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हर लड़की-लड़के को है अपनी मर्जी से शादी का अधिकार, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

बरेली के बीजेपी विधायक राजेश मिश्रा की बेटी साक्षी और उनके पति अजितेश कुमार ने अपनी जान का खतरा बताया है. इसके बाद से आम लोगों की जिज्ञासा यह जानने की है कि क्या एक लड़की को किसी दलित से शादी करने का अधिकार कानून देता है या नहीं? इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा का क्या कहना...जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर.

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साक्षी और अजितेश कुमार
साक्षी और अजितेश कुमार

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उत्तर प्रदेश के बरेली के बीजेपी विधायक राजेश मिश्रा की बेटी साक्षी ने अपनी मर्जी से दलित समाज से आने वाले अजितेश कुमार से शादी कर ली. घर से भागकर शादी करने के बाद से साक्षी और उनके पति अजितेश कुमार अपनी जान का खतरा बता रहे हैं. उन्होंने आजतक से बातचीत में कहा कि उनका पीछा किया जा रहा है और उनको अपनी जान का खतरा है.

जब साक्षी ने अपनी सुरक्षा के लिए बरेली के पुलिस अधीक्षक से गुहार लगाई, तो उन्होंने कोर्ट के आदेश के बिना सुरक्षा मुहैया कराने से साफ इनकार कर दिया. आजतक से बातचीत से पहले साक्षी और उनके पति अजितेश कुमार ने एक वीडियो भी जारी किया और अपनी जान को खतरा बताया. इस घटना के सामने आने के बाद से सवाल उठ रहे हैं कि क्या देश को आजादी मिलने के इतने सालों बाद भी एक बालिग लड़की और लड़के को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार है या नहीं.

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इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा का कहना है कि 18 साल की उम्र पूरी कर चुकी हर लड़की और 21 साल की उम्र पूरी कर चुके हर लड़के को अपनी मर्जी से शादी करने का मौलिक अधिकार है. देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में कई दफा कह चुका है कि शादी करने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में मिले जीवन के अधिकार के तहत आता है. इस अधिकार को कोई नहीं छीन सकता है.

उनका कहना है कि अगर लड़की ने 18 साल और लड़के ने 21 साल की उम्र पूरी कर ली है, तो वो शादी कर सकते हैं. उनकी शादी में जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा जैसी चीजें बाधा नहीं बनती हैं. इसका मतलब यह हुआ कि जो लड़की 18 साल की उम्र पूरी कर चुकी है, वो किसी भी जाति, धर्म और यहां तक कि विदेशी से शादी कर सकती है. यही बात लड़के के ऊपर भी लागू होती है.

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने कहा कि अगर लड़के की उम्र 21 साल हो चुकी है, तो वह किसी भी जाति, धर्म या किसी दूसरे देश के नागरिक से शादी कर सकता है. यदि कोई उनकी शादी में रोड़ा पैदा करता है या रोकता है, तो वो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाईकोर्ट और अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं. अगर नवदंपति को अपने परिजनों से जान-माल का खतरा है, तो वो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से सुरक्षा की मांग भी कर सकते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि किसी भी लड़के या लड़की को शादी करने के लिए किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है. शादी के लिए शर्त सिर्फ इतनी है कि लड़का या लड़की की दिमागी स्थिति ठीक होनी चाहिए, ताकि वो शादी के लिए अपनी सहमति दे सकें. आपको बता दें कि शादी के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट, इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट और फॉरेन मैरिज एक्ट समेत कई एक्ट बनाए गए हैं. इनके तहत शादी लड़की और लड़के की मर्जी से होती है. इसके लिए किसी से इजाजत की जरूरत नहीं होती है.

शफीन जहां बनाम केएम अशोकन और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि अनुच्छेद 21 के तहत शादी करने का अधिकार हर किसी का मौलिक अधिकार है. इसको कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना कोई छीन नहीं सकता है. शफीन जहां बनाम अशोकन के मामले में हादिया उर्फ अखिला अशोकन ने अपना धर्म बदल दिया था और मुस्लिम बन गई थी. इसके बाद उन्होंने शफीन जहां से शादी कर ली थी. सुप्रीम कोर्ट ने हादिया के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उनकी शादी को सही ठहराया था.

इसके अलावा एक अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट यहां तक कह चुका है कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने के अधिकार में गरिमा के साथ जिंदगी जीना भी आता है. इसके लिए व्यक्ति को अपनी मर्जी से जीवन साथी चुनने और शादी करने का अधिकार है. इतना ही नहीं, कोई व्यक्ति अपनी मर्जी के मुताबिक धर्म भी बदल सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने के अधिकार का मतलब जानवर की तरह जीवन जीने के अधिकार से नहीं है.

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शफीन जहां बनाम केएम अशोकन मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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