बीते 27 अगस्त को गाजीपुर से शुरू हुई समाजवादी पार्टी की 'सामाजिक न्याय व लोकतंत्र बचाओ' यात्रा का रविवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर समापन हो गया. इस कार्यक्रम की सबसे खास बात मुलायम सिंह और रामगोपाल यादव की मौजूदगी रही. शिवपाल यादव के सेकुलर मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़ने के कयासों के बीच मुलायम सिंह ने यह साफ कर दिया कि वह समाजवादी पार्टी और अपने बेटे अखिलेश के ही साथ हैं.
यह पहली बार नहीं है जब मुलायम कुनबे की रार का अंत अखिलेश यादव को हीरो बनाकर किया गया है. इससे पहले भी मुलायम कुनबे के विवाद की कहानी में क्लाइमेक्स कुछ ऐसा ही रहा है. परिवार से जुड़े हर विवाद में यही सवाल आता है कि मुलायम सिंह यादव किधर आएंगे? लेकिन कहानी का अंत हमेशा की तरह एक ही होता है. वो ये कि मुलायम सिंह अपना आशीर्वाद अपने बेटे अखिलेश यादव को दे देते हैं. यानी अखिलेश इस कहानी में हीरो बनकर उभरते हैं और सपा में अखिलेश राज को चुनौती देने वाले विलेन बन जाते हैं.
पहले भी ऐसे ही हुआ है कहानी का अंत
पहले भी अमर सिंह, शिवपाल यादव समेत मुलायम के करीबी कई नेता अखिलेश से मुकाबले में पटखनी खा चुके हैं. हर बार दिखी सियासी जंग में सभी मुलायम के अपने साथ होने का दावा करते रहे. आखिर तक मुलायम भी अखिलेश विरोधी गुट के साथ दिखते रहे लेकिन आखिर में मुलायम अपने बेटे के साथ खड़े हो गए. यही वजह है कि आज उनकी ही पार्टी में चल रही है. अमर सिंह तो पार्टी से अलग हो गए.
इसी तरह अखिलेश की सपा में शिवपाल लंबे वक्त से अलग-थलग थे. शिवपाल ने आखिरकार अपनी पार्टी भी बना दी. यही नहीं, मुलायम को अपनी पार्टी से चुनाव लड़ाने की बात कह दी. मुलायम का आशीर्वाद अपने साथ बता पोस्टरों- बैनरों में मुलायम की तस्वीर तक छपवा दी. ऐसे में इस पर मुलायम की खामोशी से तमाम अटकलें लगने लगीं. लेकिन फिर अचानक मुलायम ने वही किया, जिसकी उम्मीद थी.
मौजूदगी ने कयास पर विराम लगा दिए
रविवार को दिल्ली के जंतर मंतर में समाजवादी पार्टी की मंच पर मुलायम सिंह की मौजूदगी ने सारे कयास पर विराम लगा दिए. मुलायम के आते ही अखिलेश के चेहरे की खुशी साफ दिख रही थी और सपा कार्यकर्ताओं ने जब मुलायम की शान में 'जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है, 'धरतीपुत्र मुलायम सिंह' के नारे लगाए तो मुलायम की मंद-मंद मुस्कुराहट बता रही थी कि मानों पिता अपनी विरासत सौंप कर सन्तुष्ट नजर आ रहे हों.
हुआ भी कुछ ऐसा ही, मुलायम ने माइक संभाला तो सीधे कहा कि मेरी समाजवादी पार्टी कभी बूढ़ी ना हो ये मेरी इच्छा रही है और आज यहां आप नौजवानों को देखकर लग रहा है कि मेरी इच्छा पूरी हो रही है. फिर क्या था, अखिलेश के चेहरे पर खुशी का ठिकाना नहीं था. इसके बाद जैसे ही अखिलेश ने माइक संभाला तो सबसे पहले कहा कि नेताजी के आने से हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार हुआ है. कुल मिलाकर नेताजी ने सपा की अपनी विरासत अखिलेश के हाथों में होने पर मुहर ही नहीं लगाई बल्कि, उनकी इच्छा के हिसाब से अखिलेश उसे आगे बढ़ा रहे हैं, ये संदेश भी दे दिया.