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राम मंदिर मुद्दे पर आगे की राह? जानें किन शर्तों पर अटक रही है बात

अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद आजतक ने नई पहल की है. आज तक ने दोनों पक्षकारों से इस मामले पर बात की और मुद्दे के समाधान को लेकर उनकी राय को सामने लाने की कोशिश की. हिंदू और मुसलमान दोनों ही पक्षों ने कहा कि इस मामले पर केंद्र सरकार दोनों पक्षों से अलग-अलग बात करे. पक्षकारों ने इस मुद्दे को सुलझाने लिए कई बाते रखीं जिनमें चार शर्तें सामने आईं-

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राम मंदिर मुद्दे का कैसे होगा समाधान?
राम मंदिर मुद्दे का कैसे होगा समाधान?

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अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद आजतक ने नई पहल की है. आज तक ने दोनों पक्षकारों से इस मामले पर बात की और मुद्दे के समाधान को लेकर उनकी राय को सामने लाने की कोशिश की. हिंदू और मुसलमान दोनों ही पक्षों ने कहा कि इस मामले पर केंद्र सरकार दोनों पक्षों से अलग-अलग बात करे. पक्षकारों ने इस मुद्दे को सुलझाने लिए कई बाते रखीं जिनमें चार शर्तें सामने आईं-
शर्त 1- उसी 2.7 एकड़ जमीन पर बने राम मंदिर-मस्जिद.
शर्त 2- शर्त- पहल आगे बढ़ाने के लिए केंद्र नुमाइंदे भेजे.
शर्त 3- सुब्रमण्यम स्वामी और हाजी महबूब जैसे विवाद बढ़ाने वाले लोग दूर रहें.
शर्त 4- अयोध्या में दोनों पक्षकार एक साथ बैठें.

क्या कहना है पक्षकारों का?
महंत ज्ञानदास-
हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत ज्ञानदास ने कहा कि सुब्रमण्यम स्वामी ने राम मंदिर मामले को उलझा दिया है. सबकी सहमति से और न्यायलय की मध्यस्थता में इस मामले का शांतिपूर्ण समाधान होना चाहिए. दोनों पक्ष इसपर सहमत हो सकते हैं.

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इकबाल अंसारी
मामले में पक्षकार रहे हाशिल अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी का कहना है कि परिसर में ही राम मंदिर और मस्जिद का निर्माण हो सकता है. हाईकोर्ट ने इसी आधार पर फैसला सुनायया था. इस मामले में नए राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिशें नहीं होनी चाहिए. बातचीत से मामले का हल निकल सकता है.

ये आस्था से जुड़ा मामला, जल्द हल निकलेगा- संबित पात्रा
बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने सुब्रहमण्यम स्वामी जैसे लोगों को अयोध्या मामले से दूर रहने की बात पर कहा कि स्वामी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने पहल की है. संबित पात्रा ने कहा कि कुछ समय लगेगा लेकिन इसका सर्वमान्य हल निकलेगा. संबित पात्रा ने कहा कि ये आस्था का मामला है केवल जमीन का मामला है. दूसरे पक्ष को भी आस्था और भावना की इस बात को समझना चाहिए.

SC की पहल से अच्छा मौका: कांग्रेस
कांग्रेस के नेता मुकेश नायक ने कहा कि देश का ध्यान गंभीर समस्याओं पर होना चाहिए. इतने साल बीत गए. इस मामले को लेकर दोनों वर्गों में अशांति होती है. वास्ताव में इस महान अवसर को अपने हाथ से नहीं जाने देना है तो जैसा पक्षकार कह रहे हैं कि विवाद बढ़ाने वालों को दूर रखा जाए.

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सुप्रीम कोर्ट से निकले हल- सपा
समाजवादी पार्टी के नेता घनश्याम तिवारी ने कहा कि इस मामले को लेकर काफी अशांति और अहिंसा हो चुकी है. अब इसका समाधान कोर्ट से आना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में अपना फैसला सुनाना चाहिए.

अयोध्या के हिंदु-मुस्लिम एक मंच पर आए. इस दौरान महंत ज्ञानदास ने कहा कि सुब्रमण्यम स्वामी ने राम मंदिर मामले को उलझा दिया है. उन्होंने कहा कि सुब्रमण्यम स्वामी इस मामले पर अपना मुंह बंद रखें. इकबाल अंसारी ने कहा, हम चाहते हैं कि मंदिर-मस्जिद का विवाद खत्म होना चाहिए. इस मामले को कट्टरपंथियों ने उलझा दिया है.

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से वर्षों से अदालत की चौखट पर अटके अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का अदालत के बाहर हल होने की संभावनाएं जगी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संवेदनशील और आस्था से जुड़ा बताते हुए पक्षकारों से बातचीत के जरिए आपसी सहमति से मसले का हल निकालने को कहा है. अदालत ने इसके लिए 31 मार्च तक का समय दिया है. कोर्ट ने यहां तक सुझाव दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो वो हल निकालने के लिए मध्यस्थता को भी तैयार है. कोर्ट का यह रुख इसलिए अहम है क्योंकि एक बड़ा वर्ग इसे बातचीत और सामंजस्य से ही सुलझाने की बात करता रहा है. यह टिप्पणी मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की अयोध्या जन्मभूमि विवाद मामले की जल्दी सुनवाई की मांग पर की.

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क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
इससे पहले, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीमकोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं जो कि पिछले छह साल से लंबित हैं.

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