कैराना-नूरपुर के उपचुनाव में जीत के साथ आरएलडी के हौसले काफी बुलंद हैं. 2013 के बाद आरएलडी जाट और मुस्लिमों को करीब लाने में सफल रही है. इस रिश्ते को और मजबूत करने के लिए आरएलडी बुधवार को लखनऊ में पार्टी दफ्तर में इफ्तार का आयोजन कर रही है. इफ्तार पार्टी में बसपा अध्यक्ष मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव को निमंत्रण दिया गया है.
आरएलडी के रोज इफ्तार में कांग्रेस, सपा और बसपा नेताओं को निमंत्रण दिया गया है. आरएलडी नेता जयंत चौधरी और कैराना में जीत दर्ज करने वाली सांसद तबस्सुम हसन भी मौजूद रहेंगी.
बता दें कि मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो रहा है. ऐसे में यूपी में सपा, बसपा कांग्रेस सहित आरएलडी एक साथ मिलकर 2019 में उतर सकते हैं. कैराना उपचुनाव में आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन के समर्थन में विपक्षी दलों ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे. इसका नतीजा था कि तबस्सुम ने बीजेपी उम्मीदवार मृगांका सिंह को करीब 42 हजार मतों से मात दी है.
आरएलडी को मिली जीत से पार्टी प्रमुख चौधरी अजित सिंह का कद बढ़ गया है. 2019 में मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा बनाए जा रहे महागठबंधन में आरएलडी भी अब अहम हिस्सा हो सकती है. आरएलडी की संजीवनी मिल गई है.
गौरतलब है कि नवंबर 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच खाई गहरी हो गई थी. आरएलडी की राजनीति के सितारे डूबने लगे थे. आरएलडी के सामने सबसे बड़ी चुनौती जाट वोट को वापस अपने पाले में लाने की थी, जो 2014 के लोकसभा चुनाव और बाद में 2017 के विधानसभा चुनाव में उससे छिटककर बीजेपी के खेमे में चला गया था.
इसी का नतीजा था कि लोकसभा चुनाव में खुद अजित सिंह हार गए और पार्टी एक सीट भी नहीं जीत सकी. जबकि विधानसभा चुनाव में एक ही विधायक जीत सका था, जो बाद में बीजेपी में चला गया. लेकिन अब विपक्षी एकता बनने के बाद से अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी इस जाट और मुस्लिम गठजोड़ को कैराना लोकसभा उपचुनाव के जरिए फिर से कायम करने में सफल रहे हैं.
आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन के बहाने चौधरी अजित सिंह ने अपना खोया हुआ जनाधार वापस पा लिया है. 2019 तक वे जाट और मुस्लिम समुदाय को पार्टी से जोड़े रखने में हर संभव कोशिश में जुटे हैं. इसी कड़ी में रोज इफ्तार पार्टी का आयोजन हो रहा है.