उत्तर प्रदेश में पिछले दो दशक से सत्ता के संग रहने वाले नरेश अग्रवाल ने समाजवादी पार्टी का दामन छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम लिया है. अग्रवाल पहली बार पार्टी नहीं बदल रहे हैं. पहले भी वो कांग्रेस, लोकतांत्रिक कांग्रेस और बसपा से होते हुए सपा में आए थे. सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्यसभा सीट पर उनका पत्ता काटकर जया बच्चन को चौथी बार उच्च सदन भेजने का फैसला किया तो अग्रवाल का सपा से भी मोहभंग हो गया. अब उन्होंने समाजवाद की चादर उतारकर भगवा साफा ओढ़ लिया है.
रामगोपाल के दाहिना हाथ थे नरेश अग्रवाल
नरेश अग्रवाल सपा के चाणक्य कहे जाने वाले रामगोपाल यादव के सबसे करीबी नेता माने जाते थे. इसी के चलते वो राज्यसभा सदस्य से लेकर पार्टी में महासचिव तक बने. वे राष्ट्रीय राजनीति में सपा का सबसे मुखर चेहरा थे. अब सपा की सबसे बड़ी सियासी दुश्मन बीजेपी से हाथ मिलाकर उन्होंने अखिलेश को तगड़ा झटका देने का फैसला किया है.
नरेश अग्रवाल के सपा छोड़कर बीजेपी में शामिल होने पर पार्टी के प्रवक्ता सुनील साजन ने कहा कि नरेश अग्रवाल के जाने से पार्टी को कोई नुकसान नहीं है, बल्कि वो पार्टी के लिए बोझ थे. बेहतर हुआ कि सपा छोड़कर चले गए. सुनील साजन ने कहा कि नरेश अग्रवाल उन्हीं सामंती विचारधारा वाले लोगों में से एक हैं जो अखिलेश यादव के दलित और ओबीसी की राजनीतिक लाइन को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे. जबकि पार्टी अध्यक्ष ने साफ कह दिया है कि पार्टी ओबीसी और दलित पर चलेगी, जिसे रहना है रहे और जिसे जाना है जाए, उसे रोका नहीं जाएगा.
'अग्रवाल से सपा को न नुकसान और न बीजेपी को फायदा'
वरिष्ठ पत्रकार रहीस सिंह ने कहा कि नरेश अग्रवाल के राजनीतिक करियर को देखें तो वो 1997 से लेकर आजतक कई पार्टियों में रहे. इससे उन राजनीतिक दलों को तो कोई फायदा नहीं हुआ लेकिन नरेश अग्रवाल को जरूर सियासी लाभ मिला. वो हमेशा सत्ता के साथ रहना चाहते हैं. दो दशक में पहली बार है कि वो एक साल तक बिना सत्ताधारी दल के साथ रहे.
उन्होंने कहा कि अग्रवाल जनाधार वाले नेता नहीं हैं, हरदोई शहर तक ही उनका दायरा है. ऐसे में सपा को उनका जाने पर कोई नुकसान नहीं होने वाला और न ही बीजेपी को उनके आने का कोई फायदा होगा. हालांकि बीजेपी ने उन्हें पार्टी में लेकर उन लोगों को जरूर झटका दिया है जो हरदोई में सालों से अग्रवाल के खिलाफ लड़ते रहे हैं. रहीस सिंह ने कहा कि सपा को जितना नुकसान होना था वो चुका है. अब इससे ज्यादा नुकसान तभी होगा जब उससे मुस्लिम मतदाता खिसकेगा, जो फिलहाल दिखता नजर नहीं आ रहा है.
राज्यसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवार की मुश्किल
नरेश अग्रवाल ने सपा का साथ ऐसे समय पर छोड़ा है जब बसपा और सपा एक साथ आ रहे हैं. उनके पार्टी छोड़ने से बीजेपी को पहला फायदा राज्यसभा चुनाव में मिल सकता है. बीजेपी को 9वें उम्मीदवार को एक वोट अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल का मिल सकता है. जो हरदोई से सपा के विधायक हैं. सपा-बसपा के बीच 23 साल पुरानी दुश्मनी राज्यसभा सीट के लिए ही दोस्ती में तब्दील हुई है. राज्यसभा का चुनाव इस दोस्ती का टेस्ट माना जा रहा है. इसी के नतीजे की बुनियाद पर 2019 में सपा-बसपा गठबंधन की इमारत खड़ी होगी. ऐसे में राज्यसभा सीट बसपा के लिए जितनी अहम है उतनी ही सपा के लिए भी है.
गौरतलब है कि 68 साल के नरेश अग्रवाल मूलतः हरदोई के रहने वाले हैं. अग्रवाल बीएससी, एलएलबी हैं और तकरीबन चार दशक से राजनीति में सक्रिय हैं. वे 1980 में पहली बार कांग्रेस के विधायक चुने गए. इसके बाद 1989 से 2008 तक लगातार यूपी विधानसभा के सदस्य रहे.
अग्रवाल ने कांग्रेस को तोड़कर लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाया था
1997 में कांग्रेस पार्टी को तोड़कर लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी का गठन किया था. 1997 से 2001 तक वो यूपी सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे.2003 से 2004 तक पर्यटन मंत्री रहे. 2004 से 2007 तक उन्होंने यूपी के परिवहन मंत्री का कार्यभार संभाला. बाद में वे राज्यसभा के लिए चुने गए और संसद की कई कमेटियों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उनके परिवार में पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है. उनका बेटे नितिन अग्रवाल अखिलेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं और वर्तमान में हरदोई से सपा के विधायक हैं.
सपा की तरह बीजेपी आजादी नहीं
नरेश अग्रवाल अक्सर अपने बयानों के लिए मीडिया में सुर्खियां बटोरते रहते हैं. कई बार अपने विवादास्पद बयानों के चलते उन्हें खेद भी जताना पड़ा है. समाजवादी पार्टी में जब अखिलेश बनाम मुलायम की जंग छिड़ी हुई थी तब नरेश अग्रवाल ने खुलकर अखिलेश यादव का साथ दिया था. नरेश अग्रवाल को हर पार्टी में अपनी पैठ के लिए भी जाना जाता है. उनकी इसी पैठ का नतीजा है कि सपा से नाराज होने पर उन्हें तुरंत ही बीजेपी से पार्टी में शामिल होने का मौका मिल गया है. लेकिन बीजेपी में सपा की तरह से वो खुलकर नहीं खेल पाएंगे.