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चुनाव खत्म, गठबंधन हजम... अखिलेश के साथ क्यों नहीं टिक पाते सहयोगी? अब राजभर से रार

यूपी के विधानसभा चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जिस गठबंधन के सहारे बीजेपी को कड़ी चुनौती थी, वो अब धीरे-धीरे बिखरने लगा है. सपा के कुछ सहयोगी नाता तोड़ चुके हैं तो कई नाराज हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर चुनाव खत्म होने के साथ ही क्यों सपा के सहयोगी दल नहीं टिक पाते हैं?

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अखिलेश यादव और ओम प्रकाश राजभर
अखिलेश यादव और ओम प्रकाश राजभर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • राजभर से रार, क्या सपा गठबंधन बिखरने लगा है
  • 2017 के बाद सपा और कांग्रेस के रिश्ते बिगड़ गए
  • 2019 के बाद सपा-बसपा की दोस्ती में आई खटास

उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने जातीय आधार वाले छोटे-छोटे दलों को जोड़कर मजबूत गठबंधन बनाया था, लेकिन अब वो धीरे-धीरे बिखराव की ओर है. महान दल ने सपा से नाता तोड़ लिया है तो सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और अखिलेश यादव की दोस्ती में दरार पड़ती दिख रही है. वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती की नजर सपा के मुस्लिम वोटबैंक पर है तो बीजेपी क्लीन स्वीप की दिशा में रणनीति बना रही. ऐसे में सपा के बिखरते कुनबे ने अखिलेश के लिए 2024 की जंग को मुश्किल बना दिया है?

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अखिलेश ने राजभर को दिया जवाब

उपचुनाव में मिली हार के बाद से सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर लगातार अखिलेश यादव पर निशाना साध रहे थे और उन्हें जमीन पर उतरने की नसीहत दे रहे थे. ऐसे में अखिलेश यादव ने मंगलवार को स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि उनको फिलहाल किसी की भी सलाह की जरूरत नहीं है. इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि राजनीति में आजकल पता नहीं कौन-कहां से ऑपरेट हो रहा है. राजभर और महान दल की नाराजगी के सवाल पर उन्होंने कहा कि अब कोई नाराज है तो मैं क्या कर सकता हूं? हम अपनी पार्टी के विस्तार के बारे में काम कर रहे हैं, बाकी लोग अपने दल का काम देखें. 

राजभर ने कहा- सच कड़वा होता है

ओम प्रकाश राजभर ने जवाबी हमला बोला है और कहा कि सत्य कड़वा होता है. राजभर ने कहा कि जब साथ थे तो हमें कौन ऑपरेट कर रहा था. उन्होंने कहा कि हमने क्या गलत कहा है. उपचुनाव जीतने के बाद बीजेपी के पीएम मोदी और सीएम योगी हैदराबाद कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं. ऐसे में देखना चाहिए कि हमारा मुकाबला किस दल और किस नेता से है. इस प्रकार की स्थिति में अपनी बात रखते हैं तो लोगों को सच कड़वा लगने लगता है.

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दिलचस्प बात यह है कि अखिलेश यादव ने यह नहीं बताया कि राजभर कहां से ऑपरेट हो रहे हैं और किसके इशारे पर वो हमले कर रहे हैं, लेकिन इससे एक बात साफ हो गई है कि अब बहुत ज्यादा दिनों तक दोनों ही दलों की दोस्ती नहीं चलने वाली. ऐसे में राजभर और सपा के बीच गठबंधन टूटता है तो पूर्वांचल के इलाके में बीजेपी को टक्कर देना अखिलेश यादव के लिए काफी मुश्किल होगा. वहीं, राजभर की बेचैनी आजमगढ़ उपचुनाव में बीजेपी के जीत के बाद उभरी है, क्योंकि सपा के दुर्ग में कमल खिलने से राजभर को लग रहा है कि ऐसे ही सपा का प्रदर्शन रहा तो उनका सियासी भविष्य क्या होगा. 

बीजेपी-बसपा की नजर सपा के वोटों पर

आजमगढ़ और रामपुर की सीट जीतकर बीजेपी के हौसले बुलंद हैं, और वो सूबे की सभी 80 लोकसभा सीटें 2024 के चुनाव में जीतने की रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी की नजर सपा के मजबूत वोटबैंक यादव पर है, जिन्हें आजमगढ़ फॉर्मूले के जरिए साधने में जुटी है. बीजेपी आजमगढ़ में दिनेश लाल यादव निरहुआ को खड़ाकर सपा के मजबूत दुर्ग को भेदने में सफल रही, जिसके बाद यादव वोटबैंक को जोड़ने की दिशा में काम शुरू कर दिया. 

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वहीं, आजमगढ़ में बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भले ही जीत नहीं सके, लेकिन मायावती का मुस्लिम-दलित समीकरण का प्रयोग सफल रहा है. ऐसे में मायावती की नजर सपा के कोर वोटबैंक मुस्लिम समुदाय पर है, जिन्हें साधने के लिए बसपा ने अपने तीन मुस्लिम नेताओं को जोनल प्रभारी का जिम्मा सौंपा है. 

सपा के सहयोगी दल छिटक रहे

सूबे में एक तरफ विपक्षी दल अखिलेश यादव के खिलाफ जबरदस्त तरीके से सियासी चक्रव्यूह रच रहे हैं तो दूसरी तरफ सहयोगी दल छिटक रहे हैं. यूपी विधानसभा चुनाव के बाद महान दल ने सपा गठबंधन से सबसे पहले नाता तोड़ा है तो अब ओपी राजभर और संजय चौहान के तेवर बदले दिख रहे हैं. संजय चौहान ने भी राजभर के सुर में सुर मिलाते हुए अखिलेश यादव को एसी कमरे से निकलकर जमीन पर काम करने की नसीहत दी थी. इसी पर अखिलेश ने पलटवार किया. ऐसे में कई सियासी सवाल खड़े हो रहे हैं. 

सपा और कांग्रेस की टूटी दोस्ती

राजभर के बयान पर अखिलेश ने जिस तरह से रिएक्ट किया है, उसके बाद से सवाल उठ रहे हैं कि हर चुनाव के बाद सहयोगी दलों के साथ सपा के रिश्ते क्यों बिगड़ जाते हैं. साल 2017 में सपा और कांग्रेस ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजे पक्ष में नहीं आए. ऐसे में सपा और कांग्रेस के बीच रिश्ते इतने बिगड़े कि अभी तक नहीं सुधरे. 2019 के चुनाव में अखिलेश ने कांग्रेस को अपने गठबंधन का हिस्सा तक नहीं बनाया. 2022 के चुनाव में भी दूरी बनाकर रखी. प्रियंका गांधी ने भी अखिलेश यादव पर सवाल खड़े किए थे और कांग्रेस नेता सपा को बीजेपी की मदद करने वाली पार्टी बताते रहे. 

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बसपा और सपा के जब बिगड़े रिश्ते

वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा के साथ गठबंधन कर चनाव लड़ा, लेकिन नतीजे बेहतर नहीं रहे. सपा को 5 सीटें मिली थीं तो बसपा 10 सीटें जीतने में सफल रही. लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद ही सपा-बसपा गठबंधन में बिखराव देखने को मिला था. मायावती ने प्रेस कॉफ्रेंस करके सपा के यादव वोटबैंक पर सवाल खड़े किए थे, लेकिन अखिलेश ने चुप्पी साध ली थी. बाद में अखिलेश यादव ने मायावती के तमाम जनाधार वाले नेताओं को सपा में मिला लिया था, जिसके चलते 2022 चुनाव में बसपा को काफी नुकसान हुआ. ऐसे में मायावती ने भी आजमगढ़ में अपना कैंडिडेट उतारकर और रामपुर में प्रत्याशी न उतारकर सियासी झटका दिया. 

 

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