यूपी विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज होते ही सियासी गठजोड़ भी होने लगे हैं. आलम यह है कि कभी चुनाव पूर्व गठबंधन न करने वाली पार्टियां भी अब दोस्ती का हाथ बढ़ा रही हैं. सहारनपुर में मोदी की रैली के बाद से घबराई सपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चौधरी अजित सिंह से तालमेल बिठाना शुरू किया है. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह और अजित सिंह की मुलाकात इसका साफ संकेत है.
बीजेपी के बढ़ते प्रभाव और पश्चिमी यूपी में दंगों की आंच झेल चुकी पार्टी को सत्ता में बरकरार रखने के लिए मुलायम सिंह हर संभव कोशिश करते दिख रहे हैं. लेकिन चौधरी अजित सिंह के सपा से गठबंधन पर पार्टी को अपने ही एक नेता के टिकट की कुर्बानी देनी होगी. सवाल यह है कि एक मात्र चौधरी अजित सिंह के लिए सपा अपने नेता को दरकिनार क्यों करेगी? और अगर पार्टी ऐसा कर रही है तो उसके पीछे रणनीति क्या है?
इन छह प्वाइंट्स में जानें क्यों सपा चल सकती है ये दांव-
1. अजित सिंह के साथ जुड़ने में सपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2017 में चुनावी फायदे की उम्मीद.
2. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को किसी तरह कम करना या गायब करना.
3. इस क्षेत्र में बीजेपी की ओर से वोटों के धुव्रीकरण की संभावित कोशिश पर पानी फेरना.
4. इस क्षेत्र का जाट और किसान वोट बैंक भी है एक वजह.
5. बीजेपी के साथ-साथ बीएसपी को भी कुछ हद तक साधने में मिलेगी मदद.
6. सपा सूत्रों की मानें तो पार्टी मुस्लिम-यादव के साथ जाट और गुज्जर समुदाय को भी अपने पाले में करना चाहती है.