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शिवपाल के मोर्चे में अभी नहीं जाएंगे सपा से निकाले गए उनके करीबी

शिवपाल यादव ने अपनी राजनीतिक राह को आगे ले जाने के लिए समाजवादी मोर्चा का गठन किया. लेकिन उनके इस मोर्च के साथ उनके करीबी भी जुड़ते नजर नहीं आ रहे हैं. ऐसे में इस मोर्चे का सियासी भविष्य क्या होगा?

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शिवपाल यादव
शिवपाल यादव

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समाजवादी पार्टी में पिछले डेढ़ साल से किनारे चल रहे शिवपाल यादव ने अपनी भविष्य की राजनीतिक राह चुन ली है. उन्होंने समाजवादी सेकुलर मोर्चा बनाने का ऐलान करते हुए कहा कि सपा में जिस किसी का भी सम्मान नहीं हो रहा है, उन लोगों को हमारे साथ आ जाना चाहिए. सपा नेताओं को छोड़िए शिवपाल के साथ पार्टी से निकाले गए उनके 'त्रिदेव' भी इस मोर्चे के साथ जाने का अभी फैसला नहीं कर सके हैं.

बता दें कि दीपक मिश्रा, मो. शाहिद और राजेश यादव को शिवपाल का त्रिदेव कहा जाता है. अखिलेश और शिवपाल के बीच रिश्तों में खटास 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुई. इसके बाद अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था.

शिवपाल के बाद अखिलेश की गाज उनके त्रिदेव सहित पांच करीबियों पर गिरी. अखिलेश ने दीपक मिश्रा, मो.शाहिद, राकेश यादव, कल्लू यादव और राजेश यादव को पार्टी से बाहर कर दिया था. ये पांचों नेता सपा से निकाले जाने के बाद भी किसी दूसरी पार्टी में शामिल नहीं हुए.

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शिवपाल के 'त्रिदेव' तो बस इसी इंतजार में थे कि सपा कुनबे में सुलह समझौते की रास्ता बने और उनकी दोबारा से पार्टी में वापसी हो सके. अब जब शिवपाल ने अपनी राजनीतिक राह सपा से अलग चुन ली है तो ये तीनों नेता अभी फैसला नहीं कर पा रहे हैं.

शिवपाल के करीबी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा की राजनीतिक दिशा अभी साफ नहीं है. जबकि हम चाहते थे कि ये परिवार एक रहे और किसी तरह से समझौता हो जाए, लेकिन ये होता नहीं दिख रहा है. शिवपाल और अखिलेश के अलग होने से किसी को भी फायदा नहीं मिलेगा बल्कि राजनीतिक नुकसान होगा.

बता दें कि अखिलेश यादव के हाथ में सपा की कमान आने के बाद पार्टी में काफी नेता हैं जो पूरी तरह से किनारे कर दिए गए हैं. इनमें शिवपाल और मुलायम सिंह यादव के करीबी नेता शामिल हैं. सपा में अखिलेश और रामगोपाल यादव के करीबी नेताओं का वर्चस्व कायम है.

शिवपाल के राजनीतिक फैसला लेने के बाद माना जा रहा है कि इन सभी नेताओं का नया ठिकाना समाजवादी सेकुलर मोर्चा बनेगा. लेकिन जिस तरह से समाजवादी राजनीति भविष्य अखिलेश यादव के हाथों में लोग देख रहे हैं. ऐसे में शिवपाल खेमे में जाने से लोग कतरा रहे हैं. जबकि सपा के संगठन में एक दौर में शिवपाल की मजबूत पकड़ थी. उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा जिला नहीं है जहां कम से कम 2 से 4 हजार कार्यकर्ता शिवपाल के न हों.

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दरअसल शिवपाल के मोर्चे के साथ न जुड़ने से इसलिए भी घबराहट है कि किसी दिन मुलायम सिंह यादव ने उन्हें बुलाकर फिर समझा दिया तो फिर वो मान जाएंगे. शिवपाल के एक करीबी ने इस बात का संशय जाहिर करते हुए बताया कि अगर अभी मोर्चा से जुड़ गए और कुछ दिनों के बाद उन्होंने इसे बनाने की मंशा को टाल दिया तो जो बची-कुची राजनीति है वो खत्म हो जाएगी.

शिवपाल ने अभी सपा को पूरी तरह से अलविदा नहीं कहा है. उन्होंने महज एक मोर्चा बनाया है. हालांकि उन्होंने इस मोर्चे को विधानसभा चुनाव के बाद ही बनाया था, जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने फरहत मियां को दिया था. शिवपाल ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए फरहत मियां को पार्टी के अल्पसंख्यक की कमान सौंपी थी. अखिलेश ने जिन्हें बाद में हटा दिया था.

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