देश ने आज अपनी स्वतंत्रता के 75 साल पूरे किए हैं और देश में 76वां स्वतंत्रता दिवस मनाया गया. इस स्वतंत्रता के पीछे सैंकड़ों क्रांतिकारियों का बलिदान शामिल है. अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ 1857 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने मोर्चा खोला था और भारत माता को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने की कसम खाई थी. 1857 के विद्रोह के दौरान, उत्तर प्रदेश और बिहार की कई रियासतें ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष में शामिल हुईं थीं और उन्होंने युद्ध छेड़ा था. उनमें कानपुर के पास नार काहिंजारी रिसायत के राजा भी शामिल थे जिसका नाम दरियाव चंद्र गौर था.
अंग्रेजों को छक्के छुड़ाने वाले राजा
छोटी राजपूत रियासत काहिंजारी के राजा दरियाव चंद्र गौर ने 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजी हुकुमत को बहुत परेशान करके रख दिया था. राजा दरियाव ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था और अंग्रेजों के स्थानीय प्रशासन भवन को लूट लिया था. राजा से परेशान अंग्रेजों ने उनके किले पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन अंग्रेजों को इसमें भारी नुकसान उठाना पड़ा था. राजा दरियाव चंद्र की सेना के खिलाफ अपमानजनक हार के बाद क्षेत्र की ब्रिटिश सेना वहां से भाग खड़ी हुई थी. राजा के विद्रोह को कुचलने के लिए राजा दरियाव चंद्र को गिरफ्तार करने और बाद में फांसी देने की योजना बनाई थी.
राजा दरियाव की युद्ध नीति इतनी सटीक बैठ रही थी जिसके चलते उनकी रियासत के भीतर की सभी चौकियों से अंग्रेजों की सेना को भागने पर विवश होना पड़ा था. वर्तमान में यह जगह कानपुर देहात के नाम से जानी जाती है. राजा को मारने और पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने कई छापे मारे लेकिन वे खाली हाथ ही रहे. लेकिन एक रोज राजा दरियाव को अंग्रेजों ने घात लगाकर पकड़ लिया. जब राजा एक स्थान से दूसरे स्थान जा रहे थे.
छल-कपट से दी गई राजा को फांसी
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से इतिहास में पीएचडी डॉ. श्री भगवान सिंह का कहना है कि, राजा दरियाव को ब्रिटिश सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया था और स्थानीय लोगों में डर पैदा करने के लिए रसूलाबाद में नीम के पेड़ पर राजा को फांसी दे दी गई थी. राजा दरियाव के स्वतंत्रता संग्राम में कई स्थानीय जमींदार और किसान शामिल हुए थे. सभी ने मिलकर काफी समय तक कानपुर के आसपास ब्रिटिश सेना को अपने ठोकर पर रखा हुआ था.
डॉ. श्री भगवान सिंह ने यह भी बताया कि अंग्रेजों के खिलाफ राजा दरियाव काफी समय से युद्ध की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने अपनी सेना में स्थानीय राजपूतों को उनके युद्ध कौशल को देखते हुए रखा था. इन लोगों को सेना में शामिल करने के पीछे का एक कारण यह भी था कि 1857 से विद्रोह के पहले इन राजपूतों ने ब्रिटिश राज के दौरान अभियानों में भाग लिया था. इन सैनिकों को आधुनिक आग्नेयास्त्रों और तोपखाने में प्रशिक्षित किया गया था. विद्रोह के दौरान, कई सैनिकों ने अपने राजा के प्रति अपनी प्रतिज्ञा को निभाया और ब्रिटिश सेना को बहुत नुकसान पहुंचाया. राजा दरियाव से मिले हथियारों को देखकर अंग्रेजों के होश उड़ गए थे क्योंकि उनके पास एक से एक हथियार थे.
राजा दरियाव को फांसी देने के बाद, अंग्रेजों ने उनके कई सहयोगियों को सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया और उनके किले को ध्वस्त कर दिया. जहां उन्होंने ब्रिटिश सेना को हराया था. जिसका एक हिस्सा अभी भी वहीं खड़ा है. विद्रोह के बाद, अंग्रेजों ने द्वितीय विश्व युद्ध के फैलने तक, विद्रोह की आशंका के चलते लगभग 90 वर्षों तक ब्रिटिश भारतीय सेना में स्थानीय राजपूतों को काम पर रखना बंद कर दिया था.