उत्तर प्रदेश के गोंडा में 1982 में हुए फर्जी मुठभेड़ के मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने तीन पुलिस वालों को फांसी की सजा सुनाई है. जबकि पांच अन्य आरोपियों को उम्रकैद सुनाई गई है.
इस मामले में कुल 19 लोगों को दोषी पाया गया था जिसमें से 10 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि एक जमानत पर रिहा है. जिन पुलिस वालों को फांसी की सजा सुनाई गई है उनका नाम इस प्रकार हैः राम करण, आर बी सरोज और राम नायक.
जिन दोषियों को उम्रकैद की सजा दी गई है, उनके नाम इस प्रकार हैः मंगला सिंह, राजेंद्र प्रताप, परवेज हसन, नसीम अहमद और रमाकांत.
इससे पहले 30 मार्च 2013 को 31 साल पुराने फर्जी मुठभेड़ में एक पुलिस उपाधीक्षक समेत 13 लोगों की हत्या के मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने उपरोक्त आठ पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया था.
क्या है पूरा मामला?
अभियोजन पक्ष के मुताबिक 12 मार्च 1982 में गोंडा जिले के कटराबाजार थाना क्षेत्र के माधवपुर गांव में दो पक्षों के बीच रंजिश भड़कने की आशंका के मद्देनजर मौके पर पहुंचे तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक के. पी. सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी.
अपने साथी की हत्या से आक्रोशित पुलिसकर्मियों ने अगले दिन माधवपुर पहुंचकर 12 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. पुलिस ने इसे मुठभेड़ का नाम दिया था. के.पी. सिंह की पत्नी विभा सिंह ने बाद में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. कोर्ट के आदेश पर मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी थी.
सीबीआई की जांच में मुठभेड़ को फर्जी पाया गया था. इस मामले में कुल 19 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. उनमें से 10 की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गयी थी.