
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में लाखों शिवभक्त कंधे पर कांवड़ रखकर सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते हुए महादेवा मंदिर पहुंच रहे हैं. बाराबंकी का ये महादेवा मंदिर हजारों वर्ष पुराना है. कहते हैं कि ये महाभारत काल से ही यहां पर मौजूद ये मंदिर लोधेश्वर महादेव के नाम से भी प्रसिद्द है. गुरुवार को महाशिवरात्रि के मौके पर मंदिर के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में कावड़िये और श्रद्धालु यहां पहुंच चुके हैं.
महाशिवरात्रि पर उत्तर प्रदेश के कई जिलों से शिवभक्त बाराबंकी के महाभारत कालीन प्राचीन शिव मंदिर महादेवा पहुंच रहे हैं. पूरे जिले में हर तरफ बम भोले, शिव शंकर के जयकारे गूंज रहे हैं. शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए शिव भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ है.
अपने कंधों पर कांवड़ रखकर बम-भोले, बम-बम-भोले की गूंज के साथ भक्तों के जत्थे चारों ओर से चले आ रहे हैं. इस तरह लाखों लोग हर साल यहां पर भगवान शिव के लोधेश्वर मंदिर में जलाभिषेक करते हैं. कहा जाता है कि ये मंदिर महाभारत काल का है जहां पर मांगी मुराद पूरी होती है. हर साल फाल्गुन के महीने में महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और प्रसिद्ध शिवलिंग की पूजा करते हैं और जल चढ़ाते हैं.
ये है इस प्राचीन मंदिर की कहानी
यह प्राचीन शिव मंदिर घाघरा नदी के किनारे बाराबंकी जिले की तहसील राम नगर के महादेवा में स्थित है. कहते हैं कि इस ऐतिहासिक मंदिर में स्थित शिवलिंग पृथ्वी पर स्थित 52 शिवलिंगों में से एक है. यहां के पुजारी अनिल तिवारी बताते हैं कि पंडित लोधीराम अवस्थी नाम के एक विद्वान ब्राह्मण थे जो स्वभाव से सरल और दयालु थे. एक रात भगवान शिव उनके सपनों में प्रकट हुए. कहा कि 'जिस गड्ढे में पानी जा रहा है, वह मेरी जगह है और मुझे वहां स्थापित करना है. यहां पर मुझे तुम्हारे नाम से प्रसिद्धि मिलेगी.' जिस स्थान पर ये मंदिर बनाया गया उसका आधा नाम 'लोधे' था. इसी से इस स्थान का नाम लोधेश्वर पड़ा.