scorecardresearch
 

सुप्रीम कोर्ट ने की यूपी के दर्जा प्राप्‍त मंत्रियों की बत्ती गुल

सुप्रीम कोर्ट ने निगम, निकाय, बोर्ड अध्यक्षों, उपाध्यक्षों और सलाहकारों को राज्यमंत्री का दर्जा देने और लालबत्ती की सुविधा मुहैया कराने की यूपी सरकार की दलील शुक्रवार को खारिज कर दी.

Advertisement
X
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने निगम, निकाय, बोर्ड अध्यक्षों, उपाध्यक्षों और सलाहकारों को राज्यमंत्री का दर्जा देने और लालबत्ती की सुविधा मुहैया कराने की यूपी सरकार की दलील शुक्रवार को खारिज कर दी.

अखिलेश सरकार को करारा झटका देते हुए अदालत ने कहा, इन सबके लिए सरकारी खजाने से धन लुटाने की जरूरत नहीं है. सरकार चाहे तो इन्हें अधिक वेतन दे, जैसा कि प्रतिस्पर्धा आयोग के अध्यक्ष को दिया जाता है. प्रदेश सरकार ने शीर्षस्थ अदालत में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 18 जुलाई, 2007 के शासनादेश पर अमल पर रोक लगा दी थी.

इसी शासनादेश के तहत तमाम लोगों को कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री, उपमंत्री का दर्जा और लालबत्ती की सहूलियत मुहैया कराई जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने दर्जा प्राप्‍त मंत्रियों की नियुक्ति को मंत्रिपरिषद गठन के सिद्धांतों के खिलाफ माना है. जस्टिस आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या के पंद्रह प्रतिशत से ज्यादा को मंत्री का दर्जा देना क्या असल में सिद्धांतों को प्रभावित नहीं करता? जबकि हम तो मंत्रियों के समूह के गठन में सिद्धांतों का ही अनुसरण करते हैं.

लेकिन यहां पर तो बहुत सारे लोगों को यह दर्जा दिया गया है. आप इस तरह के ऑफिस मेमोरेंडम जारी करके इन सबको विभिन्न तरह का दर्जा प्रदान कर देते हैं. अप्रत्यक्ष तौर पर यह सिद्धांतों के खिलाफ है. पीठ ने यह टिप्पणी तब की, जब राज्य सरकार की ओर से ऑफिस मेमोरेंडम का हवाला दिया गया. इसके मुताबिक उत्तर प्रदेश में दो सौ से भी ज्यादा लोगों को राज्यमंत्री और मंत्री का दर्जा दिया जा सकता है.

यूपी सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्‍ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने ऑफिस मेमोरेंडम को न्यायोचित ठहराने का प्रयास करते हुए कहा कि यह पुरानी सरकार (मायावती) के कार्यकाल में 2007 में जारी किया गया था.

Advertisement
Advertisement