पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाढ़ पीड़ितों के लिए बने सरकारी राहत कैंप, उन्हें राहत से अधिक दर्द दे रहे हैं. बाढ़ में सब कुछ गंवाकर राहत कैंपों में आए बलिया जिले के बाढ़ पीड़ितों का दर्द कुछ अलग ही है. इलाके में जब 'आज तक' की टीम एक राहत शिविर में पहुंची, तो ये देखकर दंग रह गई कि बाढ़ पीड़ितों को राहत कैंपों में खाना तक नहीं मिल रहा.
पानी के टैंकर में मिला जोंक
सरकार की तरफ से भेजे गए पानी के टैंकर में लोगों को जोंक मिल रहे हैं, जिसके बाद लोगों ने सरकारी पानी पीना छोड़ दिया है और खुद ही खाना बनाकर खा रहे हैं. सरकारी राहत शिविर तो बन गए, लेकिन लोग अपना खाना या तो खरीदकर या बनाकर खा रहे हैं. आलम ये है कि सरकार का भरोसा छोड़कर राहत शिविरों में लोगों ने खुद ही खाना बनाना शुरू कर दिया है.
एनएच-31 पर बनाए गए हैं कई राहत शिविर
बलिया शहर से करीब 25 किमी दूर एनएच-31 पर कई राहत शिविर बनाए गए हैं, जिसमे दुबहड़ इलाके के राहत कैंप में जब 'आज तक' की टीम बाढ़ पीडितों का हाल जानने पहुंची, तो ये देखकर दंग रह गई कि बाढ़ पीड़ितों के आंसू पोंछने वाला कोई नहीं है, भूख से बिलखते बच्चों और परिवारों के लिए राहत कैंपों में लोगों ने खुद ही खाना बनाना शुरू कर दिया है.
खुद ही खाना खरीद रहे हैं लोग
राहत कैंप में खाना खा रहे एक परिवार के पास जब 'आज तक' की टीम पहुंची, तो पता चला इस परिवार ने अपने पैसे से राशन खरीदा है और खुद ही खाना बनाकर खा रहे हैं क्योंकि प्रशासन ने उन्हें यहां पहुंचाकर अपनी इतिश्री कर ली है और इन्हें पूछने वाला कोई नहीं है.
कैंप में ना खाना है और ना ही पानी
महिलाओं की आखों में दर्द है, घर कई किलोमीटर दूर उफनाती गंगा में डूब रहा है, तो राहत कैंपो में ना तो खाना है ना ही पानी. इसी राहत शिविर में मौजूद राजभर राय ने बाल्टी में रखा वो पानी भी दिखाया, जिसमें जोंक तैर रहा है. पानी उसी राहत शिविर में रखे गए सरकारी टैंकर का था, जिसे लोग स्थानीय प्रशासन को भी दिखा चुके हैं.
राहत शिविर में दवाइयां नहीं
पहले खाना नहीं फिर पानी में कीड़े-मकोड़े, कई लोग राहत कैंप तक छोड़ने लगे हैं. इस राहत कैंप में कई लोग ऐसे मिले, जिन्हें बाढ़ में कीड़े-मकोड़ों के काटे जाने से कई तरह कि बीमारियां हो गई हैं, लेकिन दवाइयों के नाम पर कुछ भी नहीं है. इन राहत कैंपों में सरकारी सुविधा नहीं होने की वजह से लोगों ने सरकारी राहत शिविरों को छोड़ना भी शुरू कर दिया है.