2014 के लोकसभा चुनाव में जाट-मुस्लिम गठजोड़ के जरिए पश्चिमी यूपी में झंडा गाड़ने की कांग्रेस की हसरत को काजी रशीद मसूद की सजा ने चकनाचूर कर दिया है. मेडिकल सीट घोटाले में मसूद को सीबीआई कोर्ट ने 4 साल की सजा सुनाई है. मसूद मुजफ्फरनगर से उपजे दर्द को पार्टी के लिए भुनाने में मददगार हो सकते थे.
पश्चिमी यूपी के अहम मुस्लिम नेता हैं मसूद
यह फैसला उस समय आया है जब कांग्रेस पार्टी पश्चिमी यूपी के इस प्रभावी मुस्लिम नेता के बूते मुजफ्फरनगर दंगे के बाद सपा के विरोध में उपजी मुस्लिमों की नाराजगी को भुनाने की तैयारी कर रही थी. कई प्रमुख मुस्लिम संगठन सपा सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर चुके हैं.
पढ़ें: गुजरात में असुरक्षित हैं मुसलमान: रशीद मसूद
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी दंगा पीड़ितों पर मरहम लगाकर हमदर्दी बटोर चुके हैं. रशीद मसूद इस हमदर्दी को कांग्रेस के वोट में बदलने में अहम भूमिका निभा सकते थे. वह दंगे में पैदा हुए जख्म को भी भरने में काम आ सकते थे.
अब कांग्रेस कहां से लाएगी दूसरा नेता
राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह को साथ रखकर कांग्रेस जाट-मुस्लिम वोटों पर नजरें गड़ाए हुए थी. कांग्रेस जिस चेहरे को आगे करके परचम लहराने की तैयारी कर रही थी, उसके विवादित हो जाने से पार्टी की सारी रणनीति एक झटके में बिगड़ गई. मसूद जैसे कद और अनुभव वाला कोई दूसरा नेता पश्चिम में कांग्रेस के पास नहीं है.
अब कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि यूपी में किस मुस्लिम चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ा जाए, खासकर पश्चिमी जिलों में जहां मुस्लिमों की सबसे ज्यादा आबादी है. कांग्रेस के पास ऐसा कोई कद्दावर मुस्लिम नेता नहीं है जो बीजेपी और सपा पर सीधे हमले करके इन दोनों पार्टियों को एक दूसरे का मददगार साबित कर सके.