प्रियंका गांधी के कांग्रेस में आते ही पार्टी और कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ गया है. अभी प्रियंका ने कमान भी नहीं संभाली है लेकिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं. लखनऊ स्थित कांग्रेस दफ्तर बिल्कुल नए नवेले रंग में दिखने लगा है. प्रियंका की ताजपोशी के साथ-साथ लखनऊ दफ्तर में उनके स्वागत की तैयारियों में पूरा कांग्रेस मुख्यालय जुटा है, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि आखिर 80 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस का टारगेट क्या है? अलग-अलग नेता अलग-अलग टारगेट बता रहे हैं लेकिन एक बात जो सबके जुबान से आ रही है वह यह कि 2009 में जब कांग्रेस ने 22 लोकसभा सीटों पर अकेले राहुल गांधी के दम पर जीत दर्ज की थी, 2019 में राहुल और प्रियंका होंगे तो यह टारगेट 44 का होगा.
हालांकि, यह छोटी मुंह बड़ी बात हो सकती है लेकिन कांग्रेस 30 प्लस की तैयारी में दिखती है. इस बार भी कांग्रेस की पूरी तैयारी उन सीटों पर फोकस करने की है जहां उसे लगातार डेढ़ लाख से ज्यादा वोट मिलता रहा है और जो उनके बड़े नेताओं की परंपरागत सीट है या फिर जो कांग्रेस का गढ़ है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऐसी सीटें ज्यादा हैं. साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में मोदी और योगी को एक साथ चुनौती देने की कांग्रेस की रणनीति भी है.
कहने को उत्तर प्रदेश को पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बांटा गया है, लेकिन देखा जाए तो पूरे 80 सीटों को 40-40 सीटों में बांटकर पूरब से लेकर अवध तक की सीटें प्रियंका के खाते में ही होंगी जबकि कानपुर से नोएडा तक ज्योतिरादित्य सिंधिया देखेंगे.
कांग्रेस की नजर पूरे उत्तर प्रदेश में ऐसी 30 से ज्यादा सीटों पर है जहां या तो वह जीतती रही है या यहां उन्हें कई लाख वोट मिलते रहे हैं. प्रियंका गांधी को दिए गए उत्तर प्रदेश के हिस्से में उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी, रायबरेली, अमेठी, प्रतापगढ़, फतेहपुर, फूलपुर, इलाहाबाद, देवरिया, कुशीनगर, बनारस, शाहजहांपुर, अमेठी और रायबरेली सरीखी की ऐसी सीटें हैं, जहां कांग्रेस अपना पूरा जोर लगाने वाली है. उसे लगता है कि वह अपने गढ़ को फिर से वापस जीत लेगी.
कांग्रेस की पूरी रणनीति बीजेपी को परेशान करने की है, अपने सीटों पर मजबूती से लड़ने की है. साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी और योगी के प्रभाव वाले सीटों पर प्रियंका के प्रभाव को स्थापित करने की होगी.