लोकसभा में तीन तलाक बिल पेश होने के बाद मुस्लिम समाज से मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं. इस पर जहां पीड़ित महिलाओं ने खुशी जताई है, वहीं देवबंद में कई मुस्लिम मौलानाओं ने इसका विरोध किया है.
देवबंद की रहने वाली जिस रेशमा को उसके शौहर ने व्हाट्सएप के जरिए तीन तलाक दे दिया था उसने इस बिल के संसद में दोबारा पेश होने पर खुशी जताते हुए कहा, "मुझे उम्मीद है इस कानून के बाद मेरे जैसी कई महिलाओं को इंसाफ मिलेगा और उन शौहरों को सजा होगी जो हमें बीच मझधार में छोड़ कर चले जाते हैं".
रेशमा जैसी कई पीड़ितों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली रशीदा और फरजाना ने भी तीन तलाक कानून पर खुशी जताई है. आज तक के साथ बातचीत करते हुए फरजाना ने कहा कि इस कानून के बाद मर्दों में डर बना रहेगा, जिससे तीन तलाक के मसले बेहद कम हो जाएंगे.
वहीं देवबंद के मौलानाओं को मोदी का यह तीन तलाक कानून रास नहीं आ रहा है. देवबंद के मुफ्ती असद ने मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए इल्जाम लगाया कि सरकार अल्पसंख्यकों को टारगेट करना चाहती है. वहीं संसद में बिल पेश किए जाने को लेकर आज तक से मुफ्ती असद बोले, "इस देश के सामने हजारों दूसरी समस्याएं हैं लेकिन ऐसी क्या वजह है कि सरकार में आते ही 10 दिनों के भीतर मोदी सरकार सबसे पहले तीन तलाक बिल ही पेश कर रही है."
मुफ्ती असद ने यहां तक कह दिया कि इस बिल के पास होने के बावजूद भी जो मुसलमान शरीयत कानून में भरोसा रखते हैं और हो सकता है कि कानून को नहीं मानें. देवबंद के मौलाना कारी राव साजिद ने आजतक से बातचीत करते हुए कहा कि उन्हें इस कानून से दिक्कत नहीं है बशर्ते सरकार मसौदा लाने के पहले तमाम उलेमाओं, मौलानाओं और इस्लाम के जानकारों के साथ इस मसले पर विस्तृत चर्चा करें और सब को साथ ले.
देवबंद के मौलाना शाह आलम ने यहां तक कह दिया कि तीन तलाक से पीड़ित महिलाएं महज पांच फीसदी भी नहीं हैं जो तीन तलाक की खिलाफत करती हैं जबकि 95 फ़ीसदी मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक का समर्थन करती हैं. तीन तलाक की पीड़ित महिलाओं के लिए आवाज उठाने वाली रशीदा का कहना है ज्यादातर महिलाएं समाज के डर से आवाज भी नहीं उठा पाती जबकि उनकी संख्या कहीं ज्यादा है.
देवबंद के एडवोकेट तहसीन खान में आजतक से बातचीत करते हुए कहा कि उन्हें इस कानून में 3 साल की जेल के प्रावधान पर ऐतराज है क्योंकि अगर शौहर को जेल हो गई तो पत्नी को जुर्माना या भत्ता कौन देगा ऐसे में सरकार को इस कानून में बदलाव करते हुए पीड़ित महिलाओं के लिए वित्तीय मदद का प्रावधान जरूर रखना चाहिए.