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अखिलेश यादव के M-Y समीकरण को बिगाड़ेंगे शिवपाल?

समाजवादी सेकुलर मोर्चा के गठन के बाद शिवपाल यादव की नजर अब अखिलेश यादव के मुस्लिम और यादव वोट बैंक पर है. इसी के मद्देनजर वे अपने मोर्चा के साथ दोनों समुदाय के लोगों को साथ जोड़ने में जुट गए हैं.

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समर्थकों के बीच शिवपाल यादव
समर्थकों के बीच शिवपाल यादव

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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुस्लिम-यादव (M-Y) मतों के दम पर बसपा के साथ हाथ मिलाकर 2019 में मोदी को मात देने का ख्वाब संजोया है. अखिलेश की इस राह में उनके चाचा शिवपाल यादव ही सबसे बड़ा रोड़ा बनकर खड़े हो गए हैं. सपा से नाता तोड़कर समाजवादी सेकुलर मोर्चा बनाने के बाद से शिवपाल सपा के M-Y समीकरण में सेंधमारी में जुट गए हैं.

बता दें कि यूपी में 20 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी यादव मतदाता सपा का मूल वोट बैंक माना जाता है. इन्हीं दोनों समुदाय के वोटबैंक के दम पर मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे. अब इस वोटबैंक पर शिवपाल यादव की नजर है.

शिवपाल यादव का समाजवादी सेकुलर मोर्चा सपा के रुठे नेताओं का ठिकाना बनता जा रहा है. इसमें भी खासकर यादव और मुस्लिम नेताओं का शिवपाल के मोर्चे से जुड़ने का सिलसिला जारी है. सपा के अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष रहे फरहत मियां भी सेकुलर मोर्चा से जुड़ गए हैं.

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पूर्व सांसद रामसिंह, इटावा से दो बार के पूर्व सांसद रघुराज शाक्य, डुमरियागंज सीट से पांच बार के विधायक यूसुफ मलिक समाजवादी सेकुलर मोर्चा में शामिल हो गए हैं. इसके अलावा जिला और विधानसभा स्तर से सपा नेता अखिलेश का साथ छोड़कर शिवपाल के साथ जुड़ रहे हैं.

शिवपाल यादव ने अपने 9 प्रवक्ताओं की लिस्ट में भी तीन मुस्लिम और 2 यादव समुदाय के नेताओं को जगह दी है. इतना ही नहीं अखिलेश सरकार में मंत्री रहे शारदा प्रताप शुक्ला और शादाब फातिमा भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं.

शिवपाल यादव के मोर्चा का स्वरूप कैसा होगा. इसकी तस्वीर अब साफ होती नजर आ रही है. उन्होंने मौजूदा राजनीतिक मिजाज को समझते और मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रखने के मद्देनजर बीजेपी में जाने के कयासों पर विराम लगाते हुए समाजवादी सेकुलर मोर्चा बनाने का फैसला किया है.

फरहत मियां ने आजतक से कहा कि मौजूदा दौर में सपा और बीजेपी के बीच कोई फर्क नहीं रह गया है. बीजेपी भी मंदिर की बात करती है और अखिलेश यादव भी. मुलायम सिंह यादव के मूल सिद्धांतों से पार्टी बहक चुकी है. पार्टी में नेताजी का सम्मान नहीं हो रहा है, ऐसे सपा में रहते हुए दम घुट रहा था. इसी के मद्देनजर हमने समाजवादी सेकुलर मोर्चा से जुड़ने का फैसला किया है.

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उन्होंने कहा कि शिवपाल यादव के नेतृत्व में बना मोर्चा समाज के दबे, कुचले, पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक और किसान की आवाज बनेगा और इन्हीं के मुद्दों को लेकर चलेगा. इसी सिद्धांत को लेकर नेताजी (मुलायम सिंह यादव) ने सपा का गठन किया था.

फरहत मिया ने कहा कि यादव और मुस्लिम समुदाय के हर मुसीबत में शिवपाल यादव उनके बीच खड़े रहते हैं. ऐसे में ये दोनों समुदायों के बीच उनकी अहमियत काफी है. मोर्चा के प्रदेश कार्यकारिणी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सभी समुदाय के लोगों को बराबर का सम्मान मिलेगा.

बता दें कि मुलायम सिंह के सपा अध्यक्ष रहते हुए शिवपाल यादव पार्टी के सर्वेसर्वा हुआ करते थे. सपा के सत्ता में रहते हुए शिवपाल मदद की आस लेकर आए यादव समुदाय के लोगों की मदद के लिए आगे रहते थे. यही वजह है कि पार्टी संगठन से लेकर यादव समुदाय के बीच उनकी बेहतर और मजबूत पकड़ रही. इसी का नतीजा है कि उनके सपा छोड़ने के बाद मंगलवार को लखनऊ में हुए कार्यक्रम में यादव समुदाय की अच्छी खासी भीड़ जुटी.

यही नहीं उनके समाजवादी सेकुलर मोर्चा बनाने पर यादव और मुस्लिम समुदाय के लोगों की ओर से लगाई बधाई होर्डिंग से साफ समझा जा सकता है. इतना ही नहीं वे लगातार यादव और मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने की कवायद में जुटे हैं.

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मैनपुरी, फिरोजाबाद, आगरा, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, एटा और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में शिवपाल यादव की अच्छी पकड़ है. यही सपा का मजबूत गढ़ भी है. ऐसे में शिवपाल ने 2019 में सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में अखिलेश यादव के लिए शिवपाल यादव नई मुसीबत बनते जा रहे हैं.

शिवपाल यादव की राजनीतिक गतिविधियों पर सपा नजर लगाए हुए हैं. किसी तरह के विवाद से बचने के लिए सपा नेताओं को पार्टी आलाकमान की ओर से चुप रहने के लिए कहा गया है. यही वजह है कि जब हमने इस संबंध में सपा प्रवक्ताओं से बातचीत करनी चाहिए तो किसी ने भी सीधे जवाब नहीं दिया.

सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमीक जामेई ने शिवपाल यादव पर सीधे जवाब देने के बजाय उन्होंने कहा कि 2019 की लड़ाई दो विचारधाराओं के बीच है. एक तरफ संघ और बीजेपी हैं जबकि दूसरी ओर जनता है. इसका अलावा कोई और नहीं है. हमारी पहली प्राथमिकता बीजेपी को 2019 में सत्ता से बाहर करना है. यूपी के उपचुनाव से ये सिलसिला शुरू हो चुका हैं, जहां सीएम और डिप्टी सीएम को अपनी सीट गवांनी पड़ी.

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