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जातीय हिंसा की आग में आखिर क्यों सुलगता रहा सहारनपुर?

उत्तर प्रदेश के गृह सचिव ने भी माना है कि सहारनपुर के तनाव के पीछे पुलिस और प्रशासन की चूक है. सभी की नजर में सवाल यही है कि देखते ही देखते कैसे और क्यों जल उठा सहरानपुर? ऐसी क्या गलतियां हुईं जो अगर समय पर ठीक कर ली जातीं तो शायद दो समुदाय इतनी बुरी तरह ना बंटे होते और हिंसा ना घटी होती?

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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सहारनपुर में घटी एक छोटी सी घटना देखते ही देखते नासूर बन गई. क्या वजह है कि कई हफ्तों से सहारनपुर धधक रहा है? आखिर कैसे भारी फोर्स के बावजूद भी सहारनपुर में हिंसा भड़कती रही? क्यों उपद्रवी कानून की धज्जियां उड़ाते रहे?

उत्तर प्रदेश के गृह सचिव ने भी माना है कि सहारनपुर के तनाव के पीछे पुलिस और प्रशासन की चूक है. सभी की नजर में सवाल यही है कि देखते ही देखते कैसे और क्यों जल उठा सहरानपुर? ऐसी क्या गलतियां हुईं जो अगर समय पर ठीक कर ली जातीं तो शायद दो समुदाय इतनी बुरी तरह ना बंटे होते और हिंसा ना घटी होती?

प्रशासन की कोताही
सहारनपुर शहर से कुछ दूर शब्बीरपुर गांव में दलित समुदाय रविदास मंदिर में अंबेडकर की प्रतिमा लगाना चाहता था. सबसे पहली गलती तब हुई जब पुलिस ने प्रतिमा लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन दलित समुदाय को विश्वास में नहीं लिया. प्रशासन ने ना कहने के लिए ना तो कोई वजह बताई और ना ही आगे के लिए कोई रास्ता सुझाया, जिसको लेकर दलित समुदाय में नाराजगी थी.

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प्रशासन पर भेदभाव का आरोप
5 मई को महाराणा प्रताप जयंती पर शब्बीरपुर गांव से 11 किलोमीटर दूर शिमलाना गांव जा रहे ठाकुर समुदाय के लोगों ने बिना अनुमति के जुलूस निकाला. तेज म्यूजिक और डीजे के साथ जब 25-30 ठाकुर समुदाय के युवा शब्बीरपुर गांव से निकले तो लोगों ने तेज बाजे पर आपत्ति जताई. दलित समुदाय के लोग और भड़क गए. उनको लगा कि प्रशासन उनके साथ भेदभाव कर रहा है. प्रशासन ने सख्ती दिखाई होती तो ना ये जलूस निकलता ना ही पत्थरबाजी और हिंसा होती. उस घटना में एक की मौत हुई और दो दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए.

सहारनपुर में बदलती परिस्थितियों को आंकने में गलती
उत्तर प्रदेश के डीजीपी खुद 8 मई को सहारनपुर गए और वापस लौट बोले की हालात सामान्य है. जाहिर है कि कहीं न कहीं डीजीपी को सहारनपुर में तैनात आला अधिकारियों ने गंभीर परिस्थियों को कम आंक कर बताया. सूत्रों के मुताबिक डीजीपी को भीम आर्मी की हरकतों और दो समुदाय के बीच बढ़ते तनाव की सही तस्वीर नहीं मिली. यही कारण है कि उसके एक दिन बाद ही सहारनपुर में फिर हिंसा हुई.

लचर प्रशासन के चलते दंगाइयों के हौसले बढ़े
मौका भांपते हुए 9 मई को भीम आर्मी ने दलितों पर हो रहे अत्याचार पर सहारनपुर में महापंचायत बुलाई. भीम आर्मी की मनमानी चलती रही और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा. सहारनपुर में भारी फोर्स होने के बावजूद भी पुलिस की आंखों के सामने उपद्रवी कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते रहे. भीम आर्मी के मुखिया से लेकर कई दंगाई लोगों पर कठोर कार्रवाई ना करना पुलिस की बड़ी विफलता रही.

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मायावती की सभा को अनुमाति
पुरानी गलतियों से सबक ना लेते हुए प्रशासन की मायावती को शब्बीरपुर गांव में सभा की अनुमति देना एक और भारी चूक थी. खुफिया विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक मायावती के आने से दंगे भड़कने की आशंका बनी हुई थी. इसके बावजूद भी मायावती को सभा करने की अनुमति दी गई. वहीं आरएएफ और पीएसी की भारी मौजूदगी के बावजूद भी डीएम, एसएसपी समेत तमाम अधिकारी मौके पर हालात को बिगड़ने से रोक पाने में फेल रहे.

सोशल मीडिया का हथियार
सहारनपुर की आग में सोशल मीडिया ने घी डालने का काम किया. एक महीने से सोशल मीडिया पर चल रहे नफरत भरे कैंपेन, अफवाहों के बाजार से प्रशासन अंजान था. जबकि भीम आर्मी ने भीड़ इकठ्ठा करने से लेकर संगठन के लिए आर्थिक मदद मांगने के लिए सोशल मीडिया का जबरदस्त सहारा लिया. हैरानी की बात है कि प्रशासन को इस खतरनाक हथियार पर पाबंदी लगाने में हफ्तों लग गए. 25 मई को सहरानपुर में सोशल मीडिया की सेवाएं रद्द की गई.

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