इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम पर चल रहे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम-महाकुंभ मेले में तमाम छोटे-बड़े व्यवसायों के फलने-फूलने के बीच ‘नोट के बदले सिक्के’ का धंधा खूब चल रहा है.
संगम तट से सटे इलाहाबाद के दारागंज, अलोपीबाग, कीडगंज, बैरहना, अल्लापुर के लोग प्रतिदिन संगम के विभिन्न घाटों पर सुबह से सिक्के बेचते नजर आते हैं.
सैकड़ों की संख्या में मेला क्षेत्र में सिक्के बेचने वाले ये लोग देश-विदेश से आने वाले श्रद्घालुओं की ‘नोट के बदले सिक्के’ की जरूरतें पूरी करते हैं.
दारागंज निवासी जितेंद्र निषाद कहते हैं, ‘संगम स्नान करने आने वाले श्रद्घालु स्नान करने के बाद गंगा में सिक्के डालते हैं. इसके अलावा गंगा आरती, संगम तट पर स्थित मंदिरों में पूजा-अर्चना के समय श्रद्घालुओं को काफी सिक्कों की आवश्यकता होती है. हम लोग श्रद्घालुओं को नोट के बदले सिक्के देते हैं.’
उन्होंने बताया, ‘हम 10 रुपये के नोट के बदले छह रुपये के सिक्के देते हैं. कभी-कभी अधिक मोलभाव करने पर सात रुपये के सिक्के भी दे देते हैं.’
इस धंधे में शामिल हर शख्स कम से कम 500 रुपये के सिक्के लेकर तड़के से संगम के विभिन्न घाटों पर बैठकर ‘नोट के बदले सिक्के ले लो’ की आवाज लगाता है.
आम तौर पर संगम स्नान करने आने वाला लगभग हर श्रद्घालु गंगा में सिक्के डालने से लेकर पूजा-अर्चना और गंगा आरती में सिक्के का प्रयोग करता है.
अलोपीबाग निवासी रोहित कुमार ने कहा, ‘हम लोग आम दिनों में 500-600 रुपये तक मुनाफा कमाते हैं. शाही स्नान के समय तो यह आंकड़ा हजार के ऊपर पहुंच जाता है, क्योंकि शाही स्नान में लाखों की भीड़ संगम पर होती है.’
उन्होंने कहा, ‘मैंने मौनी अमावस्या के शाही स्नान के दिन दो हजार रुपये का मुनाफा कमाया था. अभी माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के दो शाही स्नान बाकी हैं. उम्मीद है कि इन स्नान महापर्वो पर धंधा खूब चलेगा.’
यह पूछे जाने पर कि उनके पास प्रतिदिन इतने सिक्के कहां से आते हैं, कुमार ने कहा, ‘आमतौर पर बड़े दुकानदार और व्यापारी सिक्कों की बजाय नोट जमा करने में अधिक दिलचस्पी लेते हैं. हम लोग प्रतिदिन उनसे सम्पर्क कर नोट देकर उनसे सिक्के ले लेते हैं.’
मकर संक्रांति से शुरू हुआ 55 दिवसीय महाकुंभ मेला आगामी 10 मार्च को महाशिवरात्रि के शाही स्नान के साथ समाप्त होगा.