भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाकर दिल्ली विधानसभा चुनाव में कूदने वाली आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविंद केजरीवाल को लगने लगा है कि सियासी जंग केवल मुद्दों की तलवार से नहीं जीती जा सकती.
दिल्ली के चुनाव की गर्मी बढ़ते ही केजरीवाल को वोट बैंक की राजनीति की अहमियत का अंदाजा हो गया. इसी जरूरत ने केजरीवाल को ‘इत्तेहाद-ए- मिल्लत काउंसिल’ (आइएमसी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुसलमानों में बरेलवी संप्रदाय के मौलाना तौकीर रजा के दर पर खड़ा कर दिया. शुक्रवार, 1 नवंबर की देर शाम केजरीवाल ने अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकाल कर बरेली के दरगाह आला हजरत पहुंचकर मौलाना तौकीर रजा से मुलाकात की. मौलाना से केजरीवाल की यह पहली मुलाकात थी.
सकारात्मक रही मुलाकात
मुलाकात में दोनों ने एक दूसरे की जमकर तारीफ की. केजरीवाल ने मौलाना को हिंदुस्तान की बड़ी शख्सियत बताया तो जवाब में मौलाना ने कहा कि केजरीवाल उन्हें बेहद पसंद हैं. दरअसल इस पूरी कवायद के पीछे सुन्नी मुस्लिम वोट निशाने पर हैं. मौलाना तौकीर रजा ने अपनी राजनीतिक पार्टी भले ही बना ली हो लेकिन अभी उसकी पहचान बरेली के आसपास के इलाकों तक ही सीमित है. दरगाह आला हजरत, जो दुनिया भर में सुन्नी मुसलमानों के मरकज के रूप में जाना जाता है, से जुड़े होने के कारण मौलाना तौकीर रजा सुन्नी मुसलमानों में खासी पकड़ रखते हैं. मुसलमानों की यह बिरादरी दिल्ली में काफी बड़ी संख्या में है. यही बात केजरीवाल को बरेली खींच लाई है.
मौलाना तौकीर रजा को केजरीवाल से हाथ मिलाने में गुरेज नहीं
सुन्नी मुसलमानों में प्रभाव रखने के कारण ही यूपी की अखिलेश यादव सरकार ने अप्रैल में मौलाना तौकीर रजा को राज्य हथकरघा निगम का उपाध्यक्ष बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया था लेकिन मुजफ्फरनगर दंगों के बाद इनके रिश्तों में दरार आ गई थी. मौलाना ने राज्यमंत्री का दर्जा भी वापस कर दिया था. समाजवादी पार्टी ( सपा ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने मौलाना तौकीर रजा को बड़ी मुश्किल से मनाकर सरकार के साथ जुड़े रहने को मनाया था. चूंकि सपा दिल्ली से विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रही है ऐसे में मौलाना तौकीर रजा को अरविंद केजरीवाल से हाथ मिलाने में किसी प्रकार का कोई गुरेज नहीं है.
मौलाना कल्बे रुशैद ने मुलाकात में निभाई अहम भूमिका
वैसे इस अरविंद केजरीवाल और मौलाना तौकीर रजा की इस मुलाकात के लिए ‘ ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड’ के सदस्य मौलाना कल्बे रुशैद ने पुल का काम किया है. मेरठ कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के प्रवक्ता डॉ. मनोज सिवाच कहते हैं ‘ दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने तेजी से उभरकर सामने आई है. दिल्ली के पढ़े लिखे और संपन्न तबकों में केजरीवाल को काफी समर्थन मिल रहा है लेकिन चुनाव जीतने के लिए इनकी पार्टी को पुरानी दिल्ली में रहने वाले खासकर मुसलमानों का भी समर्थन चाहिए. इन मुसलमानों में बहुमत सुन्नी समुदाय का है. इसीलिए अभी तक दूसरी राजनीतिक पार्टियों और नेताओं से दूरी बनाए रखने वाले केजरीवाल ने अपनी रणनीति में एक अहम बदलाव करते हुए मौलाना को अपने साथ जोडऩे की पहल की है.’