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अखिलेश यादव को सीएम कैंडिडेट घोषित करने या नहीं करने के नफे-नुकसान

आइए, जानते हैं कि अखिलेश को सीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करने या नहीं करने से राज्य की मौजूदा सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को क्या फायदा और नुकसान हो सकता है.

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव

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यूपी चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी भले ही ना हुआ हो, लेकिन समाजवादी पार्टी की ओर से सीएम पद के उम्मीदवार को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है. यूपी में कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव के बाद अब समाजवादी पार्टी की ओर से ऐलान किया गया है कि आने वाले चुनाव में अखि‍लेश यादव ही पार्टी के सीएम उम्मीदवार होंगे. इससे पहले रविवार को शिवपाल यादव ने कहा था कि अगली बार चुनाव में समाजवादी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलने पर वह खुद अखिलेश यादव के नाम का प्रस्ताव सीएम पद के लिए करेंगे.

इन दो बयानों से यूपी के सियासी हलकों में अटकलों का दौर शुरू हो गया है. क्योंकि, ये बयान सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के उस बयान के बाद आए हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि विधानसभा चुनाव में पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा तय नहीं है.

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यही नहीं, बीते शनिवार को ही खुद शिवपाल ने कहा था कि कुछ लोगों को विरासत में और भाग्य से सबकुछ मिलता है. शिवपाल का यह बयान चाचा-भतीजे के बीच जारी सियासी जंग की अगली कड़ी था. ऐसे में शिवपाल के ताजा बयान में अखिलेश के प्रति सद्भाव और अगले दिन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव किरणमय नंदा का यह बयान कई संकेत देता है, जिसमें उन्होंने कहा कि अगले चुनाव में सपा जीतेगी और अखिलेश यादव ही सीएम बनेंगे.

आइए, जानते हैं कि अखिलेश को सीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करने या नहीं करने से राज्य की मौजूदा सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को क्या फायदा और नुकसान हो सकता है.

बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सूबे की जनता के बीच खुद को एक विकास पुरुष के तौर पर पेश करने की कोशिश की है. अगर चुनाव में समाजवादी पार्टी हार जाती है, तो इसका सारा दोष अखिलेश पर मढ़ा जा सकता है. इससे अखि‍लेश की इमेज को काफी नुकसान होगा.

समाजवादी पार्टी अगर चुनाव में अखिलेश यादव को प्रोजेक्ट नहीं करती है, जैसा हाल में मुलायम सिंह ने संकेत दिया था, तो पार्टी अखि‍लेश यादव की सरकार में किए गए विकास के कार्यों को जनता के बीच सही तरीके से प्रचारित नहीं कर पाएगी और इससे सपा को बड़ा नुकसान हो सकता है.

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अगर अखिलेश यादव को सीएम प्रोजेक्ट नहीं किया जाता है या उम्मीदवारों के चुनाव में उन्हें हक नहीं मिलता है, तो पार्टी के भीतर जारी संकट और गहरा हो जाएगा. पार्टी को इसका नुकसान चुनाव में उठाना पड़ा सकता है.

सीएम अखिलेश यादव सूबे में युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं. युवाओं के लिए उन्होंने तमाम योजनाएं भी चलाई हैं. ऐसे में सीएम को तवज्जो नहीं दिए जाने से युवा वोटर समाजवादी पार्टी से दूर जा सकते हैं. हाल के दिनों में तमाम चुनावों में ऐसे वोटर काफी निर्णायक साबित हुए हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी को नुकसान हो सकता है.

विकासपुरुष के अलावा अखिलेश यादव की इमेज एक ऐसे सीएम के तौर पर बनाई गई है, जो जाति-धर्म से ऊपर उठकर काम करता है और माफिया को किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं करता. यादव परिवार में चाचा-भतीजे के बीच मनमुटाव की वजह भी कौमी एकता दल का सपा में विलय और भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्रियों को सरकार में शामिल करना ही रहा है.

ऐसे में अगर अखिलेश को सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया जाता है, तो दूसरी पार्टी इस मौके का बखूबी फायदा उठाएंगी. बीएसपी ने तो सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर दी है, तो बीजेपी की नजर दलित वोटरों पर है.

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