पूरे देश और दुनिया भर में बुधवार को बकरीद का त्योहार मनाया गया. बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी दी जाती है. लेकिन उत्तर प्रदेश के संतकबीरनगर में एक गांव ऐसा है, जहां बकरीद पर कुर्बानी नहीं होती. यहां के मुसहरा गांव में बकरीद के एक दिन पहले पुलिस कुर्बानी के बकरे उठा ले जाती है. इन्हें बकरीद के बाद वापस किया जाता है. ये परंपरा 2007 से चली आ रही है.
संतकबीरनगर में मेंहदावल तहसील के मुसहरा गांव में कहानी कुछ अलग है. यहां हिंदू और मुस्लिम पक्ष में विवाद के चलते बकरीद पर कुर्बानी और होलिका दहन पर रोक है. गांव में दोनों पक्षों में यूं तो सबकुछ ठीक है पर बकरीद और होलिका को लेकर एक दूसरे से बनती नहीं है.
तीन दिन बाद वापस होते हैं बकरे
पुलिस कुर्बानी से पहले बकरों को उठा ले जाती है. सभी बकरों को मदरसे या सरकारी स्कूल में बंद कर दिया जाता है. इन्हें त्योहार के तीन दिन बाद वापस किया जाता है. इस दौरान यह सतर्कता बरती जाती है कि कहीं पर कुर्बानी ना हो. ऐसा ही मेंहदावल तहसील के हर्रेया गांव में भी होता है.
2007 में हुआ था विवाद
स्थानीय लोगों के मुताबिक, मुसहरा में बकरीद पर कभी कुर्बानी नहीं की गई. यहां हमेशा रोक थी. लेकिन 2007 में पूर्व बसपा विधायक ताबिश खां के कहने पर इस गांव में कुर्बानी कर दी गई. इसके बाद दो गुटों में विवाद बढ़ गया. बात इतनी बढ़ गई कि गांव में लूटपाट, आगजनी और तोड़फोड़ की गई. पुलिस ने इस मामले में 29 लोगों को गिरफ्तार किया था. इसके बाद से यहां कुर्बानी नहीं होती और बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स और पीएसी तैनात की जाती है.
क्षेत्रीय पुलिस अधिकारी अमरीश भदोरिया ने बताया कि पुलिस त्योहार पर अलर्ट पर रहती है. 2007 में हुए विवाद को देखते हुए अब त्योहार के पहले मीटिंग की जाती है, इसमें दोनों समुदाय के लोगों को बुलाया जाता है. दोनों गुटों को समझाया जाता है कि वे विवाद ना करें.