बीजेपी में शीर्ष स्तर पर चले लंबे मंथन के बाद अंतत: उमा भारती को झांसी-ललितपुर सीट से पार्टी प्रत्याशी घोषित कर दिया गया. सूत्रों की माने तो पार्टी के रणनीतिकारों का ऐसा मानना है कि उमा भारती न केवल झांसी-ललितपुर सीट पर बीजेपी की खोई हुई साख वापस लाने में कामयाब रहेंगी, बल्कि बुंदेलखंड के मध्यप्रदेश क्षेत्र की टीकमगढ़ व छतरपुर समेत उत्तरप्रदेश की लोधी बाहुल्य सीट महोबा को भी यहां से प्रभावित करेंगी.
एक समय बीजेपी का गढ़ मानी जानी वाली झांसी सीट पर पिछले तीन चुनावों से पार्टी को हार का सामना करना पड़ रहा है. तमाम दांव खेलने के बाद भी बीजेपी को यहां से जीत नहीं मिली, ऐसे में उमा भारती से पार्टी ने उम्मीद लगाई है. मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का यह पहला लोकसभा चुनाव नहीं है. छतरपुर व टीकमगढ़ लोकसभा सीट के अलग होने से पहले दोनों जिलों को मिलाकर खजुराहो संसदीय सीट हुआ करती थी. इस सीट से उमा भारती लगातार तीन बार सांसद रहीं. उन्होंने सबसे पहला चुनाव खजुराहो से भाजपा के टिकट पर 1984 में कांग्रेस की विद्यावती चतुर्वेदी के खिलाफ लड़ा था, इसमें उन्हें पराजय मिली थी.
इसके बाद हुए 1989 के चुनाव में उमा ने कांग्रेस की विद्यावती चतुर्वेदी को 1.93 लाख वोटों के लंबे अंतर से हराया. 1991 के चुनाव में उमा भारती ने कांग्रेस के रामरतन चतुर्वेदी व 1996 में कांग्रेस के ही श्रीराम कुशवाहा को पराजित किया. जातिगत आंकड़े व साध्वी की हिंदूवादी छवि को भुनाने के लिए पार्टी को झांसी सबसे मुफीद जगह दिखाई दे रही है. पहले जनसंघ तथा बाद में बीजेपी का गढ़ रहे झांसी-ललितपुर संसदीय क्षेत्र को एक फिर बीजेपी की झोली में लाने के लिए पार्टी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं.
बुंदेलखंड में राहुल के रथ के सारथी प्रदीप जैन के सामने मुश्किलें पैदा करने के साथ ही सपा व बीएसपी को भी एक कद्दावर प्रत्याशी उतारकर चुनौती देने की कोशिश की गई है. सन 2003 में मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद उमा की संगठन से हुई तकरार के बाद उन्होंने अपनी खुद की पार्टी बना ली थी, पर बाद में फिर से वह बीजेपी में वापस आ गईं तथा उन्हें उत्तर प्रदेश में काम करने का जिम्मा सौंपा गया. बीते विधानसभा चुनाव में वह चरखारी से विधायक चुनीं गई.