इलाकों में हैं, जिनमें से 16 नालों को टैब कर दिया गया है और 18 नालों पर काम चल रहा है. फिलहाल 5 नालों में सीवर का काम किया जा रहा है और तीन नाले सूखे हैं. अब बचे 34 नालों का डीपीआर बनाकर भारत सरकार को भेजा गया है. जैसे ही बजट और आदेश आएगा, तो उस पर भी जल्द काम शुरू कर दिया जाएगा.
इसका मतलब है कि बजट के इंतजार में शहरी और ग्रामीण इलाकों में बचे नाले गंगा में गिर रहे हैं. अधिकारी भी 2025 तक गंगा में गिर रहे नालों को बंद करने का दावा कर रहे हैं.