दिल्ली और महाराष्ट्र के बाद यूपी में भी बिजली की दरें कम करने की मांग उठ रही है. ये मांग और कोई नहीं बल्कि सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी के नेता ही कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी के महासचिव और लखनऊ लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार अशोक वाजपेयी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को चिट्ठी लिखकर यूपी में बिजली की दरों में कमी करने की मांग की है. वाजपेयी का कहना है कि यूपी में ऐसे गरीब लोग जो हम महीने ढाई सौ यूनिट से कम बिजली इस्तेमाल करते हैं, उनकी दरों में 25 प्रतिशत की कमी कर दी जाए.
हालांकि, अखिलेश यादव पहले ही यह कह चुके हैं कि बिजली की दरें कम करने का काम राज्य विद्युत नियामक आयोग का है. वाजपेयी की मांग को दिल्ली में सस्ती बिजली देने की आम आदमी पार्टी सरकार की घोषणा से जोड़कर देखा जा रहा है. वाजपेयी को शायद ऐसा लग रहा है कि अगर बिजली की दरें कम हो जाएं तो लखनऊ की सीट पर उनका बेड़ा पार हो सकता है. हालांकि, वाजपेयी ने इस बात से उन्होने इंकार किया कि ये 'केजरीवाल इफेक्ट' हैं.
कितनी वाजिब है वाजपेयी की मांग?
उत्तर प्रदेश में बिजली के ग्रामीण घरेलू उपभोक्ताओं से राज्य सरकार को 1800 सौ करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है जबकि शहरी घरेलू उपभोक्ताओं से करीब 6200 करोड़ रुपया राजस्व मिलता है. सरकार अगर ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए 25 प्रतिशत की सब्सिडी देती है तो सरकारी खजाने पर साढ़े चार सौ करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा. जानकारों का कहना है कि इसके अलावा अगर सरकार अपना घाटा पूरा कर ले और बकाया वसूल ले तो भी बिजली की दरें कम की जा सकती हैं.
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश मिश्रा का कहना है कि उपभोक्ताओं पर 29 हजार 325 करोड़ रुपये का बिजली का बकाया है और बिजली विभाग का घाटा 26 हजार करोड़ रुपये का है. अगर बकाया वसूल लिया जाए तो बिजली विभाग 3300 करोड़ रुपये के फायदे में आ जाएगी. इससे बिजली की दरें 25 फीसदी कम करने में कोई दिक्कत नहीं होगी.
यूपी में लाइन लॉसेस भी 26 प्रतिशत है. अगर 15 प्रतिशत मानक मानकर 11 प्रतिशत लाइन लॉस में कमी कर ली जाए तो विभाग को 4000 करोड़ रुपये का फायदा हो सकता है. उसी आधार पर भी बिजली की दरें कम की जा सकती हैं.
हालांकि, बिजली की दरें कम करने का प्रस्ताव यूपी विद्युत नियामक आयोग के सामने लंबित है. मुख्यमंत्री ने भी कह दिया है कि दरें कम करना या बढ़ाना विद्युत नियामक आयोग के हाथ में हैं.