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सियासत के मजबूत 'पहलवान' थे मुलायम, तीन बार रहे यूपी के सीएम 

कांग्रेस विरोध की बुनियाद पर सियासत की शुरुआत करने वाले मुलायम सिंह यादव पहलवानी के शौकीन थे. मुलायम का चरखा दांव कुश्ती के अखाड़े से लेकर सियासी अखाड़े तक मशहूर रहा. मुलायम सिंह यादव ने तीन बार आबादी के लिहाज से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली.

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82 साल की उम्र में मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया (फाइल-फोटो)
82 साल की उम्र में मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया (फाइल-फोटो)

देश के सबसे बड़े सूबे यानी उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक करियर साढ़े पांच दशक लंबा रहा. मुलायम सिंह यादव कांग्रेस विरोधी राजनीति की सोच के साथ सियासी अखाड़े में कूदे और राम मनोहर लोहिया के साथ समाजवाद की राह पकड़ ली. मुलायम सिंह यादव ने चौधरी चरण सिंह के सहारे सियासी बुलंदी हासिल की. पहलवानी से राजनीति में आए मुलायम अपने दौर की राजनीति के मजबूत 'पहलवान' रहे.

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भारत की राजनीति के अखाड़े में हर कोई मुलायम सिंह यादव नहीं हो सकता. समाजवाद की राह पर चलकर पहलवानी से राजनीति में आए मुलायम सिंह यादव को उन राजनेताओं में शुमार किया जाता है, जिनके सियासी दांव-पेंच ने अपने दौर में कई धुरंधरों को पटखनी दी. मुलायम आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और अब उनके खून-पसीने से सींची समाजवादी पार्टी को उनके बेटे अखिलेश यादव संभाल रहे हैं.

यूपी का मुख्यमंत्री रहने के बाद अखिलेश अब अन्य विपक्षी दलों को पीछे छोड़कर राज्य की राजनीति में मुख्य विपक्षी नेता की भूमिका में हैं. मुलायम सिंह ने केंद्र की सत्ता में रक्षा मंत्री का पद भी संभाला लेकिन सत्ता के शीर्ष पद यानी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक कभी नहीं पहुंच पाए. 

1939 में हुआ मुलायम का जन्म 

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आजादी से पहले 1939 वह साल था, जब दुनिया द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत होने के बाद कराह रही थी. देश में कांग्रेस के नेतृत्व में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन का रुख बदल रहा था. सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के रूप रंग को बदलने की कोशिश जो कर रहे थे. यही वो साल था, जब मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ. 22 नवंबर 1939 को इटावा के सैफई गांव में मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ. मुलायम के पिता का नाम सुघर सिंह और मां का नाम मारुति देवी था. मुलायम के पिता किसान थे. 

मुलायम सिंह यादव को पहलवानी का काफी शौक था. उन्हें कुश्ती के कई दांव आते थे. उनका चरखा दांव अखाड़े से लेकर सियासत तक में काफी मशहूर था. अपने इस दांव का इस्तेमाल उन्होंने राजनीति के अखाड़े कई बार किया, जिससे कई दिग्गज चारों खाने चित भी हुए. 

15 साल की उम्र में जेल गए 

1947 में देश जब आजाद हुआ तब पंडित जवाहर लाल नेहरू करिश्माई नेता थे, लेकिन जल्द ही देश में समाजवाद के स्वर मुखर होने लगे. डॉ. राम मनोहर लोहिया इसके पुरोधा थे और 1950 के आसपास उन्होंने समाजवादी आंदोलनों की शुरुआत की. मुलायम सिंह यादव भी इस कांग्रेस विरोधी लहर का हिस्सा बन गए. छोटी सी उम्र में ही वे आंदोलन में कूद पड़े थे. 

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राम मनोहर लोहिया के 24 फरवरी 1954 को नहर रेट आंदोलन की वजह से यूपी में भी खूब हंगामा हुआ. तत्कालीन सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए लोहिया और उनके समर्थकों को जेल में डाल दिया. उसके बाद पूरे प्रदेश में प्रदर्शन हुए और जुलूस निकाले गए. इटावा जिले में भी प्रदर्शन चल रहा था. इटावा जिले में नत्थू सिंह और अर्जुन सिंह भदौरिया आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. प्रशासन ने उस जुलूस में शामिल करीब दो हजार लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. मुलायम सिंह यादव भी जेल जाने वालों में शामिल थे, उस वक्त उनकी उम्र महज 15 साल थी. 

नत्थू सिंह बने मुलायम के राजनीतिक गुरु 

नत्थू सिंह को मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक गुरु कहा जाता है. शुरुआत से ही वो मुलायम में एक अच्छे नेता के गुण देखा करते थे. उनकी पहलवानी ने भी नत्थू सिंह को प्रभावित किया. यही वजह थी कि मुलायम ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत नत्थू सिंह की परंपरागत विधानसभा सीट जसवंत नगर से की. 1967 में नत्थू सिंह ने खुद राम मनोहर लोहिया से कह कर मुलायम सिंह यादव को जसंवत नगर सीट से विधानसभा चुनाव में टिकट दिलाया था. नतीजे सामने आए तो मुलायम पहली ही बार में कांग्रेस के दिग्गज नेता को मात देने में सफल रहे. 28 साल की उम्र में मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के सबसे युवा विधायक चुने गए. 

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आपातकाल में भी जेल गए मुलायम 

मुलायम सिंह यादव को 27 जून 1975 को तब गिरफ्तार किया गया था जब वे एक जमीनी विवाद का मामला सुलझाने भालेपुरा गांव गए हुए थे. पंचायत के दौरान पुलिस ने गांव को चारों तरफ से घेर लिया और मुलायम सिंह को मीसा के तहत गिरफ्तार कर लिया. जनवरी 1977 तक करीब 18 महीने मुलायम इटावा जेल में ही रहे. इस दौरान मुलायम सिंह का सारा काम उनके भाई शिवपाल यादव ही देखा करते थे. 

जेल से उनका संदेश समर्थकों तक पहुंचाने का काम भी शिवपाल यादव ही करते थे. इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि अब जब मुलायम के बेटे अखिलेश यादव के हाथ में पार्टी की कमान है, तब मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल यादव सूबे में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं. 

मुलायम सिंह पहली बार बने मंत्री   

आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी और कांग्रेस के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट था. 1977 के चुनावों में जनता पार्टी नाम से एक नई पार्टी बनी थी. देश में मोरारजी देसाई की सरकार आई, तब उन्होंने कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार को बर्खास्त कर दिया. यूपी में भी चुनाव हुए और राम नरेश यादव यूपी के सीएम बने. राम नरेश की कैबिनेट में मुलायम सिंह यादव को भी जगह मिली. उन्हें राज्य का सहकारिता मंत्री बनाया गया. इस तरह 1977 में मुलायम सिंह यादव पहली बार मंत्री बने. इसके बाद 1980 में वह लोक दल के अध्यक्ष चुने गए जो बाद में जनता दल का हिस्सा बन गई. 1982 में मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष चुने गए. 

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1989 में मिली मुख्यमंत्री की कुर्सी 

जमीन से जुड़ी राजनीति करने वाले मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी 1989 में मिली. मुलायम 5 दिसंबर 1989 को देश के सबसे बड़े राज्य के मुखिया बने. लेकिन मुलायम सिंह यादव की सत्ता ज्यादा समय नहीं चल पाई. 24 जनवरी 1991 को उनकी सरकार गिर गई. इसके बाद 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम और मायावती की पार्टी बीएसपी से हाथ मिलाया और दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. 

5 दिसंबर 1993 को मुलायम सिंह ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली. मुलायम सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और बसपा ने समर्थन वापस ले लिया.  2 जून 1995 को लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड हो गया. बता दें कि सहयोगी बसपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए गेस्ट हाउस में विधायकों की बैठक बुलाई थी. मीटिंग शुरू होते ही सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस में हंगामा कर दिया. गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम की सरकार गिर गई और मायावती बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गईं.

बाबरी मस्जिद को गिरने से बचाया 

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद ने इस देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया. बीजेपी को इस आंदोलन में संजीवनी देने का काम मुलायम ने ही किया. तारीख थी 30 अक्टूबर 1990, जब कारसेवक बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ रहे थे. उस समय यूपी की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर मुलायम सिंह यादव के पास ही थी. उनकी सरकार ने सख्त फैसला लेते हुए कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया. इसमें कई कारसेवकों की मौत हो गई. 

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मुलायम सिंह के इस कदम से बाबरी मस्जिद तो उस समय बच गई, लेकिन मुलायम सिंह यादव की छवि हिंदू विरोधी बन गई. हिंदूवादी संगठनों ने उन्हें 'मुल्ला मुलायम' कहना शुरू कर दिया. अपनी इस हिंदू विरोधी छवि से मुलायम और उनकी पार्टी कभी नहीं उबर पाए, लेकिन वे मुसलमानों के सबसे बड़े नेता बनकर भी उभरे. इसका सियासत में उन्हें खूब फायदा मिला, जिसके चलते 1992 में उन्होंने जनता दल से अलग होकर अपनी समाजवादी पार्टी का गठन किया. बसपा के साथ मिलकर मुलायम सिंह यादव ने बीजेपी के पक्ष में बनी राम मंदिर आंदोलन की हवा को मात दे दी, लेकिन दो साल बाद गेस्ट हाउस कांड से उनकी सरकार चली गई. 

रक्षा मंत्री की कुर्सी भी संभाली 

1995 में मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद मुलायम का कद सियासत में गिरा नहीं बल्कि वे और बड़े बनकर खड़े हुए. 1996 में वे मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से 11वीं लोकसभा के सदस्य चुने गए. जब केंद्र में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो मुलायम किंगेमकर बने. तीसरे मोर्चे की सरकार में रक्षा मंत्री बने और अपनी पार्टी के कई नेताओं को केंद्र में मंत्री बनवाया. हालांकि उनका कार्यकाल लंबा नहीं रहा, क्योंकि 1998 में सरकार ही गिर गई. इसके बाद मुलायम सिंह ने 29 अगस्त 2003 को तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 11 मई 2007 तक राज्य की सत्ता संभाली.

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