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दिल्ली के बाद यूपी में भी 'स्मॉग' की मार, चुनावी मुद्दा बनाने की उठी मांग

एनजीटी के आदेश के मद्देनजर योगी सरकार ने पूरे प्रदेश में खेतों में फसलों के अवशेषों को जलाने पर पाबंदी लगा दी है. साथ ही सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने जिलों के हालात को देखते हुए जरूरी निर्णय लें ताकि जहरीली हवा के संकट से निपटा जा सके.

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स्मॉग की समस्या (फोटो क्रेडिट- रॉयटर्स)
स्मॉग की समस्या (फोटो क्रेडिट- रॉयटर्स)

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स्मॉग की समस्या से सिर्फ देश की राजधानी दिल्ली का ही दम नहीं घुंट रहा बल्कि उत्तर प्रदेश में भी ‘स्मॉग’दम घोंटू स्तर तक पहुंच चुका है. वायु की गुणवत्ता में लगातार गिरावट को देखते हुए अब वायु प्रदुषण को चुनावी मुद्दा बनाए जाने की मांग उठ रही है. राज्य सरकार का भी मानना है कि अब यह साधारण विषय नहीं रह गया है और बहुत गंभीरता से इसका समाधान खोजना होगा. प्रदेश के कई हिस्सों में पिछले करीब एक हफ्ते से हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है और यह स्वास्थ्य के लिये खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है.

उठाए जाएंगे जरूरी कदम

उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने जहरीली होती हवा के समाधान पर कहा, ‘मैं मानता हूं कि यह अब साधारण विषय नहीं रह गया है. इसका समाधान बहुत गंभीरता से खोजना होगा.’ उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने जहरीले स्मॉग से निपटने के कई तरीके सुझाए हैं. प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार इस मामले को लेकर सतर्क है और समस्या से निपटने के लिए जो भी आवश्यक निर्णय होगा, वह लिया जाएगा.

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फसलों के अवशेष जलाने पर पाबंदी

मालूम हो कि एनजीटी के आदेश के मद्देनजर योगी सरकार ने पूरे प्रदेश में खेतों में फसलों के अवशेषों को जलाने पर पाबंदी लगा दी है. साथ ही सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने जिलों के हालात को देखते हुए जरूरी निर्णय लें ताकि जहरीली हवा के संकट से निपटा जा सके.

वायु की गुणवत्ता में लगातार गिरावट

इस बीच, नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स (राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक) के मुताबिक शुक्रवार दोपहर तीन बजे तक गाजियाबाद और वाराणसी की हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की मात्रा 491-491 प्रति क्यूबिक मीटर थी. वहीं, लखनऊ में 490, नोएडा में 488, कानपुर में 450, आगरा में 404 और मुरादाबाद में 388 प्रति क्यूबिक मीटर पाई गई.  पीएम 2.5 की मात्रा 200 प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक होते ही हवा खतरनाक हो जाती है. इसकी मात्रा 400 प्रति क्यूबिक मीटर या उससे ऊपर जाना पूर्ण रूप से स्वस्थ लोगों को भी बीमार कर सकता है.

फेफड़ों के साथ दिल पर बुरा असर

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ के अध्यक्ष डॉक्टर पीके गुप्ता ने बताया कि पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 सल्फर डाईऑक्साइड, नाइटोजन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और धूल कण का मिला जुला रूप है जिनका आकार अति सूक्ष्म होता है. यह कण हमारी नाक के बालों से भी नहीं रुकते और फेफड़ों और यहां तक खून में भी पहुंच जाते है. इससे फेफड़ों के साथ-साथ दिल पर भी बुरा असर पड़ता है. उन्होंने बताया कि ज्यादा समय तक ऐसी हवा के संपर्क में रहने से सांस संबंधी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. ज्यादा प्रभाव पड़ने पर लकवा और फेफड़े का कैंसर भी हो सकता है.

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घर के अंदर रहना है बेहतर

डॉक्टर पीके गुप्ता ने बताया कि अगर कोई व्यक्ति लगातार ऐसी हवा के संपर्क में रहता है, तो वह उसकी सेहत के लिए बेहद खतरनाक है. यह खासकर बच्चों के फेफड़ों के स्वाभाविक विकास पर असर डालता है. इसी तरह बुजुर्गों के लिए भी ये खतरनाक है. जब पीएम 2.5 की मात्रा 400 के पार हो तो घर के अंदर ही रहना बेहतर है.

निकाय चुनाव में वायु प्रदूषण बनेगा मुद्दा

पर्यावरण विज्ञानी डॉक्टर सीमा जावेद ने कहा, ‘स्मॉग की समस्या अब आपदा का रूप ले चुकी है. वायु प्रदूषण को आगामी नगरीय निकाय चुनावों में प्रमुख मुद्दा बनाया जाना चाहिए. साफ हवा और साफ पानी तो देश के सभी नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है और इन दोनों मुद्दों की उपेक्षा करके जनसेवा नहीं की जा सकती. मौजूदा हालात ‘गैस चैम्बर’ जैसे हैं.’ उन्होंने कहा कि सरकार को इस समस्या से निपटने के लिए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में प्रदूषणकारी तत्वों के निस्तारण की अनिवार्यता को सख्ती से लागू करना चाहिए. साथ ही ज्यादा प्रदूषण फैला रहे वाहनों पर पाबंदी भी लगानी चाहिए. इसके अलावा रियल एस्टेट के कार्यों में भी नियमों का पालन कराया जाए. इसमें आम लोगों की सहभागिता भी जरूरी है.

सरकार को उठाने होंगे सख्त कदम

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सीमा ने कहा कि सरकार ने पानी का मोल तो तय कर दिया है लेकिन अब हवा का मोल तय करने की नौबत आ गई है. पिछले साल दिल्ली में जब स्मॉग की समस्या पैदा हुई तो संपन्न लोगों ने एयर प्यूरीफायर लगा लिए और मास्क खरीद लिए. मगर क्या कोई रिक्शावाला यह सब खरीद सकता है. सरकार से गुजारिश है कि वह हवा का मोल तय ना होने दे. सरकार को कहीं ना कहीं कठोर रुख अपनाना पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए अगले महीने से नए मानक लागू करने की बात हो रही है. उन मानकों में ऐसे बिजली संयंत्रों के लिये अपने यहां उत्सर्जित होने वाले प्रदूषकों के निस्तारण का अनिवार्य रूप से इंतजाम करना भी शामिल है. मगर अफसोस की बात यह है कि जो नये 16 ऐसे बिजली संयंत्र तैयार किए गए हैं, उन्होंने भी इस तकनीक को महंगा बताते हुए, नहीं अपनाया है. सरकार को इस पर अंकुश लगाना चाहिए.

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