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यूपी में राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटी जेडीयू, नीतीश का 'तीर' या तुक्का?

जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर जेडीयू ने यूपी की सियासत में किस्मत आजमाने का ऐलान किया है. हालांकि, इससे पहले भी 2015 में नीतीश कुमार ऐसे ही यूपी में सक्रिय हुए थे, लेकिन बाद में चुनाव लड़ने से पीछे हट गए थे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जेडीयू वाकई सूबे में सियासी एंट्री करना चाहती है या बीजेपी पर सिर्फ दबाव बनाने की रणनीति है?

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी में 2022 का चुनाव लड़ेगी नीतीश की जेडीयू
  • यूपी में कुर्मी समुदाय बीजेपी का कोर वोट बैंक है
  • नीतीश के यूपी में चुनाव लड़ने से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेंगीं

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी जेडीयू का अब उत्तर प्रदेश में भी विस्तार करने जा रहे हैं. यूपी में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव और इस साल होने वाले पंचायत चुनाव में जेडीयू पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ भागीदारी करेगा. जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर जेडीयू ने यूपी की सियासत में किस्मत आजमाने का ऐलान किया है. हालांकि, इससे पहले भी 2015 में नीतीश कुमार ऐसे ही यूपी में सक्रिय हुए थे, लेकिन बाद में चुनाव लड़ने से पीछे हट गए थे. ऐसे में सवाल उठता है कि जेडीयू वाकई सूबे में सियासी एंट्री करना चाहती है या फिर बीजेपी पर सिर्फ दबाव बनाने की रणनीति है?

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जेडीयू महासचिव केसी त्यागी को उत्तर प्रदेश में पार्टी के विस्तार की जिम्मेदारी सौंपी गई है. केसी त्यागी ने रविवार को कहा कि हम 2022 का विधान सभा और आगामी पंचायत चुनाव लड़ेंगे. इसके लिए संगठन को विस्तार देने की प्रक्रिया चल रही है और पहली कार्यकर्ता सभा मोदी के संसदीय क्षेत्र वारणसी में होगी. उसके बाद जेडीयू ऐसी सभाएं प्रदेश अन्य हिस्सों में करेगी. नीतीश कुमार इससे पहले भी 2015 में जीतकर आए थे, तो बनारस में एक बड़ी रैली कर चुनाव लड़ने की बात कही थी. हालांकि, बाद में जेडीयू ने महागठबंधन से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ आ गई थी और यूपी के विस्तार को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. 

बिहार में इस बार जेडीयू की सीटें इतनी घट गई हैं कि बीजेपी एनडीए में बड़े भाई की भूमिका में आ गई है. बीजेपी के आधार बढ़ने के बाद से जेडीयू के साथ मनमुटाव की खबरें दोनों खेमें की ओर से लगातार आ रही है. कानून व्यवस्था के मामले पर बीजेपी नेताओं ने खुलकर नीतीश सरकार की आलोचनाएं की है. इतना ही नहीं मंत्रिमंडल के फॉर्मूले पर भी अभी तक एनडीए में सहमति नहीं बन पाई है, जिसके चलते कैबिनेट का विस्तार नहीं हो पा रहा है. ऐसे ही राज्यपाल कोटे की मनोनीत होने वाली विधान परिषद का है, जिस पर जेडीयू और बीजेपी के बीच पेच फंसा हुआ है. हालांकि, बीजेपी और जेडीयू की ओर से यह भी बात भी कही जा रही है कि एनडीए में सबकुछ ऑल इज वेल है. 

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यूपी में नीतीश के लिए उम्मीदें
यूपी में जेडीयू को अपने राजनीतिक विस्तार की काफी संभावनाएं दिख रही हैं और सामाजिक समीकरण अनुकूल है. बिहार से सटे यूपी के जिलों में कुर्मी समुदाय की बड़ी आबादी है. सूबे में कुर्सी समुदाय की आबादी यादवों के लगभग बराबर है. इसके अलावा अति पिछड़े समुदाय की भी अच्छी तादाद है. इसके चलते बीजेपी और सपा ने प्रदेश अध्यक्ष कुर्मी समुदाय से ही बना रखा है. बीजेपी की कमान स्वतंत्र देव सिंह के हाथ में तो सपा के अध्यक्ष नरेश उत्तम हैं, जो कुर्मी समुदाय से ही आते हैं. इतना ही नहीं अनुप्रिया पटेल  की पार्टी अपना दल (एस) का आधार कुर्मी समुदाय का ही माना जाता है. 

यूपी में जेडीयू के विस्तार की तैयारी के पीछे वहां के सियासी हालात हैं. बीजेपी के सामने अन्य दलों का राजनीतिक सामर्थ्‍य कमजोर हुआ है. केसी त्यागी के मुताबिक कांशीराम के बाद मायावती के नेतृत्व में बसपा जमीन से कटती जा रही है. ऐसे ही मुलायम सिंह यादव के बाद सपा की कमान जब से अखिलेश ने संभाला है वो भी पस्त होती जा रही है. अपना दल अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा. सरकार में कुर्मी समुदाय को समानुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से निराशा है, ऐसे में जदयू अपनी जड़ें जमा सकती है. इसीलिए उसने यूपी की सियासत में अपना विस्तार करने की कवायद शुरू की है. 

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बीजेपी की राह में जेडीयू न बन जाए कांटा
यूपी में जेडीयू की नजर जिस कुर्मी समुदाय पर है वो फिलहाल बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं. इसीलिए बीजेपी ने कमान कुर्मी समुदाय से आने वाले स्वतंत्र देव को दे रखा है. नीतीश कुमार यूपी में आते हैं तो बीजेपी के इसी वोटबैंक में सेंधमारी करेंगे. जेडीयू ने पांच साल पहले भी यूपी में चुनाव की तैयारी की थी. नीतीश कुमार ने बनारस, प्रयागराज, गोरखपुर और कानपुर मंडलों में करीब दर्जन भर सभाएं की थीं. भीड़ भी अच्छी जुट रही थी, लेकिन अचानक ही जेडीयू ने चुनाव लड़ने का इरादा त्याग दिया था. हालांकि, इस बार जेडीयू नेता केसी त्यागी का कहना है कि पार्टी काफी संजीदा तरीके से तैयारी कर रही है और हम पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ेंगे. 

यूपी में की करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी जाति की संत कबीर नगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती और बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर जिलों में ज्यादा आबादी है. यहां की विधानसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय या जीतने की स्थिति में है या फिर किसी को जिताने की स्थिति में. 

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मौजूदा समय में यूपी में कुर्मी समाज के बीजेपी के छह सांसद और 26 विधायक हैं. केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री संतोष गंगवार इसी समुदाय से आते हैं. इसके अलावा यूपी में योगी सरकार में कुर्मी समुदाय के तीन मंत्री है. इसमें कैबिनेट मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा, राज्यमंत्री जय कुमार सिंह 'जैकी' हैं. कुर्मी समुदाय पहले भी बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़ा रहा है. इसी का नतीजा था कि स्वतंत्र देव को पार्टी ने कमान दे रखी है, लेकिन जेडीयू के आने से बीजेपी के इस मजबूत वोटबैंक में सेंध लग सकती है. 

जेडीयू ने उठाया आरक्षण का कर्पूरी फॉर्मूला 
बिहार की तर्ज पर यूपी में ओबीसी आरक्षण का कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूला भी जेडीयू उठा रही है. केसी त्यागी ने मांग उठाया है कि यूपी में ओबीसी आरक्षण को कर्पूरी ठाकुर के फॉर्मूले के लिहाज से लागू किया जाए. ओबीसी के आरक्षण को पिछड़ा वर्ग के तीन हिस्सों में बांटने की बात यूपी में लगातार हो रही है. इसके लिए सरकार ने आयोग का गठन भी किया था, लेकिन अभी तक आरक्षण के फॉर्मूले को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है, क्योंकि बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) इस आरक्षण के फॉर्मूले पर सहमत नहीं है. हालांकि, केसी त्यागी ने कहा कि बिहार में कई  राजनीतिक दल जो आरक्षण का विरोध करते थे वो भी इसका हिस्सा हैं. इस तरह से जेडीयू कुर्मी वोटरों के साथ-साथ अति पिछड़ों को साधने कां दांव यूपी में चल रही हैं. नीतीश कुमार ने इस फॉर्मूले के जरिए बिहार में अति पिछड़ा वोटरों के बीच अपना राजनीतिक आधार मजबूत किया था. 

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