उत्तर प्रदेश सरकार को 19 साल पुराने फर्जी मुठभेड़ के एक मामले में अपनी लेटलतीफी, लापरवाही और लीपापोती के लिए सात दिन में सात लाख रुपये जुर्माना भरना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है. 19 साल पहले हुई मुठभेड़ में एक युवक की हत्या हुई. फिर पता चला मुठभेड़ मुगालते में हुई. फर्जी मुठभेड़ के आरोपी पुलिस वालों का कोई भी सरकार कुछ नहीं कर पाई क्योंकि पूरा पुलिस प्रशासन उनको बचाने में संगठित ढंग से जुटा रहा. साल 2002 से अब तक लगभग सभी दलों की सरकारें बड़े-बड़े दावे और वादों के साथ आईं और गईं लेकिन कोई इन दागी पुलिस अफसरों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाया.
पुलिस प्रशासन का गठजोड़ बेहद मजबूत था और पीड़ित पिता अपने लाडले की मौत का इंसाफ मांगने भाग दौड़ करता रहा. अब जाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उसे उम्मीद की किरण दिखी है. सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ में हत्या के 19 साल पुराने मामले में आरोपी पुलिस कर्मियों को बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार पर सात लाख रुपये का अंतरिम जुर्माना लगाया है. ये रकम राज्य सरकार कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा कराएगी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने ये टिप्पणी भी की है कि इस बात के सीधे सबूत मिले हैं कि इस मामले में सरकार की पूरी मशीनरी कैसे आरोपी पुलिस अधिकारियों को बचाने में लगी थी. मुठभेड़ में मारे गए युवक के पिता 19 साल से इंसाफ के लिए पुलिस, प्रशासन, कोर्ट, कचहरी हर जगह भाग दौड़ करते रहे लेकिन प्रशासन ने अपनी चाल से किसी की एक ना चलने दी.
मुठभेड़ के वक्त सीएम थीं मायावती
सिकंदराबाद के आढ़ा तिराहे के निकट 3 अगस्त 2002 को मुठभेड़ हुई थी. तब मायावती मुख्यमंत्री थीं. इस मुठभेड़ में एक छात्र की मौत हो गई थी. फर्जी मुठभेड़ में युवक की हत्या के 19 साल बाद तक चार आरोपी पुलिसकर्मी खुलेआम घूमते रहे. सरकारी तनख्वाह पाते रहे. मुकदमे में अपनी पैरवी का खर्च भी सरकार से वसूलते रहे. ये चमत्कार यूपी में तब होता रहा जब निचली अदालत ने इनकी खुद को बेकसूर होने की अर्जी खारिज कर सबका वेतन रोकने का आदेश दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का भी कोई असर नहीं हुआ. ठीक 19 साल बीत जाने के बाद जब सुप्रीम कोर्ट का नोटिस आया तो सरकार और आरोपी सब धड़ाधड़ सीखचों के पीछे आ गए.
सभी आरोपी हुए गिरफ्तार
इस मामले में पिछले हफ्ते एक और सिपाही गिरफ्तार हुआ. एक दारोगा और सिपाही पहले ही जेल भेजे जा चुके हैं. न्यायालय ने मामले में दो अप्रैल 2019 को तत्कालीन निरीक्षक सिकंदराबाद रणधीर सिंह (सेवानिवृत्त क्षेत्राधिकारी), तत्कालीन सिपाही संजीव कुमार (वर्तमान उपनिरीक्षक), सिपाही मनोज कुमार और जितेंद्र सिंह की गिरफ्तारी के लिए एनबीडब्ल्यू जारी किया था. इसके बाद संजीव कुमार ने 20 सितंबर को न्यायालय पहुंच कर आत्मसमर्पण किया. एक आरोपी कांस्टेबल मनोज कुमार जो इस समय सेल्स टैक्स विभाग में मथुरा में तैनात है, को 22 सितंबर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. शनिवार को पुलिस ने एक अन्य आरोपी सिपाही जितेंद्र सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया है. सिकंदराबाद कोतवाली प्रभारी जयकरण सिंह ने बताया कि आरोपी सिपाही जितेंद्र सिंह शामली जिले के कांधला का रहने वाला है. वह अपने मुकदमे के संबंध में वकील से मिलने बुलंदशहर आ रहा था. इसी दौरान उसे सिकंदराबाद में गिरफ्तार कर लिया गया. मामले में मुख्य आरोपी बताए जा रहे तत्कालीन इंस्पेक्टर रणधीर सिंह ने न तो आत्मसमर्पण किया और न ही पुलिस गिरफ्तारी ही कर सकी है.