समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने विधायकों और वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई है. यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब सपा राजनीतिक संकट से घिरी हुई. एक तरफ एक-एक कर सहयोगी दल अखिलेश यादव से दूर हो रहे हैं तो दूसरी तरफ सपा के कोर वोटबैंक यादव पर बीजेपी और मुस्लिमों पर बसपा की नजर है. ऐसे में मंगलवार को लखनऊ में होने वाली सपा की मीटिंग पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं.
अखिलेश ने बुलाई पार्टी की बैठक
शिवपाल और राजभर प्रकरण के बाद अखिलेश यादव ने मंगलवार को पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई है, जिसमें सपा के सभी विधायकों के साथ-साथ वरिष्ठ नेता भी शामिल होंगे. इसमें पार्टी को एकजुट करने के लिए रणनीति बनाई जा सकती है. साथ ही विधायकों को शिवपाल व ओम प्रकाश राजभर के प्रकरण से अवगत कराते हुए पार्टी को एकजुट कर आगे बढ़ने का पाठ पढ़ाया जा सकता है.
क्रॉस वोटिंग पर लेंगे एक्शन?
समाजवादी पार्टी ने इन दिनों सदस्यता अभियान चला रखा है, बैठक में उसकी समीक्षा भी होगी. राष्ट्रपति चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों पर एक्शन लेने को लेकर मंथन किया जाना है. हालांकि, अब तक ये साफ नहीं हो पाया है कि क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायक कौन हैं, लेकिन पार्टी को कुछ नाम पता चले हैं, जिन पर शक है. सपा पर क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों को चिन्हित कर उन पर उसी तरह की कार्रवाई करने का दबाव है, जैसा अखिलेश ने शिवपाल यादव के खिलाफ एक्शन लिया है.
बिखर गया सपा का गठबंधन
बता दें कि सपा की यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब पार्टी कई मोर्चों पर घिरी हुई है. 2022 विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने जातीय आधार वाले छोटे-छोटे दलों को जोड़कर मजबूत गठबंधन बनाया था, लेकिन अब वो धीरे-धीरे वह बिखराव की ओर है. महान दल ने सपा से नाता तोड़ लिया है तो सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और अखिलेश यादव की दोस्ती भी टूट गई है. इतना ही नहीं शिवपाल यादव भी सपा से आजाद हो चुके हैं. राजभर और शिवपाल ने अब खुलकर अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
अखिलेश की अगुवाई वाले सपा गठबंधन के साथ फिलहाल राष्ट्रीय लोकदल ही बचा है. जनवादी पार्टी के चीफ संजय चौहान भी लगातार अखिलेश यादव पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो कृष्णा पटेल की पार्टी अपना दल ने खामोशी अख्तियार कर ली है. ऐसे में अखिलेश यादव के लिए 2024 के चुनाव में बीजेपी को टक्कर दे पाना आसान नहीं है, क्योंकि यह चुनाव प्रदेश का नहीं बल्कि देश का है. ऐसे में स्थानीय मुद्दों के बजाय राष्ट्रीय मसलों पर बात होगी.
सपा के वोटबैंक पर विपक्ष की नजर
सपा से सहयोगी दल दूर हो रहे हैं तो दूसरी तरफ विपक्षी दलों की नजर अखिलेश यादव के कोर वोटबैंक पर है. विधानसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी की सपा के यादव वोटबैंक में सेंधमारी करने की कवायद में जुटी है तो बसपा मुस्लिम समुदाय को अपने पाले में लाने की दिशा में काम कर रही है. आजमगढ़-रामपुर उपचुनाव में सपा के यादव-मुस्लिम समीकरण में बीजेपी और बसपा सेंध लगाने में कामयाब रही है. आजमगढ़ में मुस्लिमों का 50 फीसदी वोट बसपा के खाते में जाने से सपा का सियासी समीकरण गड़बड़ा गया है. यही नहीं करीब 20 फीसदी यादव वोट भी बीजेपी के साथ गया है, जिसकी वजह से धर्मेंद्र यादव को मात खानी पड़ी है.
यादव समुदाय को साधने में जुटी बीजेपी
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के जरिए बीजेपी जीत का परचम फहराने के बाद से सपा के यादव वोटबैंक को साधने की कवायद में है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को मुलायम सिंह यादव के करीबी और सपा के संस्थापक सदस्य रहे चौधरी हरमोहन सिंह यादव की पुण्यतिथि कार्यक्रम को संबोधित कर यादव समुदाय को बड़ा संदेश दिया है. उन्होंने हरमोहन सिंह को लोकतंत्र के लिए लड़ने वाला योद्धा बताया. हरमोहन सिंह यादव को याद करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि समाज के लिए काम करने वाले लोग हमेशा अमर रहते हैं.
पीएम मोदी का इस कार्यक्रम को संबोधित करना भले ही एक आयोजन में महज उपस्थिति लग रहा हो, लेकिन इसके गहरे सियासी मायने हैं. यूपी की राजनीति को समझने वालों का मानना है कि इसके जरिए सपा के मूल वोट बैंक कहे जाने वाले यादव समाज को बीजेपी अपनी ओर लुभाने की कोशिशों में जुटी है. पुण्यतिथ कार्यक्रम में भी यूपी, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, गुजरात समेत देश के 12 राज्यों से यादव महासभा के प्रतिनिधि शामिल हुए थे. इस तरह मंच से बिना कहे साफ संदेश था कि यादव समाज के लिए भाजपा भी एक विकल्प है.
बसपा के एजेंडे में दलित-मुस्लिम
आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बसपा भले ही जीत नहीं सकी, लेकिन शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली के जरिए सपा के मुस्लिम कोर वोटबैंक में सेंधमारी करने में कामयाब रही है. इसके बाद ही मायावती ने दलित-मुस्लिम एजेंडे पर आगे बढ़ने की रणनीति पर काम कर रही है. ऐसे में संगठन स्तर भी मुस्लिम नेताओं को मायावती ने अहम जिम्मेदारी है. ऐसे में अगर मुस्लिम सपा से खिसकता है तो अखिलेश के लिए सियासी संकट गहरा जाएगा. वहीं, राजभर भी अखिलेश यादव को अतिपछड़ा विरोधी करार देने में जुटे हैं.
सूबे में नगर निकाय चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा के लिए सियासी चुनौती खड़ी हो गई है. ऐसे में सपा की लखनऊ में होने वाली बैठक पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं. यह बैठक सपा के सियासी भविष्य को तय करने वाली मानी जा रही है. देखना है कि सपा क्या सियासी एजेंडे लेकर आगे बढ़ती है जब उसके सहयोगी दूर हो गए हैं और विपक्षी दल उसके वोटबैंक पर नजर गड़ाए बैठे हैं?