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2019 में राज्यसभा चुनाव का कितना असर पड़ेगा, क्या बन पाएगा SP-BSP का गठबंधन?

बसपा के महासचिव सतीष चंद्र मिश्रा ने कहा, बसपा, सपा और कांग्रेस गठबंधन के पर्याप्त मत बसपा उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर को मिल हैं. बीजेपी ने धनबल-सत्ताबल और बेईमानी के दम पर राज्यसभा चुनाव जीती है.

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अखिलेश कुमार और मायावती
अखिलेश कुमार और मायावती

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उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर राज्यसभा चुनाव में 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछाई जा रही थी. सूबे की 10वीं सीट पर सपा-बसपा के गठबंधन की बुनियाद टिकी थी. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बसपा उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर को जिताने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन बीजेपी के समीकरण और बीएसपी विधायक की क्रॉस वोटिंग ने मंसूबों पर पानी फेर दिया है. ऐसे में ये बड़ा सवाल बनकर उभरा है कि क्या भविष्य में लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा का कोई गठबंधन बन पाएगा?

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक फिलहाल राज्यसभा चुनाव के नतीजों के बाद सपा की भूमिका को लेकर बसपा नाराज नहीं है. नतीजों के आने के बाद बसपा के महासचिव सतीष चंद्र मिश्रा ने कहा, बसपा, सपा और कांग्रेस गठबंधन के पर्याप्त मत बसपा उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर को मिल हैं. बीजेपी ने धनबल-सत्ताबल और बेईमानी के दम पर राज्यसभा चुनाव जीती है. उन्होंने कहा, बीजेपी ने भीमराव अंबेडकर को राज्यसभा में जाने से रोककर दलित विरोधी होने का प्रमाण पेश किया है. इसके लिए बीजेपी ने विधायकों की जमकर खरीद फरोख्त किया है. हमारे दो विधायकों को मताधिकार करने से वंचित किया गया है. बीएसपी नेता के बयान के आधार पर माना जा रहा है कि सपा के सहयोग को लेकर बसपा में किसी तरह का मतभेद नहीं है.

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बताते चलें कि मतदान से पहले सूबे के सियासी माहौल के मद्देनजर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सपा से 10 अतरिक्त विधायकों की लिस्ट मांगी थी जो बीएसपी उम्मीदवार को पहली प्राथमिकता के आधार पर वोट करेंगे. बसपा के सहयोग से दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव में जीत का स्वाद चख चुके सपा मुखिया अखिलेश यादव किसी भी सूरत में मायावती की दोस्ती को तोड़ना नहीं चाहते थे. इसी मद्देनजर अखिलेश यादव ने अपने सबसे विश्वसनीय विधायकों की लिस्ट बसपा सुप्रीमो को पहले ही सौंप दी थी.

आम कार्यकर्ता चाहते हैं दोस्ती

इस बारे में सपा प्रवक्ता अताउर्रहमान ने कहा, अखिलेश यादव ने जो वादा बीएसपी प्रमुख मायावती से किया था उसे पूरी ईमानदारी के साथ निभाया. भीमराव अंबेडकर को जिताने में हर संभव मदद की. लेकिन सत्ताधारी बीजेपी ने धनबल का सहारा लेकर जीत हासिल कर ली. बसपा-सपा की दोस्ती में किसी तरह की कोई दरार नहीं पड़नी चाहिए. 2019 में सपा-बसपा एक साथ मिलकर सूबे से बीजेपी का सफाया करेंगी. दोनों पार्टी के आम कार्यकर्ताओं की चाहत है कि ये दोस्ती बरकरार रहे.

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गौरतलब है कि मौजूदा राजनीति माहौल में सपा-बसपा इस बात से बाखूबी वाकिफ हैं कि वो अकेल दम पर बीजेपी से मुकाबला नहीं कर सकते हैं. 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने अपना हश्र देख लिया है. ऐसे में दोनों ने राजनीतिक भविष्य को देखते हुए 23 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. इस कोशिश से यह भी पता चलता है कि दोनों पार्टियां 1995 के वाकये से बाहर निकल चुके हैं.

गोरखपुर और फूलपुर उप चुनाव में सपा-बसपा को जीत का फॉर्मूला भी मिल गया है. 1993 में राममंदिर आंदोलन की लहर को सपा-बसपा ने मिलकर रोका था. तब दोनों दलों ने साझी सरकार बनाई थी. एक बार फिर दोनों मोदी लहर को रोकने के लिए एक जुट होने की कोशिश में हैं. राज्यसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवार की हार से दोनों दलों की दोस्ती पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता नजर आ रहा है.

बसपा नेता सैय्सद कासिम ने कहा, बीजेपी ने राज्यसभा के 9वें उम्मीदवार को जिताने के लिए जिस तरह के हथकंडे अपनाए हैं. उसे देखकर कौन कहेगा कि बीजेपी की जीत हुई है. बसपा उम्मीदवार को बीजेपी के प्रत्याशी से ज्यादा वोट मिले हैं. लेकिन द्वितीय वरीयता के आधार पर बीजेपी को जीत मिली है. ऐसे में नैतिक जीत बसपा की हुई है.

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सूत्रों के मुताबिक अभी दोनों दलों में 2019 के लिए गठबंधन की कोई बात नहीं हुई. ऐसे में राज्यसभा चुनाव के नतीजों के लिहाज से अभी से सपा-बसपा गठबंधन की बात करना उचित नहीं है. ये वक्त पर तय होगा, लेकिन एक बात साफ है कि दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ेगे तो बीजेपी को यूपी में मुश्किलों का सामना करना पड़ जाएगा. 2019 में मोदी के अभियान को भी तगड़ा झटका लग सकता है.

बताने की जरूरत नहीं कि सूबे में सपा-बसपा दोनों ऐसी पार्टियां हैं, जिनके पास एक मजबूत वोट बैंक है. ऐसे में दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे तो बीजेपी के लिए सूबे में 2014 जैसे नतीजे दोहराना बहुत मुश्किल हो जाएगा. यही वजह है कि बीजेपी के नेता सपा-बसपा की दोस्ती को लेकर तंज कर रहे हैं. राज्यसभा चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, सपा सिर्फ लेना जानती है, देना नहीं. सीएम योगी का ये बयान सपा-बसपा की दोस्ती में दरार डालने के लिए अहम भूमिका अदा कर सकता है.

गौरतलब है कि उपचुनाव नतीजों के बाद आजम खान ने कहा था कि  'अगर हम फिर बिछड़ जाएंगे तो फिर हार जाएंगे. यह गठबंधन लंबा चलेगा. एक दुश्मन ने हमें दोस्त बना दिया है. 2019 में सपा-बसपा गठबंधन करके चुनाव में उतरेंगे.

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