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Azam Khan: कहीं ये वोट ही तो बर्बादी की वजह नहीं...मुसलमानों पर आजम खान के फ्यूचर प्लान के मायने

Azam Khan news: यूपी विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही आजम खान के नए कदम को लेकर चर्चाएं तेज थीं. अब जबकि आजम खान जेल से बाहर आ गए हैं तो उनके सामने भी ये सवाल दागा गया. आजम खान ने किसी नए राजनीतिक विकल्प की बात तो नहीं की, लेकिन इस्लामिक संगठनों के बीच जाकर मुसलमानों के मुद्दों पर चर्चा की बात कहकर उन्होंने अपने प्लान को जरूर सामने रख दिया है.

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सपा नेता आजम खान (फाइल फोटो)
सपा नेता आजम खान (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • आजम खान दो साल से ज्यादा जेल में रहे
  • जेल से लौटकर आजम खान ने बताया प्लान
  • नए राजनीतिक विकल्प पर नहीं खोले पत्ते

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान लंबे समय बाद जेल से रिहा हो गए हैं. जेल से रामपुर लौटते ही आजम खान ने अपने ही अंदाज में विरोधियों को निशाने पर लिया, साथ ही तमाम राजनीतिक सवालों के जवाब भी दिए. सपा प्रमुख अखिलेश यादव से नाराजगी और सियासी भविष्य जैसे कई सवाल भी आजम खान से किए गए. अखिलेश पर तो हालांकि आजम ने सीधे तौर पर कुछ नहीं बोला लेकिन खुद को नेता विपक्ष से भी बड़ा कहकर उन्होंने अपना कद जरूर बता दिया. साथ ही इस्लामिक संगठनों के बीच जाने की बात कहकर आजम खान ने फ्यूचर प्लान भी सामने रख दिया.

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शुक्रवार को यूपी की सीतापुर जेल से अपने घर रामपुर लौटने के बाद आजम खान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान आजम खान ने देश के मौजूदा हालात और मुसलमानों की स्थिति पर कहा, ''मुसलमानों को जो भी सजा मिल रही है, वो उनके राइट ऑफ वोट की वजह से मिल रही है. सभी राजनैतिक दल ये समझते हैं कि मुसलमान सियासी दलों के राजनीतिक समीकरण खराब कर देते हैं.''

आजम खान ने कहा कि बरेली का मरकज हो, मुबारकपुर हो, देवबंद हो या नदवा..इन सभी से मैं इस बार कोशिश करूंगा कि हम सोचे कि कहीं ये वोट तो हमारी बर्बादी की वजह नहीं है. शायद आप मेरा मतलब समझ सके होंगे.

यानी आजम खान ने पत्रकारों पर छोड़ दिया कि आप समझ गए होंगे. आजम खान के इस बयान के क्या मायने हैं, ये अब बड़ा सवाल है.

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'खुद को मुस्लिम राजनीति में फिट करने की कोशिश'

आजम खान के बयान पर पत्रकार विजय उपाध्याय का कहना है कि आजम खान की पूरी राजनीति मुस्लिम केंद्रित रही है. आजम खान हमेशा से यूपी में खुद को मुस्लिमों का सबसे बड़ा लीडर मानते रहे हैं. लेकिन उनके जेल में होने के बावजूद मुसलमानों ने 2022 के विधानसभा चुनाव में एकमुश्त वोट सपा को दिया. ये बात आजम को सूट नहीं कर रही है. यही वजह है कि वो एक बार फिर से खुद को मुस्लिम राजनीति में फिट करने की कोशिश कर रहे हैं. इसकी एक वजह यूपी में असदुद्दीन ओवैसी की सक्रियता भी है, लिहाजा फिर से खुद को खड़ा करने के लिए उन्हें मुसलमानों के सामूहिक नेतृत्व की बात करनी होगी. 

तो क्या मुसलमानों को जोड़कर नया विकल्प तलाश रहे आजम खान?

विधानसभा चुनाव में सपा की हार के बाद से लगातार यूपी की राजनीति में ये चर्चाएं हैं कि आजम खान और उनके समर्थक सपा से नाराज चल रहे हैं. कई नेताओं ने आजम खान के समर्थन में सपा से इस्तीफे भी दिए और पार्टी नेतृत्व पर मुश्किल वक्त में आजम खान का साथ ने देने के आरोप भी लगाए. 

आजम खान से इसी से जुड़ा सवाल भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछा गया कि क्या वो मुस्लिमों का चेहरा बनकर राजनीति का नया विकल्प दे सकते हैं. इस पर आजम खान ने कहा, ''इस वक्त मेरे लिए बीजेपी, बहुजन समाज पार्टी या कांग्रेस इसलिए बहुत बड़ा सवाल नहीं है क्योंकि मेरे, मेरे परिवार और मेरे लोगों पर हजारों मुकदमें दर्ज हुए हैं. मैं बस इतना कह सकता हूं कि मेरी तबाहियों में मेरे अपने लोगों का बड़ा हाथ है.''

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ये भी पढ़ें- 'मुझे एनकाउंटर की धमकी दी गई है...', सीतापुर जेल से रामपुर पहुंचे आजम खान का आरोप

तो फिर आजम खान के लिए कौन-सा सवाल बड़ा है और उन्होंने मुसलमानों के बरेलवी-देवबंदी फिरकों समेत मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दर पर जाकर मुस्लिम मतदाताओं के बारे में सोचने की बात क्यों कही है. 

पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि आजम खान दरअसल कोई नया विकल्प खड़ा नहीं करना चाहते हैं, वो सपा के भीतर रहकर ही अपने पुराने कद को वापस पाना चाहते हैं, इसीलिए वो ये कवायद कर रहे हैं. 
 
सिद्धार्थ कलहंस का कहना है कि सपा से मुसलमानों की नाराजगी की बात भले ही चर्चा में हो लेकिन आजम खान जब सीतापुर जेल से रिहा हुए तो वहां सपा के मुसलमान विधायक नजर नहीं आए. इससे साफ जाहिर होता है कि आजम खान की स्वीकार्यता को झटका लगा है. इसीलिए आजम खान पहले खुद को मुस्लिम समाज के बीच खुद को मजबूती के साथ स्थापित करना चाहते हैं.

पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस का कहना है कि आजम खान ने अपनी राजनीति में कभी मुस्लिम धर्मगुरुओं को तवज्जो नहीं दी है, ऐसे में उनका इस्लामिक संगठनों के बीच जाने की बात कहना ही खुद में एकदम नई पहल है. और ये तमाम कोशिशें आजम खान इसलिए कर रहे हैं कि ताकि अखिलेश की सपा में भी वो अपना वही कद कायम रख सकें जो कभी मुलायम सिंह यादव के दौर में हुआ करता था. 

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अब सवाल ये है कि अगर आजम खान ऐसी कोशिश में हैं तो फिर उनके लिए ये राह कितनी आसान होगी.

आजम खान के लिए ये डगर कितनी आसान?

आजम खान की रिहाई ऐसे समय में हुई है जबकि देश में मुसलमानों से जुड़े मसलों पर हर तरफ चर्चा है. खासकर, यूपी के संदर्भ में देखा जाए तो एक बार फिर से योगी सरकार आने के बाद माहौल मुसलमानों के अनुकूल नहीं माना जा रहा है. वहीं, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ अब काशी की ज्ञानवापी मस्जिद के अस्तित्व पर भी संकट गहरा गया है. साथ ही बीजेपी नेताओं और हिंदूवादी संगठनों की तरफ से 'मथुरा की बारी' जैसे नारे भी लगाए जा रहे हैं.

ये ठीक उसी तरह का माहौल है जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद 90 के दशक में हुआ करता था. उस वक्त भी आजम खान मुसलमानों की आवाज बने थे और वहीं से उनकी राजनीति को एक नया आयाम मिला था.

AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी के अलावा कोई नेता फिलहाल खुलकर मुसलमानों के मुद्दों पर बोलता नजर नहीं आता है. हालांकि, चुनावी राजनीति में ओवैसी की स्वीकार्यता यूपी में नहीं हो पाई है, ऐसे में आजम खान को अबभी वही वैक्यूम नजर आ रहा है जिसे वो मुस्लिम समाज का साथ लेकर फिर से भरना चाहते हैं. 

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क्या है इन संगठनों की अहमियत?

आजम खान ने अपने बयान में देवबंदी और बरेलवी संगठनों का खासतौर पर जिक्र किया है. इसकी भी एक बड़ी वजह है. यूपी में मुसलमानों का सबसे बड़ा तबका सुन्नियों का है. सुन्नी मुसलमानों में देवबंदी और बरेलवी स्कूल ऑफ थॉट के लोग सबसे ज्यादा हैं. खासकर, आजम खान का जिस पश्चिमी यूपी-रुहेलखंड में सबसे ज्यादा असर है, वहां इन्हीं दोनों समूहों के मुसलमानों का वर्चस्व है. खुद उनके शहर रामपुर और आसपास के इलाकों में भी बरेलवी और देवबंदी मुसलमानों की संख्या सबसे अधिक है. 

हालांकि, आजम खान ने इन दोनों फिरकों से आगे बढ़कर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दरबार में जाने की बात भी कही है. ये वो बोर्ड है जिसमें देशभर के मुसलमानों से जुड़े सभी अलग-अलग समूहों के प्रतिनिधि शामिल हैं. एक और दिलचस्प बात ये कि शुक्रवार को जब आजम खान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, उसी दौरान दिल्ली में मुस्लिम मशावरत की बैठक हो रही थी, जिसमें मुसलमानों से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा हो रही थी और भविष्य की रणनीति बन रही थी. इस बैठक में मुसलमानों के सभी ग्रुप के सदस्य शामिल थे. 

आजम खान ने अपनी पूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक बार भी अखिलेश यादव से जुड़े किसी सवाल पर सीधा जवाब नहीं दिया. आजतक से खास इंटरव्यू में भी आजम खान ने बस इतना ही कहा उनकी अखिलेश यादव से कोई नाराजगी नहीं है. हालांकि, प्रेस कॉन्फ्रेंस में इशारों ही इशारों में आजम खान ने अपनी पोजिशन भी बताने का प्रयास किया. यूपी विधानसभा में नेता विपक्ष के पद को लेकर जब सवाल किया गया तो उन्होंने दो टूक कह दिया कि मैं उससे भी ज्यादा सीनियर हूं. यानी जिस पद पर फिलहाल अखिलेश यादव हैं, आजम खान ने खुद को उससे भी बड़ा बताया.

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इसके साथ ही रामपुर के जिन मुसलमानों की शिकायतों पर आजम खान मुकदमों में फंसे और जेल गए, उन्हें लेकर भी कोई सख्त टिप्पणी आजम ने नहीं की. साथ ही साथ, जिन इस्लामिक संगठनों और मौलानाओं से वो फासला रखते थे, उनके करीब जाने का सरेआम ऐलान भी कर दिया.

फिलहाल, ये तमाम बातें भले ही आजम खान के पुराने रास्ते पर चलने की तरफ इशारा कर रही हों, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले क्या राजनीतिक हालात सामने आते हैं, ये देखना भी दिलचस्प होगा.

 

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