यूपी में महीने भर से चले आ रहे गन्ना किसानों, चीनी मिल मालिकों और सरकार के बीच विवाद रविवार को खत्म होने के आसार दिखाई दिये. चीनी मिल मालिकों ने सरकार की ओर से जारी किए गये न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सहमति दे दी है और जल्द से जल्द मिलें शुरू करने का आश्वासन दिया है. सरकार ने कहा कि किसानों को अपनी फसल मिलों तक पहुंचाने और उसकी तय कीमत मिलने में कोई परेशानी न हो इसके लिए स्थानीय प्रशासन और चीनी मिलों के प्रबंधन को निर्देश दे दिये गये हैं.
आखिरकार गन्ना किसानों के विरोध और सरकार के सख्त होते रुख के आगे रविवार को यूपी के चीनी मिल मालिकों ने घुटने टेक ही दिये. मु्ख्य सचिव की ओर से जारी एक बयान में बताया गया कि मिल मालिकों ने गन्ने की खरीद को लेकर 225 रुपये के रेट की जिद छोड़ दी है. अब सभी मिल मालिक सरकार की ओर से तय 280 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर गन्ना खरीदने और अपनी मिलों में पेराई शुरू करने पर राजी हो गये हैं. मगर इसके लिए चीनी मिल मालिकों ने टैक्स में रियायतों के अलावा गन्ने का पैसा किसानों को दो किश्तों में देने की शर्त रखी थी. जिसे सरकार ने मंजूर कर लिया.
उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने बताया कि यूपी चीनी मिल एसोसिएशन ने पत्र लिखकर पुष्टी की है कि पेराई तत्काल शुरू कर दी जाएगी. गन्ने का मूल्य सरकारी तय दर यानी 280 रुपये के हिसाब से ही देय होगा. मिलों की आर्थिक स्थित और चीनी के गिरते दामों को देखते हुए मिल मालिकों को किसानों का पैसा दो हिस्सों में देना तय हुआ है. पहली बार गन्ना क्रय करते समय 260 रुपये और पेराई सत्र खत्म होने से पहले बकाया बीस रुपये दिया जाएगा.
मगर इससे पहले यूपी में चीनी मिलें शुरू करने को लेकर हाय-तौबा रविवार को भी जारी रही. एक तरफ राष्ट्रीय लोक दल के प्रदेश व्यापी चक्का जाम की वजह से जगह-जगह ट्रैफिक थम गया तो दूसरी ओर भारतीय किसान यूनियन की अगुवाई में गन्ना किसान पश्चिमी यूपी की चीनी मिलों के बाहर धरने पर डटे रहे. मगर प्रदेश में राजनीति का केंद्र बने इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी सरकार को घेरने में बीजेपी और कांग्रेस भी पीछे नहीं रहीं.
जाहिर है इस महीने भर की देरी का सबसे बड़ा खामियाजा किसानों ने उठाया है. जहां एक ओर पश्चिमी यूपी में किसान विरोध के तौर पर अपनी गन्ने की फसल सड़कों पर जलाई वहीं दूसरी ओर पूर्वी यूपी के एक बड़े हिस्से में किसान अपनी सालभर की कमाई कौड़ियों के भाव बेचने पर मजबूर रहे. चीनी मिल मालिकों और सरकार के बीच बातचीत बेनतीजा होते देख 350 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत मांगने वाले कई किसानों ने अपनी गन्ने की फसल खंडसारी में एक चौथाई से भी कम दामों पर निकाल दी. बिचौलियों ने भी इसका फायदा जम कर उठाया.
उधर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के बांकेगंज कस्बे के लगभग एक दर्जन किसानों ने राष्ट्रपति को शपथ पत्र (एफिडेविट) भेजकर इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है. प्रदेश की चीनी मिलें न चलने से प्रदेश के गन्ना किसानों की हालत दिनों दिन बिगड़ती जा रही है. कहीं किसान मिलों का घेराव कर रहें हैं तो कहीं आत्महत्या, तो कहीं किसान अपना गन्ना 60 रुपये क्विंटल बेचने को मजबूर हैं, तो कहीं किसान कर्ज और समाज में अपनी बेज्जती को देखते हुए इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे हैं.
लखीमपुर खीरी के बांकेगंज कस्बे के रहने वाले बड़े किसान प्रेम बिहारी लाल ने अपने एक दर्जन साथियों के साथ मिलकर राष्ट्रपति को शपथ पत्र भेजकर इच्छा मृत्यु की अनुमति की मांग की है. जिले में चल रहे छोटे उद्योगों क्रेशर और कोल्हू पर उनके मालिक किसानों से औने-पौने दामों में गन्ना खरीद रहे है. कुछ गन्ना किसान तो अपना गन्ना 60-70 रुपये में बेचने को मजबूर है.