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क्या शिवपाल वहीं लौट आए जहां से चले थे, BJP के साथ या एकला चलो से बढ़ाएंगे अखिलेश की चिंता?

सपा के टिकट पर विधायक बनकर शिवपाल यादव ने बीजेपी की तरफ कदम बढ़ाया तो लक्ष्मणरेखा भी पार कर गए. शिवपाल की अभी तक बीजेपी में एंट्री नहीं हो सकी. इस तरह शिवपाल सियासी मंझधार में फंस गए हैं, जिसके चलते न तो सपा से दूर हो पा रहे हैं और न ही अखिलेश यादव उन्हें बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं.

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शिवपाल यादव और अखिलेश यादव
शिवपाल यादव और अखिलेश यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • शिवपाल यादव क्या सियासी मंझधार में फंस गए हैं
  • बीजेपी में शिवपाल यादव की एंट्री क्यों नहीं हो पा रही
  • शिवपाल क्या अखिलेश के खिलाफ बनाएंगे नया मोर्चा

मुलायम कुनबे में चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच शह-मात का खेल जारी है. यूपी चुनाव के बाद से ही चाचा-भतीजे के बीच सियासी इतनी बढ़ती ही जारी है. अखिलेश से नाराज होकर शिवपाल ने बीजेपी की तरफ अपने कदम तो बढ़ाए, लेकिन अभी तक दहलीज नहीं पहुंच सके. वहीं, बीजेपी भी शिवपाल के लिए जल्दबाजी नहीं दिखा रही है जबकि अखिलेश खुलकर कह रहे हैं कि बीजेपी चाचा को लेना चाहती है तो देर क्यों कर रही. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिवपाल वहीं लौट आए हैं, जहां से वह बीजेपी के लिए चले थे? 

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को सपा का विधायक मानने के बजाय एक सहयोगी दल के तौर पर ट्रीट कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है. ऐसे में फिलहाल शिवपाल को अखिलेश बहुत ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं दिख रहे हैं तभी तो कह रहे हैं कि बीजेपी चाचा को लेना चाहती है तो देर क्यों कर रही है? वहीं, सपा के टिकट पर जीतकर विधायक बने शिवपाल कहते हैं कि अगर वह मुझे बीजेपी में भेजना चाहते हैं तो सपा से हमें निकाल दें, क्योंकि हम सपा के जीते 111 विधायकों में से एक हैं. 

यूपी चुनाव से पहले शिवपाल यादव ने सारे मनमुटाव खत्म कर अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. समाजवादी पार्टी के टिकट पर शिवपाल यादव ने जसवंतनगर सीट से जीत दर्ज किया, लेकिन अखिलेश ने उन्हें सपा का विधायक मानने के बजाय सहयोगी दल के तौर पर ट्रीट किया. इसके चलते शिवपाल यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर बीजेपी में शामिल होने की चर्चा को हवा दे दी. 

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शिवपाल को लेने से क्यों हिचक रही बीजेपी
 
सूत्रों की मानें तो शिवपाल यादव के बीजेपी जाने पर फिलहाल ब्रेक लग गया है. हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जरूर चाहते थे कि शिवपाल यादव को पार्टी में लिया जाए, लेकिन बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व किसी जल्दबाजी में नहीं है. वहीं, बीजेपी में जाने की जल्दबाजी में शिवपाल यादव ने रामभक्त बनने से लेकर सामान नागरिक संहिता तक की वकालत कर दी. इसके बाद भी बीजेपी का दरवाजे फिर भी न खुलता देख अब शिवपाल यादव कॉमन सिविल कोड पर गोल-मोल बातें करने लगे हैं. 

बीजेपी से बढ़ती नजदीकियों और सपा के खिलाफ बगावती तेवर अपनाने के बाद शिवपाल यादव को न तो अखिलेश यादव पार्टी से निकाल रहे हैं और न ही उन्हें सपा के विधायक मान रहे. दूसरी तरफ बीजेपी शिवपाल को पार्टी में लेने के लिए बहुत ज्यादा कोई उत्सुकता दिखा रही है. ऐसे में सियासी मंझधार में फंसे शिवपाल अब अपनी सियासी नैया पार लगाने के लिए  एक मजबूत सहयोगी की तलाश में है. 

शिवपाल सिंह यादव कहते हैं कि सपा में लगातार उनकी उपेक्षा हो रही है. अगर सपा मुखिया अखिलेश सबको साथ लेकर चलते तो 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आसानी से सत्ता से हटाया जा सकता है, लेकिन 'विनाश काले विपरीत बुद्धि.' अखिलेश से नाराज शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि सपा में उन्हें अपमान के सिवाय कुछ नहीं मिला. इस तरह शिवपाल सपा में अपनी उपेक्षा की बात कर समाज की सहानुभूति हासिल करने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ अखिलेश को घेरने में जुटे हैं. 

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बीजेपी के लिए किस रूप में शिवपाल फायदेमंद

शिवपाल यादव को फिलहाल बीजेपी लेने के मूड में नहीं दिख रही, क्योंकि उपचुनाव में आजमगढ़ संसदीय सीट से निरहुआ को ही अपना प्रत्याशी बनाने मन बना रही और जिसके संकेत भी मिलने लगे हैं. ऐसे में बीजेपी शिवपाल यादव को लेने की जल्दबाजी में नहीं है. वहीं, बीजेपी को यह भी लग रहा है शिवपाल यादव को बीजेपी से अलग रहकर ही अखिलेश यादव का ज्यादा नुकसान कर सकते हैं बजाय इसके कि उन्हें पार्टी में लेकर.ऐसे में अब शिवपाल यादव भी इसी दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं और मंशा है कि अखिलेश उन्हें सपा से बाहर का रास्ता दिखा दें ताकि खुलकर खेल सके. 

आजम को लेकर क्यों आश्वस्त हैं शिवपाल

शिवपाल यादव एक बार फिर अपने पुराने संबंधों को जोड़ने में जुट गए ताकि बीजेपी से अलग रहकर भी अखिलेश यादव के खिलाफ मजबूत मोर्चाबंदी कर सकें. इसी मद्देनजर शिवपाल यादव ने हाल ही में सीतापुर जेल जाकर सपा के कद्दावर नेता आजम खान से मुलाकात किया और उनकी रिहाई न होने के लिए अखिलेश से लेकर मुलायम सिंह तक को जिम्मेदार ठहरा दिया. आजम खान सपा ने तो कोई संघर्ष किया और न ही कोई प्रयास.

शिवपाल ने कहा कि आजम खान सपा के संस्थापक सदस्य थे तो उनके ऊपर हो रहे जुल्म के खिलाफ समाजवादियों को लोकसभा और विधानसभा में आवाज उठानी चाहिए थी. नेताजी मुलायम सिंह यादव को आजम खान की रिहाई के लिए भी धरने में बैठना चाहिए था. शिवपाल ने कहा कि पूरा देश जानता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेताजी का सम्मान करते हैं. ऐसे में अगर नेताजी आंदोलन में शामिल होते तो जरूर आजम खां के साथ न्याय होता. शिवपाल ने यह कह कर आजम खान के विश्वास को जीतने की कवायद की है, क्योंकि आजम खेमे से भी यही बात उठ रही है. ऐसे में आजम खान के बहाने शिवपाल सपा के मुस्लिम वोटबैंक का विश्वास हासिल करने का दांव चल रहे हैं ताकि अखिलेश के सामने मजबूत चुनौती पेश कर सकें.  

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शिवपाल यादव बनाम अखिलेश यादव

अखिलेश यादव ने बीते दिन कहा कि अगर हमारे चाचा को बीजेपी लेना चाहती है तो देर क्यों कर रही है? बीजेपी के लोग देर किस बात की कर रहे हैं. उन्होंने कहा 'मुझे चाचा जी से कोई नाराजगी नहीं है लेकिन बीजेपी बता सकती है कि वे क्यों खुश हैं.'  इस बयान को लेकर शिवपाल यादव ने कहा है कि 'यह एक गैर जिम्मेदाराना और नादानी वाला बयान है. मैं हाल के विधानसभा चुनाव में जीते सपा के 111 विधायकों में से एक हूं, अगर वह मुझे बीजेपी में भेजना चाहते हैं तो मुझे पार्टी से निकाल दें.' 

अखिलेश के खिलाफ मोर्चाबंदी कर पाएंगे शिवपाल

शिवपाल यादव सपा के टिकट पर जसवंतनगर सीट से जीतकर विधायक बने हैं. ऐसे में सपा उन्हें पार्टी से बाहर निकलती है तो शिवपाल की विधानसभा सदस्यता खत्म नहीं होगी. वहीं, शिवपाल खुद से बीजेपी में जाते हैं तो उनकी सदस्यता खत्म हो जाएगी. ऐसे में अब शिवपाल सपा में रहकर ही अखिलेश के खिलाफ मोर्चाबंदी करते नजर आएंगे. शिवपाल अगर आजम खान, कांग्रेस और कुछ दूसरे छोटे दलों को मिलाकर मोर्चा बनाने में सफल हो जाते हैं तो बीजेपी के लिए ज्यादा मुफीद यह सियासत होगी. 

शिवपाल ने जब सपा से अलग बनाई पार्टी

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बता दें कि 2017 में भी शिवपाल ने इसी तरह से अपने भतीजे अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था और सपा से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी गठित की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में फिरोजबाद सीट पर शिवपाल ने रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय प्रताप सिंह के खिलाफ चुनाव लड़े थे. शिवपाल भले ही जीत नहीं पाए थे, लेकिन सपा को यह सीट बसपा से गठबंधन होने के बाद भी गवांनी पड़ गई थी. इतना ही नहीं 'यादव बेल्ट' में भी सपा को तगड़ा झटका लगा था. इसी के चलते 2022 में चाचा-भतीजे साथ जरूर आए, लेकिन दिलों की दूरियां मिट नहीं सकी.

हालांकि, शिवपाल यादव अभी तक खुद को स्थापित नहीं कर पाए हैं जबकि अखिलेश यादव खुद को मुलायम सिंह के वारिस के तौर पर स्थापित करने में सफल रहे हैं. ऐसे में चुनाव के बाद से फिर से दोनों के बीच सियासी शह-मात का खेल जारी है. शिवपाल जहां से बीजेपी की ओर चले थे, फिर वहीं पर लौट आए हैं, लेकिन इस बार अकेले सियासी रण में उतरने के बजाय मजबूत कंधे का सहारा भी तलाश रहे हैं. सपा के मुस्लिम चेहरा आजम खान एक बेहतर विकल्प के रूप में दिख रहे हैं, जो दो सालों से सीतापुर की जेल में बंद है. ऐसे में आजम खान की नाराजगी भी सपा और अखिलेश यादव से है, जिसके चलते अगर दोनों साथ आते हैं तो सपा के लिए चिंता बढ़ सकती है? 

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