इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने राज्य के सभी सरकारी अधिकारियों को अपने बच्चों को प्राथमिक सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाने को कहा है. ऐसा नहीं करने वालों के खिलाफ कोर्ट ने कार्रवाई करने को भी कहा है.
हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वह अन्य अधिकारियों से परामर्श कर यह सुनिश्चित करें कि सरकारी, अर्द्धसरकारी विभागों के सेवकों, स्थानीय निकायों के जन प्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बोर्ड द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करें. ऐसा न करने वालों के खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की जाए. यदि कोई कान्वेंट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो उस स्कूल में दी जाने वाली फीस के बराबर धनराशि उसके द्वारा प्राप्त सरकारी खजाने में प्रतिमाह जमा कराई जाए.
साथ ही ऐसे लोगों का इंक्रीमेंट, प्रमोशन कुछ समय के लिए रोकने की व्यवस्था करने का आदेश लागू किया जाए. कोर्ट ने गणित और विज्ञान सहायक अध्यापकों की भर्ती की 1981 की नियमावली के नियम 14 के अन्तर्गत नयेसिरे से अभ्यर्थियों की सूची तैयार करने का भी निर्देश दिया है. कोर्ट ने मुख्य सचिव से छह माह बाद कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी. यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने शिव कुमार पाठक कई अन्य की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है.
कोर्ट ने सहायक अध्यापकों की भर्ती में 50 फीसदी सीधी व 50 फीसदी पदोन्नति से भर्ती के खिलाफ याचिकाओं पर हस्तक्षेप नहीं किया. कोर्ट ने प्रदेश के एक लाख 40 हजार जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों में अध्यापकों के दो लाख 70 हजार खाली पदों सहित स्कूलों में पानी आदि मूलभूत सुविधाएं मुहैया न होने पर तीखी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है. अंग्रेजी कान्वेंट स्कूल, मध्य वर्ग के प्राइवेट स्कूल और उ.प्र. बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित सरकारी स्कूल.
अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए अनिवार्य न करने से इन स्कूलों की दुर्दशा है. इनमें न योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधा ले रहे बड़े लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा के लिए जब तक ऐसे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे तब तक इनकी दशा में सुधार नहीं होगा.इसलिए सरकारी अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और राजकीय सहायता ले रहे लोगों के बच्चों को बोर्ड के स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाए.