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REALITY CHECK: दिक्कतों के बाद भी नोटबंदी के समर्थन में मथुरा के किसान

कृष्ण की नगरी मथुरा और मथुरा से सटे हुए बरसाने के पास के गांव के लोगों, किसानों और उनके परिवार का नोटबंदी के बाद से क्या है हालात, कैसे अपने परिवार का कर रहे हैं पालन पोषण. घर की गृहणियां कैसे गांव में अपनी रसोई संभाल रही हैं. कई गांवों के बीच मौजूद एक बैंक के पास लोगों के क्या हैं हालात. पढ़ें मथुरा के गांव में नोटबंदी की ग्राउंड रिपोर्ट.

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किसानों पर पड़ी नोटबंदी की मार
किसानों पर पड़ी नोटबंदी की मार

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नोटबंदी के 40 दिन हो चुके हैं. लेकिन अब भी हालात सामान्य नहीं हुए. कैश की कमी से जहां गांव में किसानों और छोटे व्यापारियों का काम ठप है, वहीं, कैश के लिए लोग घंटों बैंकों और एटीएम में लाइन लगाए खड़े हैं. ऐसे में 'आजतक' की टीम ने मथुरा के गांव में नोटबंदी के बाद हालात का जायजा लिया.

हमारी टीम पहले दिल्ली से करीब 180 किमी दूर मथुरा के राल गांव में मौजूद सिंडिकेट बैंक का जायजा लेने पहुंची. सिंडिकेट बैंक की शाखा में 10 से 12 गांव के लोगों के बैंक में खाते हैं. महिलाएं भी लाइन में लगी है, पर पैसा जो इनका है वो इनको नहीं मिल पाता है. इसी जगह एक शख्स को 4000 रुपये की जरूरत है उसका चेक लेकर आया है पर उसको बैंक से पैसे नहीं मिले. राल गांव में मौजूद सिंडिकेट बैंक की शाखा जहां पर कई गांव के लोगों के बैंक अकाउंट हैं.

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बैंकों में कैश नहीं
एक ऐसा ही गांव चिरंजी माली है, जिसके निवासी बदनश्याम सैनी के घर में 14 जनवरी को शादी है कार्ड लेकर बैंक आए हैं, पर बैंक मैनेजर ने कहा कि अभी पैसा नहीं है. जनवरी में पैसे मिलेंगे. नोटबंदी पर इसी गांव के लोगों ने कहा कि अमीरों और धन कुबेरों के यहां पैसा इतना निकल रहा है. बैंक के कर्मचारी भ्रष्ट हैं. इसलिए गांव तक पैसा नहीं आ पा रहा है.

मोदी के समर्थन में किसान
चिरंजी गांव से हमारी टीम भोंगसा गांव पहुंची. यहां किसान ट्रैक्टर ट्रॉली में सरसो भरकर उसे मंडी में बेचने के लिए जा रहे थे. नोटबंदी पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में किसानों ने कहा कि मोदी जी का फैसला बहुत बढ़िया है. उम्मीद है कि सरकार किसानों के लिए कुछ करेगी.

रसोई पर भी नोटबंदी की मार
नोटबंदी का असर बरसाने के ऊंचा गांव में महिलाओं पर कैसा पड़ा, इसकी भी 'आजतक' ने पड़ताल की. पता चला कि घर की रसोई चलाना इनके लिए मुश्किल हो रहा है, क्योंकि गांव के बैंकों में पैसे कम होने के चलते पैसा नहीं मिल पाता है. हालांकि, यहां के लोगों को शहरो की अपेक्षा कम पैसों की जरूरत होती है.

ईंट-भट्टा व्यापारियों पर भी पड़ा असर
नोटबंदी की मार ईट-भट्टा व्यापारियों को भी पड़ी है. कैश की किल्लत के चलते मकान बनाने वालों ने काम रुकवा दिया है, जिसके चलते ईंट-भट्ठे मालिक 4000 प्रति हजार बिकने वाले ईंट का दाम 3000 से 3500 रुपये के बीच ईंट बेचने के लिए तैयार हैं. इसके बाबजूद खरीदार नहीं मिल रहे हैं.

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श्रमिकों का पलायन
मथुरा के माठ तहसील के सुरीर इलाके में करीब 150 से ज्यादा ईंट-भट्ठे हैं. हर भट्ठे में बिहार, उत्तर प्रदेश और मथुरा के लोकल 150 से 200 मजदूर काम में लगे थे. करीब एक महीने से मजदूरों को साप्ताहिक भुगतान की जगह इन्हें खाने-पीने का सामान दिलाया जा रहा है, लेकिन रोजमर्रा के खर्चे, बच्चों के इलाज और पढ़ाई के लिए पैसे नहीं होने के कारण 30 फीसदी श्रमिक अपने शहर लौट चुके हैं.

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