सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत रॉय इन दिनों मुश्किल में हैं. उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गैरजमानती वारंट जारी हो चुका है. गोरखपुर से शुरू हुआ सहारा प्रमुख का सफर लखनऊ होते हुए अब विदेशों तक पहुंच चुका है लेकिन इन सबके बावजूद विवाद उनका का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं.
निवेशकों के 24000 करोड़ रुपये का हिसाब देने के मामले में जबसे कोर्ट का डंडा सहारा पर चला है तभी से सुब्रत रॉय के पक्ष में खड़ी वकीलों की फौज सुप्रीमकोर्ट को कानूनी दांव पेचों के सहारे गुमराह कर रही है.
10 जून, 1948 को बिहार के अररिया में जन्मे सुब्रत रॉय की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा कोलकाता में हुई. सुधीर चंद्र रॉय और छवि रॉय के पुत्र सुब्रत रॉय ने यूपी के गोरखपुर के एक सरकारी कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. सुब्रत रॉय ने अपना पहला कारोबार गोरखपुर से ही शुरू किया. सुब्रत रॉय ने स्वप्ना रॉय से प्रेम विवाह किया है.
सुब्रत को जानने वाले बताते हैं कि वे शुरू से ही पढ़ाई में कमजोर थे. उनका मन पढ़ने से ज्यादा अन्य बातों में लगता था. एक छोटे से शहर से बिजनेस शुरू करने वाले इस शख्स ने 36 सालों में दुनिया भर में अपना कारोबार फैला लिया. सुब्रत रॉय ने 1978 में जब सहारा की शुरुआत की थी तब उनकी जेब में महज 2000 रुपये ही थे. सुब्रत को 70 के दशक से जानने वाले लोग बताते हैं कि तब सुब्रत रॉय गोरखपुर में एक स्कूटर से चलते थे. तब दिन में 100 रुपये कमाने वाले लोग उनके पास 20 रुपये जमा करते थे. सुब्रत रॉय के साथ उनके स्कूल, कॉलेज में साथ पढ़े करीब 100 दोस्त भी काम करते हैं.
अगर देखा जाए तो देश से लेकर विदेशों तक सहारा समूह की कई करोड़ की प्रॉपर्टी फैली हुई है. इसके अलावा सुब्रत रॉय की कर्मभूमि रही लखनऊ में भी कई प्रॉपर्टी है. लेकिन सबसे ज्यादा विवादों में रहा है सहारा स्टेट. लेकिन, समय समय पर अपनी राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल करते हुए सहारा श्री विवादों को टालते रहे हैं.
सहारा ने लखनऊ के पॉश इलाके गोमती नगर के विपुल खंड और देश में विख्यात मायावती के सपने के तौर पर प्रचलित और दलित वर्ग के स्वाभिमान के तौर पर स्थापित अम्बेडकर स्मारक के बगल में मौजूद 170 एकड़ जमीन को यह कह कर एलॉट करने का अनुरोध किया कि वह इस जमीन पर आवासीय, व्यावसायिक और हरित पट्टी विकसित करेगा.
दरअसल, गोमतीनगर में बना सहारा स्टेट सुब्रत रॉय का ड्रीम प्रोजेक्ट था लेकिन, अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए सहारा ने हेरफेर का सहारा लिया. लेकिन, इस सहारा शहर में राजनेता, अभिनेता और बड़े बड़े प्लेयर्स तो जा सकते हैं लेकिन लखनऊ का आम आदमी नहीं घुस सकता है.
जब यह सहारा शहर बना तब भी इसकी खूब चर्चा हुई थी लेकिन जब जिम्मेदार अधिकारियों ने इसका निरिक्षण किया तो उन्हें सुब्रत के गोरखधंधे का अहसास हुआ. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. नगर निगम ने सहारा को कारण बताओ नोटिस तो जारी किया लेकिन निगम की लापरवाही तब तक सुब्रत रॉय सहारा के लिए संजीवनी का काम कर चुकी थी. नोटिस मिलने के बाद सहारा ने भी देर ना करते हुए नोटिस के खिलाफ कोर्ट चले गए.
सहारा यहीं नहीं रुका उसने हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में आर्बिटेशन दाखिल कर दिया. यह मामला आज भी कोर्ट में विचाराधीन है. इस कारवाई में एक दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन सहारा पहले की तरह आज भी वहां कब्जा किए हुए हैं.
सहारा के कंधे पर जब तक मुलायम का सहारा रहा तब तक कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन जैसे ही 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ तो मायावती की निगाहें सुब्रत रॉय पर टेढ़ी हो गई. नगर निगम ने कारवाई करते हुए सहारा स्टेट के बड़े बड़े दरवाजों पर नोटिस चस्पा कर दिया और उसकी बड़ी बड़ी दीवारें गिराई भी गई लेकिन सहारा को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा.
बहरहाल, यह तो रही सुब्रत रॉय सहारा के विवादों की एक झलक. लेकिन, आर्थिक जानकारों का मानना है कि अगर सहारा को निवेशकों को पैसा वापस करना पड़ा तो उसकी हालत और खराब हो जाएगी. क्योंकि टीम इंडिया से स्पॉन्सरशिप जाने के बाद जहां सहारा की साख पर बट्टा लगा है वहीं आईपीएल की पुणे वॉरियर्स की फ्रेंचाइजी भी निरस्त हो चुकी है. ऐसे में सुब्रत रॉय के खिलाफ गैर जमानती वारंट आग में घी का काम कर रहा है.