
कोरोना के असर ने लोगों के दिलो दिमाग पर गहरा असर डाला है. इस प्रभाव इतना व्यापक है कि इसे भूलने में कई साल लगेंगे. अब जब कोरोना का असर कम हुआ है, तो लगभग 18 महीने बाद उत्तर प्रदेश के स्कूल 1 सितंबर से खुल गए हैं. आजतक की टीम पहुंची यूपी के कई प्राइवेट स्कूलों में और ये पता लगाने की कोशिश की इन डेढ़ सालों में भारत के नौनिहालों को साक्षर और शिक्षित करने वाले इन स्कूलों का ये सफर कैसा रहा?
दम तोड़ रहे स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर, बिना वेतन हलकान शिक्षक, पलायन को मजबूर छात्र-छात्राएं और एक भविष्य को लेकर आशंकाएं. यूपी के प्राइवेट स्कूलों का तो यही हाल था.
आजतक की टीम पहुंची सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली. रायबरेली के सबसे बड़े एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के मालिक रमेश बहादुर सिंह की माने तो उनके स्कूल में हजार से ज्यादा स्कूल स्टाफ हैं. 14 हजार से ज्यादा स्टूडेंट हैं और दो सौ से ज्यादा आवागमन के साधन. लेकिन करोना काल में ऑनलाइन स्कूल की शिक्षा व्यवस्था से उन्हें बहुत नुकसान हुआ. उन्होंने कहा कि बीते 2 सालों में 50 परसेंट से ज्यादा छात्राओं/छात्रों के परिजनों ने शुल्क ही जमा नहीं किया. इस वजह से स्कूल की सारी व्यवस्थाएं चौपट हो गई.
रायबरेली के स्कूलों की आय खत्म, पढ़ाई चौपट
रायबरेली में एसजेएस ग्रुप और एनएसपीएस जिले के 2 बड़े ग्रुप हैं. दोनों के ही पास सैकड़ों की संख्या में वाहन हैं, दर्जनों की तादाद में स्कूल की शाखाएं हैं. इसके अलावा हजारों की संख्या में स्टूडेंट हैं. कोरोना काल में स्कूलों का खर्च बना लेकिन फीस के रूप में आय लगभग सूख ही गई. स्कूल संचालकों का कहना है कि हम कई साल पीछे चल गए हैं.
एसजेएस स्कूल के एमडी रमेश बहादुर सिंह ने कहा, "पिछले मार्च से लेकर कोरोना महामारी के कारण स्कूल बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. पूरा आर्थिक तंत्र प्रभावित हुआ है. सरकार के प्रयास के बावजूद आज भी विषम स्थिति बनी हुई है. जहां तक विद्यालय की बात है तो हमारे स्कूल में करीब 1200 स्टाफ हैं. 200 वाहन हैं. अगर हम वेतन की बात करें तो 1 से डेढ़ करोड़ रुपया लगता है." उन्होंने कहा कि गाडियों का बीमा है. बिजली बिल है, अन्य खर्चे हैं. बैंक पर हमारा ओवरड्राफ्ट हो चुका है. हालात तो इतने बुरे हैं कि स्कूल बंदी के कगार पर है.
उन्होंने कहा कि स्कूल बंद होने का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर हुआ है. बच्चे चिड़चिड़े हो रहे हैं. बच्चा हमारे देश की नींव हैं, अगर बच्चे का भविष्य प्रभावित होगा तो देश का भविष्य प्रभावित होगा.
आधे अभिभावक फीस नहीं जमा कर रहे हैं
वही जिले में करीब 9 ब्रांचों का स्कूल चलाने वाले एनएसपीएस ग्रुप की पदाधिकारी रश्मि शर्मा के अनुसार उनके स्कूल में 5000 बच्चे पढ़ते हैं और 500 से ज्यादा का स्टाफ है. लेकिन 50 परसेंट से ज्यादा बच्चों के अभिभावक फीस नहीं जमा कर पा रहे हैं. जिसकी वजह से आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई और हम सालों पीछे चले गए हैं.
बच्चों को लाने वाले रिक्शा चालक परेशान
जिले में छोटे बच्चों का स्कूल चलाने वाले राइजिंग चाइल्ड पब्लिक स्कूल के प्रबंधक अरविंद श्रीवास्तव कहते हैं कि उनके जानने वाले कई रिक्शा वालों को खाने के भी लाले पड़ गए हैं क्योंकि कोरोना काल में बच्चे स्कूल नहीं आ रहे थे इस वजह से उनका रोजगार बंद हो गया. स्कूल खुलने के बाद 600 में से 100 बच्चे ही विद्यालय पहुंचे. इनमें से भी 25 फीसदी बच्चों का स्कूल फी बाकी है.
स्कूल में बच्चे आ नहीं रहे जिसकी वजह से उनका रोजगार भी बंद हो चुका है आज स्कूल का पहला दिन था जिसमें 600 बच्चों में महज 100 बच्चे ही आज स्कूल में आए और आज भी 25 परसेंट बच्चों की फीस आज भी उधार है और इसे मिलने की उम्मीद भी अब कम ही दिखाई पड़ रही है.
हालात नहीं सुधरे तो तालाबंदी
शहर के बीचों-बीच अपना स्कूल चलाने वाले जेपीएस पब्लिक स्कूल के मालिक आर सी श्रीवास्तव का कहना है कि बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपनी छोटी सी टीम को पूरे डेढ़ साल सैलरी दी. एक भी महीने की सैलरी नहीं काटी ना ही किसी एक स्टाफ को नौकरी से निकाला. उन्होंने कहा कि चाहे वह स्टाफ टीचर रहा हो, कर्मचारी रहा हो, या फिर चपरासी. लेकिन अब सारी कमाई खत्म हो गई है. अब आगे तो सरकार से ही आस है नहीं तो तालाबंदी ही अंतिम रास्ता होगा.
चंदौली में स्कूल का इंफ्रास्ट्रक्चर बर्बाद
उत्तर प्रदेश के चंदौली में कोरोना ने निजी स्कूल संचालकों की कमर ही तोड़ दी. स्कूल का पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर बर्बाद हो चुका है. ये निजी विद्यालय बंद हैं और इस वजह से बैंकों से लोन भी नहीं ले पा रहे हैं. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से फीस नहीं मिल पा रहा है, इसलिए समय से अपने अध्यापकों और अन्य स्टाफ को सैलरी दे पा रहे हैं. ऐसे कई बच्चे हैं जिनके अभिभावक फीस जमा नहीं करा पाए हैं, इस वजह से इन्होंने अपने बच्चों का दाखिला इस स्कूल से निकाल कर दूसरे स्कूल में करा लिया है.
आजतक ने ऐसे ही प्राइवेट स्कूलों का रियलिटी चेक किया और हालात जानने की कोशिश की. आजतक की टीम चंदौली के दीनदयाल नगर में स्थित सेंट्रल पब्लिक स्कूल पहुंची और वहां के हालात का जायजा लिया. स्कूल के सीएमडी और उत्तर प्रदेश विद्यालय संघ के संयोजक विनय कुमार वर्मा ने बताया कि लगभग 2 साल के लॉकडाउन में प्रदेश के तकरीबन 20% स्कूल बंद हो चुके हैं. खासकर के ग्रामीण अंचल के विद्यालयों की स्थिति बहुत विकट है.
स्कूल संचालक ने कहा कि लोग फीस नहीं जमा कर रहे हैं. अभी जिन विद्यालयों में 100 बच्चे थे उनमें 10-15- 20 बच्चे बचे हुए हैं. स्थिति बहुत ही खराब हो चुकी है. विद्यालय प्रबंधक तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं. उनके ऊपर तमाम तरह के लोन हैं. सरकार ने बिजली के बिल में कोई सहूलियत नहीं दी है. विद्यालय बंद थे लेकिन बिजली चालू थी. बिजली का बिल लगातार आ रहा है. इसके अलावा जो दूसरे तरह के टैक्स हैं, उसे भी सरकार ले रही है. सरकार से किसी भी तरह की सहूलियत नहीं मिली.
बैंक से फोन आता है, हमारा किस्त जमा कीजिए
रिपोर्ट के अनुसार गोरखपुर बलिया में एक-दो केस ऐसे आए थे जहां स्कूल संचालकों ने आत्महत्या कर ली थी. स्कूल संचालकों ने कहा कि बहुत ही विषम परिस्थिति है. लोन सिर पर चढ़ा हुआ है, पैसे आ नहीं रहे हैं. घर चलाने का खर्च है, अपने शिक्षकों को वेतन देने का तनाव अलग है. इधर बैंक और तमाम लोगों के फोन आते हैं कि हमारा किस्त जमा कीजिए.
कभी 4200 बच्चे थे, अब 800
विनय कुमार वर्मा आगे कहते हैं कि हमारे कुल 4 विद्यालय संचालित होते हैं और चारों विद्यालयों को मिलाकर हमारे पास 4200 के आस पास बच्चे हुआ करते थे. आज की तारीख में हमारे चारों विद्यालय मिलाकर के 800 से ज्यादा बच्चे नहीं हैं. इतना बड़ा नुकसान हुआ है जिसकी सीमा नहीं है. उन्होंने कहा कि जो अभिभावक आ भी रहे हैं वह एक अलग तरीके से ही बात करते हैं कि हम पिछला पैसा नहीं देंगे,आप बच्चे को आगे पढ़ाइए.
देवरिया के स्कूलों की दारुण कहानी
कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन खत्म होने के लगभग 18 महीने बाद बुधवार को कक्षा पांच तक के प्राइवेट और सरकारी स्कूल खुल गए. ये 18 महीने निजी स्कूलों के लिए किसी बुरे स्वपन की तरह गुजरे हैं. आजतक की टीम जब देवरिया में प्राइवेट स्कूलों का हाल जानने पहुंची तो स्कूल संचालकों ने अपनी व्यथा बताई. देवरिया के एक प्राइवेट स्कूल के प्रबंधक सूरज आर्या अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि उनके यहां 8 टीचर पढ़ाते थे लेकिन कोरोना महामारी के दौरान उनके द्वारा सैलरी नही देने पर सभी ने अब स्कूल आना बंद कर दिया है. लॉकडाउन में बच्चों के अभिभावक भी परेशान थे, इसलिए स्कूल फीस नही मिल पा रही थी. उन्होंने बताया कि कर्जन लेकर स्कूल के भवन का किराया चुकाए हैं.
कर्ज लेकर स्कूल किराया चुकाया
देवरिया के रघवापुर में 12 साल पहले नर्सरी से कक्षा पांच तक के स्कूल की स्थापना हुई थी. ममता इस स्कूल की प्रिंसिपल हैं. आज स्कूल खुलने पर जब आजतक टीम पहुंची तो देखा कि केवल प्रबंधक महोदय एक क्लास रूम में सभी क्लास के 8 बच्चों को एक साथ पढ़ा रहे थे. जब हमने उनसे कोरोना काल में हुई दिक्कतों के बारे में पूछा तो उनके चेहरे पर महामारी से पैदा हुई बेबसी और मजबूरी साफ झलक रही थी. उन्होंने कहा कि उनके स्कूल के अध्यापकों ने सैलरी नही मिलने के चलते साथ छोड़ दिया. यहां तक कि 8 कमरे का स्कूल भवन किराए पर है जिसका किराया कर्ज लेकर चुकाना पड़ा.
पति-पत्नी मिलकर स्कूल चलाते हैं, अब गृहस्थी कैसे चलाएं?
स्कूल संचालक सूरज आर्या ने कहा कि 18 महीने से स्कूल का किराया नहीं दे पाए हैं. शिक्षकों ने स्कूल आना छोड़ दिया है. उन्होंने कहा कि वे पति-पत्नी मिलकर स्कूल चलाते हैं. ऑनलाइन क्लास भी चलाएं हैं मई में फिर जब करोना फैला तो हम लोगों ने स्कूल बंद कर दिया, ऑनलाइन क्लास भी बंद कर दिए क्योंकि अभिभावकों ने फीस देना बंद कर दिया. हमलोगों ने स्कूल की दाई को लगातार सैलरी दी क्योंकि उसकी स्थिति बहुत खराब थी.
गोंडा में शिक्षण छोड़कर दूसरे काम में लगे शिक्षक
रायबरेली, चंदौली, देवरिया के अलावा आजतक की गोंडा के प्राइवेट स्कूलों का जायजा भी लेने पहुंची. यहां भी कमोबेश यही कहानी नजर आई. गोंडा के प्राइवेट स्कूलों के अध्यापकों को अपनी आजीविका चलाने के लिए अन्य काम करने पर मजबूर होना पड़ा.
गोंडा के मुजेहना के माता बदल मेमोरियल इंटर कालेज के प्रबंधक खेमराज मिश्र की माने तो कोरोना काल ने सभी को बेहाल कर दिया है. उन्होंने कहा कि जब हमें फीस नही मिली तो हम कैसे और कहां से स्टाफ को वेतन देते? स्कूल भी मरम्मत कराना है, बिजली बिल भी देना पड़ा, इन 18 महीनों को हमने कैसे काटा है ये हम सब ही जानते हैं
फीस नहीं दे पाते हैं तो एंड्रायड फोन कहां से लाएंगे
खेमराज मिश्र ने कहा कि सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों का हुआ बच्चों के भविष्य का हुआ है. उन्होंने बताया कि गांव के अभिभावक फीस देने की स्थिति में नही हैं तो उनके पास एंड्रॉयड फोन की कल्पना भी नही की जा सकती है. इसलिए ऑनलाइन क्लास का सवाल ही पैदा नहीं होता था. खेमराज मिश्रा ने आशा व्यक्त की कि अब स्कूल खुला है तो फीस आएगा तो फिर सभी की जिंदगी पटरी पर आएगी.
खेमराज मिश्र की माने तो उनके स्कूल में 430 बच्चे पढ़ते हैं और 16 स्टाफ भी हैं. बच्चों को लाने और वापस ले जाने के लिए एक वैन भी है. इन सभी का खर्चा पिछले 18 महीनों में खुद उठाना पड़ा है.